Book Title: Sangrahani Sutram
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 286
________________ संग्रहणी सूत्रम्. ॥१३५॥ इअ साहाविअदेहो, उत्तरवेउविओ य तहुगुणो । दुविहोवि जहन्न कमा, अंगुलअस्संखसंखंसो ॥ १८७ ॥ सत्तसु चउवीस मुहू, सग पनरदिणेग दु चउ छम्मासा । उववायचवणविरहो, ओहे बारस मुहुत्त गुरू ॥१८८॥ लहुओ दुहावि समओ । संखा पुण सुरसमा मुणेअव्वा । संखाउपजत्तपणिदितिरिनरा जंति नरएसुं ॥ १८९ ॥ असन्नि सरिसिव पक्खि सीह उरगित्थि जंति जा छट्टि । कमसो उक्कोसेणं, सत्तमपुढवि मणुअमच्छा ॥१९॥ वाला दाढी पक्खी, जलचरनरगागया उ अइकूरा । जति पुणो नरएसुं, वाहुल्लेणं न उण निअमो ॥ १९१ ॥ दोपढमपुढविगमणं, छेवढे कीलिआइसंघयणे । एकेक्कपुढवीवुड्डी, आइतिलेसाउ नरएसुं ॥ १९२ ॥ दुसु काऊ तइआए, काऊ नीला य नीलपकाए । धूमाऍ नीलकिण्हा, दुसु किण्हा हुंति लेसा उ ॥ १९३ ॥ सुरनारयाण ताओ, दरलेसा अवडिआ भणिआ। भावपरावत्तीए, पुण एसिं हुंति छलेसा ॥ १९४ ॥ निरउबट्टा गब्भे, पजत्तसंखाउ लद्धि एएसिं । चक्कि हरिजुअल अरहा, जिणे जेइ दिस सम्म पुढविकमा ॥१९५॥ रयणाएँ ओहि गाउअ, चत्तारह गुरुलहु कमेणं । पइपुढवि गाउअद्धं, हायइ जा सत्तमि इगद्धं ॥१९६ ॥ निरयदारं सम्मत्तं, मणुअदारं भण्णइगब्भनर तिपलिआऊ, तिगाउ उक्कोसतो जहन्नेणं । मुच्छिम दुहावि अंतमुहु, अंगुलासंखभागतणू ॥ १९७ ॥ बारसमुहुत्त गम्भे, इयरे चउवीस विरह उक्कोसो। जम्ममरणेसु समओ, जहन्नसंखा सुरसमाणा ॥ १९८॥ Jan Education international For Private & Personal use only

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