Book Title: Sanatan Jain Mat
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Premchand Jain Delhi

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Page 37
________________ औषधि में भी इनको लेना उचित नहीं है। राक्टरी दवाओं में माँस व मदिरा का सम्बन्ध रहता है व वैद्य लोग औषधियों में मधु गलते हैं। यदि यकायक इन दोषों को न दूर कर सकें तो पीछे छोडे । वैसे माँस खाना, व शराब पीना तथा शहद को शौक से खाना तो जरूर छोड़ें। पांच अणु ब्रत नीचे प्रकार है: (१) अहिंसा अणुनत-संकल्प या इरादा करके जानवरों को न मारे। ऐसी संकल्पी हिंसा धर्म के नाम से पशु बलि करने में, मांसाहार के लिये शिकार खेलने में होती है। इसलिये इन निरर्थक हिंसाओ को त्यागे । मामूली गृहस्थी गृहारंभी, उद्यमी व विरोधी हिंसा छोड़ नहीं सकता है। तो भी व्यर्थ न करे जो भोजन, पान, मकान बनान, बाग लगाने, कूप-बावड़ी खोदने में होती है वह गृहारंभी हिंसा है । जो आजीविका के कर्म, असि ( तलवार ) मसि, ( लेखनी ) कृषि, वाणिज्य, शिल्प व विद्या ( हुनर ) के कार्य करने में होती है वह उद्यमो हिंसा है. जो देश, नगर, घर, स्त्री, पुत्र, माल असबाब पर हमला करने वालों को रोकने में व उनके साथ युद्ध करने में होती है वह विरोधी हिंसा है। जैन गृहस्थ राज्य शासन, व्यापार श्रादि सब कुछ कर सकते हैं । वे देश-परदेश रेल, रेल, जहाज आदि पर जा सकते हैं । उनको अपने धर्म की श्रद्धा दृढ़ रखनी व माँस, शराब से परहेज करना जरूरी होगा। मामूली जैन गृहस्थ द्रव्य, क्षेत्र, काल के अनुसार भिन्न भिन्न देशों । में जाकर नीति व धर्म को नहीं छोड़ता हुआ अपना काम कर सकता है । जो विचारवान ब्रती गृहस्थ हैं जिनका वर्णन आगे किया

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