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समयसार
७. बन्ध अधिकार
विषय
बन्ध के कारण का कथन
ऐसे कारणरूप आत्मा न प्रवर्ते तो बंध न हो ऐसा कथन
मिथ्यादृष्टिके बंध होता है उसके आशय को प्रगट किया है और
वह आशय अज्ञान है ऐसा सिद्ध करते हैं
अज्ञानमय अध्यवसान ही बंध का कारण है
बाह्य वस्तु बंधका कारण नहीं है, अध्यवसान ही बंधका कारण है
ऐसा कथन
अध्यवसान अपनी अर्थक्रिया कर्त्ता नहीं होनेसे मिथ्या है मिथ्यादृष्टि अज्ञानरूप अध्यवसानसे अपनी आत्माको अनेक अवस्थारूप करता है ऐसा कथन
यह अज्ञानरूप अध्यवसान जिसके नहीं है उसके कर्मबंध नहीं है यह अध्यवसान क्या है ऐसे शिष्यके प्रश्न का उत्तर
इस अध्यवसानका निषेध है, वह, व्यवहारनयका ही निषेध है जो केवल व्यवहारका ही आलम्बन करता है वह अज्ञानी और मिथ्यादृष्टि है; क्योंकि इसका अवलम्बन अभव्यभी करता है । व्रत, समिति, गुप्ति पालता है, गयारह अंग पढ़ता है, तो भी उसे मोक्ष नहीं है
शास्त्रोंका ज्ञान होने पर भी अभव्य अज्ञानी है
अभव्य धर्म की श्रद्धा करता है तो भी उसके भोगके निमित्त हैं,
मोक्ष के निमित्त नहीं हैं
व्यवहार - निश्चयनयका स्वरूप
रागादिक भावोंका निमित्त आत्मा है या परद्रव्य ? उसका उत्तर आत्मा रागादिक का अकर्त्ता किस रीति से है, उसका उदाहरण पूर्वकथन
गाथा
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