Book Title: Sanatan Jain Mat
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Premchand Jain Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ [ २ ] अब सर्व जैनों को मिलकर सनातन जैनमत की रीति से चलना चाहिये व इसका प्रचार करके करोड़ों मानवों को जैन धर्म का लाम देना चाहिये । परोपकारियों को चाहिये कि उदार बने और धर्म की छाया में अनेकों को बिठाकर अपने समान करके परम पुण्य कमायें । जो सच्ची प्रभावना करते हैं वे जैनमत प्रचार करते हैं और वे ही तीर्थकरों के सच्चे भक्त हैं। "अजिताश्रम", लखनऊ वीर सं० २४५३ माहवदी ८ ताः २६-१-२७ ३० शीतलप्रसाद

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59