Book Title: Sanatan Jain Mat
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Premchand Jain Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ संबम के लिये रखना व एक आसन से ही सोना बिना देखे करवट न बदलना। साधु जन नगर बाहर एकांत स्थान पर नगर में ५ दिन व प्राम में १ दिन से अधिक नहीं बसते हैं। वर्ष के मास प्रासाद शुदी १५ से कार्तिक शुदी १५ तक एक स्थल पर ही बिताते हैं। साधुओं का अधिक समय ध्यान में जाता है। समय बचने पर वे धर्मोपदेश देते हैं व शास्त्रादि रचते हैं। जैनमत का सनातन मार्ग (निर्गथ ) साधुओं ही का था। सर्व ही तीर्थकर श्री ऋषभदेव, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी ने नग्न ही तपस्या की थी-प्राचीन मूर्तिये नग्न ही मिलती हैं-बौद्धों की प्राचीन पुस्तकों में नग्न साधुओं का ही वर्णन है-यूनानी इतिहासकारों ने जो महाराज चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में भारत में आए थे नम जैन साधुओं का ही वर्णन किया है पहले दिगम्बर श्वेताम्बर भेद जैनमत में नहीं थे-जब महाराज चन्द्रगुप्त के समय में सन् ई० से ३२० वर्ष पहले अनुमान मध्य प्रदेश में १२ वर्ष का भयानक दुष्काल पड़ा था तब श्री भद्रबाहु श्रुतकेवली ने २४००० मुनि समूह को उपदेश दिया था कि दक्षिण में जैन गृहस्य बहुत हैं वहाँ धर्म सघ सकेगा यहाँ न ठहरना चाहिए तब १२००० साधुओं ने तो आशा मान ली-परन्तु शेष ने न मानी वे यहाँ ही ठहर गए दुष्काल के समय चारित्र ढीला हो गया। वे आधा कपड़ा कंधे पर डालने लग गए तब से अर्द्ध कालक मत चला ( भद्रबाहु चरित्र) फिर कई सौ वर्षों बाद उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण कर लिये तब से श्वेताम्बर भेद

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59