Book Title: Sanatan Jain Mat
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Premchand Jain Delhi

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Page 35
________________ ( ३२ ) किविना यान का अभ्यास किये सुख शांति का लाम मले प्रकार नहीं होगा और न भास्मा में खाधीन स्वात्मानुभव की शक्ति पैदा होगी। इसी तरह मूर्ति पूजक श्वेताम्बर भाई मूर्तियों से मदद तो लेते हैं परन्तु वैराग्यमय मूर्ति बना कर भी उसणे मुंगारित कर देते हैं। प्रभूषण व मुकुट आदि पहना देते हैं सो उचित नहीं है क्योंकि उससे भगवान की शांत मुद्रा के दर्शन में दर्शक को अन्तराय कता है। ___ जैसे हम किसी साधु को अलंकृत नहीं कर सकते हैं वैसे हमें जिन प्रतिमा की भी अंगारित नहीं करना चाहिये-सनातन जैनमत ऐसा नहीं है। ___ एक मामूली गृहस्थ को नीचे लिखी आठ पाते भी छोड़ देनी पाहिये । जैसा श्री समन्त भद्राचार्य रस्मकरंद प्रावकाचार में बताते हैंमदद मांस मधुत्यागैः सहाणु व्रत पंचकं । अष्टौ मूलगुणानाहुर्य हिणां श्रमशोत्तमाः॥६६॥ अर्थात्-गृहस्थियों के लिये ये आठ मूल गुण तीर्थकरों ने बताये हैं अर्थात् इनका पालना उनके लिये अत्यन्त आवश्यक है । इनके पालने से गृहस्थ अन्याय से बचते हैं तथा जगत के प्राणी उनके द्वारा कष्ट नहीं पाते हैं (१) मदिरा या शराब नहीं पीना चाहिये।

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