Book Title: Sangrahani Sutram
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 276
________________ संग्रहणी सूत्रम्. ॥१३०॥ ताणंतिमसुरवरावभासजलही परंतु एक्वेके । देवे नागे जक्खे, भूए अ सयंभुरमणे अ॥ ६॥ वारुणिवर खीरवरो, घयवरलवणो अ हुंति भिन्नरसा । कालो पुक्खरोअहि, सयंभुरमणो अ उदगरसा ॥६॥ इक्खुरस सेसजलही, लवणे कालोऍ चरिमि बहुमच्छा । पणसगदसजोअणसय-तणू कमा थोव सेसेसु ॥ ६२॥ दो ससि दो रवि पढमे, दुगुणा लवणंमिधायईसंडे। बारस ससि वारस रवि, तप्पभिइ निद्दिट्ट ससिरविणो॥६॥ तिगुणा पुचिल्लजुआ, अणंतराणंतरम्मि खेत्तम्मि । कालोए वायाला, बिसत्तरी पुक्खरद्धम्मि ॥ ६४ ॥ दो दो ससिरविपंती, एगंतरिआ छसट्टिसंखा य। मेरु पयाहिणंती, माणुसखेत्ते परिअडंति ॥६५॥ एवं गहाइणोऽवि हु, नवरं धुवपासवत्तिणो तारा । तं चिअ पयाहिणंता, तत्थेव सया परिभमंति ॥ ६६ ॥ पनरस चुलसीइसयं, इह ससिरविमंडलाइं तक्खित्तं । जोअणपणसयदसहिअ, भागा अडयाल इगसट्टा ॥६७॥ ससिरविणो लवणम्मी, जोअणसय तिन्नि तीसअहियाइं । असिअंतु जोअणसयं, जम्बूहीवम्मि पविसंति॥६८॥ गहरिक्खतारसंखं, जत्थेच्छसि नाउमुयहि दीवे वा । तस्ससिहि एगससिणो, गुण संखं होइ सबग्गं ॥ ६९॥ बत्तीसठ्ठावीसा, बारस अड चउ विमाणलक्खाई। पन्नास चत्त छ सहस, कमेण सोहम्ममाईसुं ॥७॥ दुसु सय चउ दुसु सयतिगमिगारसहियं सयं तिगे हिट्ठा । मज्झे सत्तुतरसयमुवरितिगे सयमुवरि पंच ॥ ७१ ॥ चुलसीइलक्खसत्ताणवइ सहस्सा विमाण तेवीसं । सबग्गमुट्ठलोगंमि इंदया विसटि पयरेसुं ॥७२॥ ॥१३०॥ lain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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