Book Title: Sanatan Jain Mat
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Premchand Jain Delhi

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Page 48
________________ (५) बूरा साफ किया हुआ व मेवा घी बूरे के साथ जाड़े में १ मास गर्मी में १५-दिन ब वर्षात में ७ दिन । (६) दूध दोहने के पीछे तुर्त छान कर औंटा ले वह २४ घंटे कक तुर्त छानकर ४८ मिनिट के भीतर पी सकता है। (७) दही जमा हुमा २४ घंटे तक, पाचार या मुरब्बा २४ घंटे तक। (८) तेल व घी जहां तक स्वाद न बिगड़े। (८) पानी दोहरे गाढ़े छन्ने से छानकर ४८ मिनिट तक । यदि लौंग कुटी डाल कर रंग बदला जावे सो ६ घंटे तक, गर्म किया हुना १२ घंटे तक उबाला हुश्रा २४ घंटे तक। मात्र छाना हुआ फिर छान कर काम में आ सकता है। शुद्ध भोजन पान रक्त शुद्ध बनाता है जिससे बुद्धि की निर्मलता में सहायता मिलती है व रोग नहीं सताते हैं । सदा मनुष्य को ताजा भोजन खाना चाहिये बाजार को दुकानों का व होटलों का भोजन दूध चाय श्रादि लेना योग्य नहीं है । बार बार खाना भो हानिकारक है। खूब भूख लगने पर ही खाना चाहिये। दिन भर में एक दफे अथवा अधिक से अधिक दो दफे भोजन करना बस है। जैसे पहले १०-११ बजे फिर ४-५ बजे-एक से दूसरे भोजन में ६ घंटे का अंतर जरूर रहना चाहिये-रात्रि को मुंह व पेट को पाचन के लिये विश्रान्ति देना उचित है। साधुओं का व्यवहार धर्म चारित्र - जिनके भाव मात्र आत्म ध्यान और वैराग्य के लिये बहुत पढ़ गये हों उनको साधुओं का चारित्र पालना चाहिये। सनातन जैन

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