Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ७. बन्ध अधिकार विषय बन्ध के कारण का कथन ऐसे कारणरूप आत्मा न प्रवर्ते तो बंध न हो ऐसा कथन मिथ्यादृष्टिके बंध होता है उसके आशय को प्रगट किया है और वह आशय अज्ञान है ऐसा सिद्ध करते हैं अज्ञानमय अध्यवसान ही बंध का कारण है बाह्य वस्तु बंधका कारण नहीं है, अध्यवसान ही बंधका कारण है ऐसा कथन अध्यवसान अपनी अर्थक्रिया कर्त्ता नहीं होनेसे मिथ्या है मिथ्यादृष्टि अज्ञानरूप अध्यवसानसे अपनी आत्माको अनेक अवस्थारूप करता है ऐसा कथन यह अज्ञानरूप अध्यवसान जिसके नहीं है उसके कर्मबंध नहीं है यह अध्यवसान क्या है ऐसे शिष्यके प्रश्न का उत्तर इस अध्यवसानका निषेध है, वह, व्यवहारनयका ही निषेध है जो केवल व्यवहारका ही आलम्बन करता है वह अज्ञानी और मिथ्यादृष्टि है; क्योंकि इसका अवलम्बन अभव्यभी करता है । व्रत, समिति, गुप्ति पालता है, गयारह अंग पढ़ता है, तो भी उसे मोक्ष नहीं है शास्त्रोंका ज्ञान होने पर भी अभव्य अज्ञानी है अभव्य धर्म की श्रद्धा करता है तो भी उसके भोगके निमित्त हैं, मोक्ष के निमित्त नहीं हैं व्यवहार - निश्चयनयका स्वरूप रागादिक भावोंका निमित्त आत्मा है या परद्रव्य ? उसका उत्तर आत्मा रागादिक का अकर्त्ता किस रीति से है, उसका उदाहरण पूर्वकथन गाथा २३७ - ४१ २४२-४६ २४७-५८ २५९-६४ २६४ २६६-६७ २६८–६९ २७० २७१ २७२ २७३ २७४ २७५ २७६-७७ २७८-८२ २८३-८७ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com ३५२ २५ पृष्ठ ३५३-५७ ३५७-६१ ३६२-७१ ३७२-७६ ३७६ - ७८ ३७८-८० ३८१-८२ ३८३-८५ ३८५-८६ ३८७-८८ ३८८-८९ ३८९-९० ३९०-९१ ३९१-९३ ३९४-९९ ४००-०५

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 ... 664