Book Title: Sangrahani Sutram
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 284
________________ संग्रहणी ॥१३४॥ Jain Education International उवरिखिइठिइविसेसो, सगपयर विहतु इच्छसंगुणिओ । उवरिमखिइठिइसहिओ, इच्छिअपयरंमि उक्कोसा ॥ १६२॥ उववारण व सायं, नेरइओ देवकम्मुणा वावि । अज्झवसाणनिमित्तं, अहवा कम्माणुभावेणं ॥ १ ॥ सत्तमु खेत्तजविअणा, अन्नोन्नकयावि पहरणेहिं विणा । पहरणकयावि पंचसु, तिसु परमाहम्मिअकयावि ॥ १६३॥ रयण पह सकरपह, वालुअपह पंकपह य धूमपहा । तमपह तमतमपहा, कमेण पुढवीण गोत्ताई ॥ १६४ ॥ मास सेला, अंजण रिट्ठा मर्घा य माधवई । नामेहिं पुढवीओ, छत्ताइच्छत्तसंठाणा ॥ १६५ ॥ असिइ बत्तीसडवीस वीस अट्ठार सोल अड सहसा । लक्खुवरि पुढविपिंडो, घणुदहिघणवायतणुवाया ॥ १६६ ॥ गणं च पट्टा, बीस सहस्सा य घणउदहिपिंडो । घणतणुवायागासा, असंखजोअणजुआ पिंडे ॥ १६७ ॥ युग्मम् ॥ न फुसंति अलोगं चउदिसिंपि पुढवीउ वलयसंगहिआ । रयणाए वलयाणं, छधपंचमओअणं सङ्कं ॥ १६८ ॥ विक्खंभो घणउदहीघणतणुवायाण होइ जहसंखं । सतिभागगाउअं गाउअं च तह गाउअतिभागो ॥ १६९ ॥ पढममहीवलए, खिवेज एअं कमेण बीआए । दुतिचउपंचच्छगुणं, तइआइसु तंपि खिव कमसो ॥ १७० ॥ मज्झे चि पुढवि अहे, घणुदहिपमुहाण पिंडपरिमाणं । भणिअं तओ कमेणं, हायइ जा वलयपरिमाणं ॥ १७१ ॥ तीस पणवीस पनरस, दस तिन्नि पणूणएग लक्खाई। पंच य नरया कमसो, चुलसी लक्खाइँ सत्तसु वि ॥ १७२ ॥ तेरिकारसनवसगपणतिन्निग पयर सवि गुणवन्ना । सीमंताई अपद्वाणंता इंदया मज्झे ॥ १७३ ॥ For Private & Personal Use Only सूत्रम् . ॥१३४॥ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292