Book Title: Sangrahani Sutram
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 280
________________ संग्रहणी॥१३२॥ * 446 Jain Education International रज्जुग्गहविसभक्षण - जलजलणपवेसतहछुहदुहओ । गिरिसिरपडणाउ मया, सुहभावा हुंति वंतरया ॥ ११० ॥ तावस जा जोइसिआ, चरगपरित्राय बंभलोगो जा । जा सहसारो पंचिं-दितिरिअ जा अच्चुओ सहा ॥ १११ ॥ जइलिंगमिच्छदिट्ठी, गेवेजा जाव जंति उक्कोसं । पयमवि असहहंतो, सुत्तुतं मिच्छदिट्ठी उ ॥ ११२ ॥ सुतं गणहररइअं तहेव पत्तेअवुद्धरइअं च । सुअकेवलिणा रइअं अभिन्नदसविणारइअं ॥ ११३ ॥ छउमत्थसंजयाणं, उपवाक्कोसओ उ सबट्ठे । तेसिं सड्डाणंपिअ, जहन्नओ होइ साम्मे ॥ ११४ ॥ लंतंमि चउदपुविस्स तावसाईण वंतरेसु तहा। एसो उववायविही, निअकिरिअआिण सचोवि ॥ ११५ ॥ वजरिसहनारायं, पढमं बीअं च रिसहनाराअं । नारायमद्धनाराय, कीलिआ तहय छेव ॥ ११६ ॥ एए स्संघयणा, रिसहो पट्टो य कीलिआ वज्रं । उभओ मक्कडबंधो, नाराओ होइ विन्नेओ ॥ ११७ ॥ छ गभतिरिनराणं, संमुच्छिपणिदिविगल छेवहूं। सुरनेरइआ एगिंदिआ य सधे असंघयणा ॥ ११८ ॥ छेवण उ गम्मइ, चउरो जा कप्प कीलिआईसु । चउसु दुदुकप्पवुड्डी, पढमेणं जाव सिद्धीवि ॥ ११९ ॥ समचउरंसनिग्गोह - साइ वामणय खुज हुंडे य । जीवाण छ संठाणा, सवत्थ सलक्खणं पढमं ॥ १२० ॥ नाही उवरि बीअं, तइअमहो पिट्टिउअरउरवजं । सिरगीवपाणिपाए, सुलक्खणं तं चउत्थं तु विवरी पंचमगं, सवत्थ अलक्खणं भवे छटुं । गम्भयनरतिरिअ छहा, सुरा समा हुंडया सेसा ॥ ॥ For Private & Personal Use Only १२१ ॥ १२२ ॥ *%%*** सूत्रम्. ॥१३२॥ | www.jainelibrary.org

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