Book Title: Samaysara Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust View full book textPage 9
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार सर्वोत्कृष्ट परमागम शास्त्रों के अनुवाद करने का परम सौभाग्य उन्हीं को मिला है इसलिये वे यर्थाथरूपसे धन्यवाद के पात्र हैं।” । समयसार गुजराती टीका परसे हिन्दी अनुवाद करनेका कार्य भी कठिन परिश्रम साध्य था, उसको पूरा करने वाले श्री पं. परमेष्ठीदासजी न्यायतीर्थ धन्यवाद के पात्र हैं। इस अनुवाद के तैयार हो जाने पर इसको अक्षरशः मिलान करके जाँचनेका कार्य और भी कठिन था, उसमें अपना अमूल्य समय देनेवाले श्रीयुत् माननीय भाई श्री रामजीभाई माणेकचन्द दोशी, श्रीयुत् भाई श्री खीमचन्द भाई, श्री ब्र. चन्दूभाई, श्री ब्र. अमृतलालभाई और श्री ब्र. गुलाबचन्दभाईको बहुत बहुत धन्यवाद है। इसकी गाथाओं पर हिन्दी छन्द रचना करने का मुझे अवसर मिला, यह मेरा सौभाग्य है। इस रचना के समय गाथा के भाव; पूर्णरीत्या छन्द में आजावें इस ही बात का मुख्य उद्देश्य रखा गया है। छन्द रचना की दृष्टि गौण रखी गयी अतः इस सम्बन्ध की कमी के लिये पाठक क्षमा करें। सबके अन्त में परम उपकारी अध्यात्ममूर्ति श्री कानजीस्वामी के प्रति अत्यन्त भक्ति पूर्वक नमस्कार है कि जिनकी यथार्थ तत्त्व प्ररूपणा से अनन्त काल नहीं प्राप्त किया ऐसे यथार्थ मोक्षमार्गको समझनेका अवसर प्राप्त हुआ है तथा इस ओर की रुचि प्रगटी है। अब आन्तरिक हृदय से यह भावना है कि आपका उपदेशित हितमार्ग मेरे अन्तर में जयवंत रहे तथा उसपर अप्रतिहत भाव से चलने का बल मेरे में प्राप्त हो। वीर निर्वाण सं० २४७९ नेमीचन्द पाटनी Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.comPage Navigation
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