Book Title: Sanatan Jain Mat
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Premchand Jain Delhi

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Page 57
________________ में हर एक वरण में उपजातियां नामांकित की गई और वे मिन मिक हो गई। तब एक उपजाति अपनी ही उपवाति में सम्बन्ध करनेलगीउस समय के देश व काल को देखकर समाज ने ऐसा ही उचित समझा होगा । वर्तमान में इस विमिमता से यदि हानियें दीख पड़ती हैं तो राजा को या समाज को अधिकार है कि वे अवस्था को पलट दें और यह नियम कर दें कि एक वर्ण वाली सर्व उपजातियां परस्पर सम्बन्ध कर सकती हैं। जिसमें समाज सुखी रहे, कष्ट न पावे, संख्या भी न कम हो आचरण भी श्रद्धा व व्रतों पर स्थिर रहै वैसी व्यवस्था करना लौकिक जनों का लौकिक व्यवहार है - राजा व समाज को यह भी अधिकार है कि जिस किसी ने कोई दोष करके अपने कुल को अशुद्ध किया हो उसको प्रायश्चित देकर शुद्ध करदे जैसा महा पुराण में श्री जिनसेनाचार्य ने नीचे के श्लोक से प्रगट किया हैकुताश्चित् कारणाद्यस्य कुलं सं प्राप्त दूषणं । सोऽपि राजादि संमत्या शोधयेत्स्वकुलं यदा॥ तदास्यो पनयाहत्त्वं पुत्र पोत्रादि संततौ। न निषिद हि दोक्षाहकुले चदेस्य पूर्वजाः ॥ पर्व ४० कोक १६८-१६९ भावार्थ-यदि किसी कारण से किसी के कुल में दूषण लग जावे तो वह भी राजा आदि की सम्मति से तब अपने कुल को शुद्ध करले पश्चात् उसके पुत्र, पौत्रादि उपनयन (जनेऊ) आदि संस्कार

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