Book Title: Sanatan Jain Mat
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Premchand Jain Delhi

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Page 14
________________ (६) श्री रामचन्द्र जी और सोता जी का जीवन इस बात का सब म उदाहरण हैं। दोनों के प्रेम में व मोग में बड़े बड़े विश भाए । अन्त में सीता जी तो इस विषय भोग की इच्छा को दुःख का मूल कारण समझ कर आत्म रस पीने से ही सुख शांति हामो इस भावना को ले साध्यो ( आर्थिका ) हो गई । तब रामचन्द्रजी जो उस समय सीता के मद से छुटे नये व उसके भोग को चाहते थे अपनी इच्छा के भीतर बाधा पड़ने से बहुत दुःखी हुए-इस दुनियां में इच्छाओं का होना ही आकुलता है यही रोग है जिसकी दवा हर एक प्राणी जहाँ तक होता है किया करता है । अन्त में मरते वक्त भी बहुत सी इच्छाओं को पूरा न कर सकने के कारण निराश व असन्तुष्ट व दुःख रूप हो होकर प्राण छोड़ता है । संसार में जीव छः प्रकार के हैं १ एकेन्द्रिय जीव - जो वृक्ष, प्रथ्वी, जल, अमि, वायु काय धारी- इनके स्पर्श इन्द्रिय ( छूने की ) सबन्धी इच्छाएं होती हैं । २ इन्द्रिय जीव-लट, संख, कौड़ी आदि इनके छूने व स्वार लेने की इच्छाएं होती हैं । ३ सेन्द्रिय जीव- वोंटी, खटमल, जूं आदि उनके छूने, स्वार लेने, व सूंघने की इच्छाएं होती हैं । ४ चोन्द्रिय जोव - मक्ख, भोरा, पतंगा आदि इनके छूने, स्वाद लेने, सूंघने तथा देखने को इन्क्वाएं होती हैं । ५. पंचेन्द्रिय जोव बिना मनडे-रानी के कोई कोई सर्प,

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