Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana Author(s): Mangalvardhini Punit Jain Publisher: Mangalvardhini Foundation View full book textPage 4
________________ अपनी बात बंधुओं ! इस दुर्लभ मनुष्य पर्याय को सार्थक करने का एक मात्र उपाय हैआत्मानुभूति व आत्मानुभूति का प्रबल हेतु है-तत्वविचार एवं तत्वविचार से जुड़े रहने का एक प्रभावी उपाय है-तत्वप्रचार। इसी भावना से मैं पिछले अनेक वर्षों से इस कार्य में अनवरत् रूप से लगा हुआ हूँ। णमोकार मंत्र से लेकर दृष्टि के विषय तक, जैनदर्शन के चारों अनुयोग व समस्त मूलभूत सिद्धांतों के पारमार्थिक दृष्टिकोण को श्रोता परिभाषाओं व दृष्टांतों के जाल में उलझे बिना, व्यवस्थित, क्रमबद्ध, सरल व सुबोध शैली में उनका भावभासन कर सकें, इस हेतु मैंने जिस शैली, चार्टस व तकनीक आदि का प्रयोग किया वह लोगों द्वारा काफी पसंद किये गये व उसी शैली आदि में उन विषयों के विवेचन को पुस्तक का आकार देने की माँग आने लगी। लेकिन मैं इस कार्य को निरन्तर टालता रहा। किन्तु इस वर्ष जब मैं तत्वप्रचारार्थ अहमदाबाद गया तब मेरे मेजबान श्री भूषण भाई शाह के विशेष आग्रह से मैंने लेखन का कार्य प्रारंभ कर बहुत ही अल्प समय में पूर्ण किया। ___ मुझे इस आत्मकल्याण के मार्ग में लगाने वाली वात्सल्यमूर्ति विदुषी श्रीमति प्रदान करने वाले आ. ब्र. चंद्रसेन जी भोपाल, श्री प्रदीप मानोरिया अशोकनगर आदि विद्वान व श्री संदीप भाई सिंघवी (यूनिवर्सल सॉफ्टवेयर) अहमदाबाद एवं श्रीमति आराधना जैन, श्रीमति नीतू कौशल भोपाल के प्रति मैं हृदय की गहराईयों से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। पुस्तक के लाभार्थी जिन्होंने ज्ञान दान के इस परम् पवित्र कार्य में अपनी चंचला लक्ष्मी का सदुपयोग किया, जिनके नामों की सूची पुस्तक के अंत में दी गई है, वह सभी भी विशेष अनुमोदना के पात्र हैं। जैसा कि कहा जाता है कि अंत भला सो सब भला। अतः अंत में, इस कार्य को पूर्ण करते समय जिनका देवलोक से दिव्य सन्निध्य प्राप्त हुआ ऐसे प्रातः स्मरणीय वैराग्यमूर्ति कृपालुदेव परमोपकारी गुरुदेवश्री व प्रशम्मूर्ति बहिनश्री के पावन चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ व उपदेश ऊपर चढ़ने के लिए होता है, नीचे गिरने के लिए नहीं, ऐसा अंतिम निवेदन कर अपनी लेखनी को विराम -मंगलवर्धिनी पुनीत , भोपाल देता हूँ।Page Navigation
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