Book Title: Sangrahani Sutram
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 283
________________ पंचसु जिणकल्लाणेसु चेव महरिसितवाणुभावाओ । जम्मतरनेहेण य, आगच्छंती सुरा इहइं ॥ १४९ ॥ संकंतदिवपेमा, विसयपसत्ताऽसमत्तकत्तवा । अणहीणमणुअकज्जा, नरभवमसुहं न इंति सुरा ॥ १५०॥ चत्तारि पंच जोअणसयाइँ गंधो उ मणुअलोअस्स । उडे वचइ जेणं, न उ देवा तेण आवन्ति ॥ १५१ ॥ दो पढमकप्प पढम, दो दो दो बीअतइअगचउत्थिं । चउ उवरि य ओहीए, पासंति अ पञ्चमि पुढविं ॥ १५२॥ छडिं छग्गेविजा, सत्तमिमिअरे अणुत्तरसुरा उ । किंचूणलोगनालिं, असंखदीवुदहि तिरिअं तु ॥ १५३॥ बहुअयरगं उवरिमगा, उडे सविमाणचूलिअधयाई । ऊणद्धसागरे सङ्ख-जोअणा तप्परमसङ्खा ॥ १५४ ॥ पणवीसजोअण लहू, नारयभवणवणजोइकप्पाणं । गेवेजणुत्तराण य, जहसंखं ओहिआगारा ॥ १५५ ॥ तप्पागारे पल्लगपडहगझलरिमुइंगपुप्फजवो। तिरिअमणुएस ओही, नाणाविहसंठिओ भणिओ ॥ १५६ ॥ उर्दु भवणवणाणं, बहुगो वेमाणिआणऽहो ओही। नारयजोइस तिरिसं, नरतिरिआणं अणेगविहो ॥ १५७ ॥ इय देवाणं भणियं, ठिइपमुहं नारयाण वोच्छामि । इग तिन्नि सत्त दस सतर अयर बावीस तेत्तीसा ॥१५८॥ सत्तसु पुढवीसु ठिई, जेठोवरिमा य हेटपुढवीए । होइ कमेण कणिहा, दसवाससहस्स पढमाए ॥ १५९ ॥ नवईसमसहसलक्खा , पुत्वाणं कोडि अयरदसभागो। एगेगभागवुड्डी, जा अयरं तेरसे पयरे ॥ १६०॥ इअ जि? जहन्ना पुण, दसवाससहस्स लक्ख पयरदुगे । सेसेसु उवरिजिट्ठा, अहो कणिठा उ पइपुढविं ॥१६१॥ Jain Education For Privale & Personal use only Goliw.jainelibrary.org

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