Book Title: Sanatan Jain Mat
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Premchand Jain Delhi

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Page 11
________________ * धन्देजिनधरम् के सनातन जैनमत ऋषभ आदि महावीर लो, चौबीसों जिनराय । हुए भरत इस काल में, वन्दो मन बचकाय ॥ ___ जैनमत एक बहुत प्राचीन मत है । जिस समय यहां ऋग्वेदादि में कथित सूर्य, अमि, इन्द्र की पूजा के मानने वाले आर्य लोग नहीं आए थे उस समय इस भरत क्षेत्र में यह जैनमत फैला हुआ था। तथा इसका प्रभाव दुनियां के दूसरे धर्मों पर भी अच्छी तरह पड़ा था । हमें इस पुस्तक में प्राचीनता के प्रमाण देकर नए पुराने का सवाल नहीं छेड़ना है ; हमें तो यह बताना है कि सनातन जैनमत कैसा सुगम, वैज्ञानिक (scientific) और आत्मा की हर तरह की उन्नति करने वाला है तथा यह बहुत उदार है। इसको हर एक मन वाला समझदार प्राणी समझ सकता है व पाल सकता है-चाहे जिस देश का हो व चाहे जिस वंश का हो । प्राचीनता के सम्बन्ध में पाठकगण हमारी लिखित "जिनेन्द्रमत दर्पण" प्रथम माग व “जैन धर्म प्रकाश" पढ़ जावें

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