Book Title: Sanatan Jain Mat Author(s): Shitalprasad Publisher: Premchand Jain Delhi View full book textPage 9
________________ भूमिका यह पुस्तक इसीलिये लिखी गई है कि जैन अजैन प्राचीन जैनमत का कुछ सार पाकर उसके अधिक जानने की कोशिश करें। इस छोटी सी पुस्तक में जो कुछ बताया गया है यदि उस पर अमल किया जायगा तो यह देखा जायगा कि तुर्त लाभ मिल रहा है । यह मानव जीवन सुख शांति मय हो रहा है । इस पुस्तक में प्रमाणीक आचार्यों के बचनों का हवाला दिया गया है जो नीचे भांति हैंश्री कुन्दकुदाचार्य प्रसिद्ध विक्रम सम्वत् ४९ श्री उमास्वामी श्री समन्त भद्र " , १२५ श्री पूज्य पाद " , ४०१ श्री जिनसेनाचार्य " , ८९४ श्री गुण भद्राचार्य " , ९५५ श्री अमृत चंद्र " , ९६२ श्री नेमिचंद्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ,१०४० श्री योगीन्द्र चन्द्र प्राचीन समय अप्रगट पाठकों को उचित है कि इनके रचे हुए प्रन्थों को पढ़ें और धर्म का आनन्द भोगें।Page Navigation
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