Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 3
________________ - समकित-प्रवेश प्रथम संस्करण SAMKIT-PRAVESH : 2500 प्रतियाँ, श्रुत-पंचमी 2019 ई. लेखक एवं संपादक कॉपीराईट आई.एस.बी.एन. : मंगलवर्धिनी पुनीत जैन, भोपाल : मंगलवर्धिनी पुनीत जैन, भोपाल के पास सर्वाधिकार सुरक्षित | - - C - प्रकाशक व प्राप्ति स्थान C D Mangalvardhini Foundation Being Sahaj & Sorted - - - - - मूल्य टाईप सेटिंग मुद्रक सुवर्णपुरी, ऑलिव-212, रुचिलाईफ स्केप, होशंगाबाद रोड, भोपाल (म.प्र.) 462026 संपर्क सूत्र : 7415111700, 8109363543 : 30/: सुनील पस्तोर, गंजबसौदा, 9340285469 : साहित्य सरोवर, भोपाल "धर्म" यह वस्तु बहुत गुप्त रही है। यह बाह्य शोधन से मिलने वाली नहीं है। अपूर्व अन्तःशोधन से यह प्राप्त होती है। यह अन्तःशोधन कोई एक महाभाग्य सद्गुरु के अनुग्रह से पाता है। -श्रीमद् राजचन्द्र वचनामृत समस्त सिद्धान्तों के सार का सार तो बहिर्मुखता छोछकर अन्तर्मुख होना है। श्रीमद् ने कहा है न!-'उपजै मोह विकल्प से समस्त यह संसार, अंतर्मुख अवलोकतें विलय होत नहिं वार।' ज्ञानी के एक वचन में अनन्त गम्भीरता भरी है। अहो! जो भाग्यशाली होगा उसे इस तत्त्व का रस आयेगा और तत्त्व के संस्कार गहरे उतरेंगे। च -गुरुदेव श्री के वचनामृत हे जीव ! तुझे कहीं न रुचता हो तो अपना उपयोग पलट दे और आत्मा में रुचि लगा। आत्मा में रुचे ऐसा है। आत्मा में आनन्द भरा है; वहाँ अवश्य रुचेगा। जगत में कहीं रुचे ऐसा नहीं है परन्तु एक आत्मा में अवश्य रुचे ऐसा है। इसलिये तू आत्मा में रुचि लगा। - बहिनश्री के वचनामृत

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