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समयसार
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२७२
गाथा
५. संवर अधिकार विषय संवरका मूल उपाय भेदविज्ञान है उसकी रीतिका तीन गाथाओं में
कथन भेद विज्ञानसे ही शुद्धआत्मा की प्राप्ति होती है ऐसा कथन शुद्धआत्मा की प्राप्ति से ही संवर होती है ऐसा कथन संवर होने का प्रकार - तीन गाथाओंमें । संवर होनेके क्रमका कथन, अधिकार पूर्ण
१८१-१८३ १८४-१८५
१८६ | १८७-१८९ | १९०-१९२ |
२७३-७७ २७७-७९ २७९-८० २८१-८३ २८४-८८ |
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गाथा | १९३ | | १९४ | | १९५ / १९६ | १९७ |
२८९
पृष्ठ | २९०-९१ २९१-९२
२९३ |
२९४ २९५-९६ |
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१९८-१९९ |
२०० | २०१-०२ | |
२९७-९८ २९८-९९ ३०१-०४
३०४-०५
६. निर्जरा अधिकार विषय द्रव्यनिर्जरा का स्वरूप भावनिर्जरा का स्वरूप ज्ञानका सामर्थ्य वैराग्य का सामर्थ्य ज्ञान-वैराग्य के सामर्थ्य का दृष्टांतपूर्वक कथन सम्यग्दृष्टि सामान्यरूपसे तथा विशेषरूपसे स्व-परको कई रीतिसे
जानता है उस सम्बन्धी कथन सम्यग्दृष्टि ज्ञान-वैराग्य सम्पन्न होता है रागी जीव सम्यग्दृष्टि क्यों नहीं होता है उस सम्बन्धी कथन अज्ञानी रागी प्राणी रागादिकको अपना पद जानता है उस पदको
छोड़ अपने एक वीतराग ज्ञायकभावपदमें स्थिर होनेका उपदेश आत्माका पद एक ज्ञायकस्वभाव है और वह ही मोक्षका कारण है;
ज्ञानमें जो भेद है वे कर्मके क्षयोपशमके निमित्तसे हैं ज्ञान ज्ञानसे ही प्राप्त होता है ज्ञानी परको क्यों नहीं ग्रहण करता ऐसे शिष्यके प्रश्नका उत्तर रिग्रहके त्यागका विधान ज्ञानीके सब परिग्रहका त्याग कर्मके फलकी वांछासे कर्म करता है वह कर्मसे लिप्त होता है। ज्ञानीके वांछा नहीं होनेसे वह कर्मसे लिप्त नहीं होता, उसका दृष्टांत द्वारा कथन सम्यक्त्वके आठ अंग हैं उनमेंसे प्रथमतो सम्यग्दृष्टि निःशंक तथा
सात भय रहित हैं ऐसा कथन है निष्कांक्षिता, निर्विचिकित्सा, अमूढत्व , उपगूहन, स्थितिकरण,
वात्सल्य, प्रभावना-इनका निश्चयनयकी प्रधानता से वर्णन
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२०४ २०४-०६
२०७ | |
२०८ | २०९-१७ |
३०६-०८ ३०९-१२ ३१२-१३ ३१३-१४ ३१४-२५
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२१८-२७
३२६-३५
२२८-२९
३३६-४२
२३०-३६
२४२-५१
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