Book Title: Sanatan Jain Mat
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Premchand Jain Delhi

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Page 19
________________ बताया है। यह मार्ग उसी मीठी अमृतमई औषधि के समान है जिससे वर्तमान में भी मुँह मीठा हो और आगे भी बालों की पुष्टि हो । सदा से ही इस जगत में तीर्थ कर व अन्य महान पुरुषों ने सुख शांति पाने के लिये व इछात्रों के रोग मेटने के लिये भात्मध्यान ही का अभ्यास किया और आप ही अपने पुरुषार्थ से इच्छाओं के रोग से छूट गए और सदा के लिये सुख व शान्ति के भोक्ता हो गए। मोक्ष उसी को ही कहते हैं जहां सर्व इच्छाएं व इच्छात्रों के कारण मिट जावें व यह श्रात्मा स्वतंत्र व सुखी हो जावे-इस मोक्ष का उपाय जैनमत में रसत्रयधर्म बताया गया है। श्रीकुन्द कुन्दाचार्य जी समयसार जी में कहते हैंजाणल्लि भावणा खलु का दब्यो दंसणेचरित्तेय । तेपुणु तिरिणवि आदा ___ तम्हाकुण भावणंआदे ॥११॥ जो आद भावण मिणं - णिच्चुवजुत्तो मुणीसमाचरदि । सो सव्व दुक्ख मोक्खं पावदि अचिरेण कालेख ॥१२॥

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