Book Title: Sanatan Jain Mat
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Premchand Jain Delhi

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Page 33
________________ ( २९ ) गृहस्थों का व्यवहार चारित्र एक साधारण गृहस्थ को निश्चय धर्म अर्थात् प्रास्म-ध्यान के हेतु से नीचे लिखे छः कर्तव्य रोज पालने चाहिये (१) देवपूजा-अरहंत और सिद्ध की पूजा करना । ये पूजा अरहंत भगवान की उनके समक्ष भी हो सकती है। तथा उनके वीतराग स्वरूप को बताने वाली उनकी मूर्तियों से भी हो सकती है-धातु पाषाण की परम शांत पद्मासन या कायोत्सर्ग मूर्तियां वस्त्रा भूषण रहित मन में शांति व वैराग्य पैदा करने के निमित्त कारण हैं। इनके द्वारा स्वरूप विचारते हुए उनके गुणानुवाद करते हुए वमन में भक्ति पैदा करने को जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप व फल चढ़ाते हुए पूजा भावों में वैराग्य व शुभ भाव पैदा करती है जिससे प्रात्म-ध्यान का लाभ होता है, व सुख शांति प्राप्त होती है। (२) गुरु भक्ति-साधुओं की सेवा में जाकर उनकी सेवा करनी व उनसे धर्मोपदेश गृहण करना गुरु सेवा भी श्रात्मध्यान की कारण है । व सुख शांति देनेवाली है। (३) स्वाध्याय-जैन शास्त्रों को रोज पढ़ना, सुनना, या विचारना-धर्मचर्चा करनी अध्यात्मिक ग्रंथों को अधिक पढ़ना जैसे परमात्माप्रकाश, समयसार, ज्ञानार्णव, समाधिशतक, इष्टोप्रदेश। (४) तप- इसमें मुख्यता से रोज सवेरे और सांझ थोड़ी देर एकान्त में बैठ कर सामायिक या आत्मासम्बन्धी विचार करना

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