Book Title: Sangrahani Sutram
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 277
________________ Jain Education चउदिसि च पंतीओ, वासट्ठि विमाणआ पढमपयरे । उवरि एक्केकहीणा, अणुत्तरे जाव एक्केकं ॥ ७३ ॥ इंदा पंति, तो कमसो तंसचउरसा वट्टा । विविहा पुष्कवकिण्णा, तयंतरे मुत्तु पुञ्चदिसिं ॥ ७४ ॥ पढमंतिमपयरावलि, विमाणमुहभूमि तस्समासद्धं । पयरगुणमिट्ठकप्पे, सङ्घग्गं पुष्ककिणिअरे ॥ ७५ ॥ इगदिसिपतिविमाणा, तिविभत्ता तंसचउरसा वट्टा । तंसेसु सेसमेगं, खिव सेसदुगस्स एक्केकं ॥ ७६ ॥ तंसेसु (से) चउरंसेसु अ, तो रासितिगंपि चउग्गुणं काउं । वट्टेसु इंदयं खिव, पयरधणं मीलिअं कप्पे ॥ ७७ ॥ चुलसी असी वाक्त्तरि सत्तरि सट्ठि पन्न चत्ताला । तुलसुर तीस वीसा, दस सहसारक्ख चउगुणिआ ॥ ७८ ॥ दुसु तिसु तिसु कप्पे, घणुदहि घणवाय तदुभयं च कमा । सुरभवणपइट्ठाणं, आगासपइट्टिआ उवरिं ॥ ७९ ॥ सत्तावीस सयाई, पुढवी पिंडो विमाणमुच्चत्तं । पंच सया कप्पदुगे, पढमे तत्तो य एक्केकं ॥ ८० ॥ हाइ पुढवीस सयं, वह भवणेसु दुदुदुकप्पेसु । चउगे नवगे पणगे, तहेव जाऽणुत्तरेसु भवे ॥ ८१ ॥ इगया पुढवी, विमाणमेकारसेव य सयाई । बत्तीस जोअणसया, मिलिआ सवत्थ नायवा ॥ ८२ ॥ पणच उतिदुवण्ण मिमाण सघय दुसु दुसु अ जा सहस्सारो । उवरि सिअ भवणवंतरजोइसिआणं विविहवण्णा ॥८३॥ रविणो उदयत्थंतर, चउणवइसहस्स पणसय छवीसा । बायाल सट्टिभागा, कक्कडसंकंतिदिअहंमि ॥ ८४ ॥ एम्मि पुणो गुणिए, तिपंचसगनवहि होइ कममाणं । तिगुणम्मी दो लक्खा, तेसीइसहस्स पंच सया ॥ ८५ ॥ For Private & Personal Use Only %% w.jainelibrary.org

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