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समयसार
२२२
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३. पुण्य-पाप अधिकार विषय शुभाशुभ कर्मके स्वभावका वर्णन | दोनों ही कर्म बंधके कारण हैं | इसलिये दोनों कर्मोंका निषेध उसका दृष्टांत और अगम की साक्षी ज्ञान मोक्ष का कारण है। व्रतादिक पाले तो भी ज्ञान बिना मोक्ष नहीं है पुण्यकर्म के पक्षपाती का दोष ज्ञानको भी परमार्थस्वरूप मोक्षका कारण कहा है और अन्यका
निषेध किया है कर्म मोक्षके कारण का घात करता है ऐसा दृष्टांत द्वारा कथन कर्म आप ही बंध स्वरूप है कर्म बंधका कारणरूप भावस्वरूप है अथात् मिथ्यात्व-अज्ञानकषायरूप है ऐसा कथन और तीनों अधिकार पूर्ण
गाथा १४५ |
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२३१ २३२-३३ २३४-३५
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१५५-१५६ १५७–१५९
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२३५-३७ २३८-४० २४०-४१
१६१-६३
२४१-४७
२४७
पृष्ठ
गाथा |
१६४-६५
२४९-५०
४. आस्रव अधिकार विषय आस्रवके स्वरूपका वर्णन अर्थात् मिथ्यात्व, अविरत, कषाय और योग-ये जीव अजीवके भेदसे दो प्रकारके हैं और वे बन्धके
कारण हैं ऐसा कथन ज्ञानी के उन आस्रवोंका अभाव कहा है राग-द्वेष-मोहरूप जीवके अज्ञानमय परिणाम हैं वे ही आस्रव हैं रागादिक बिना जीवके ज्ञानमय भाव की उत्पत्ति ज्ञानीके द्रव्य आस्रवोंका अभाव ज्ञानी निरास्रव किस तरह है ऐसे शिष्यके प्रश्न का उत्तर अज्ञानी और ज्ञानीके आस्रवका होना और न होनेका युक्ति पूर्वक
वर्णन राग-द्वेष मोह अज्ञान परिणाम हैं वही बन्धका कारणरूप आस्रव है वह ज्ञानीके नहीं है; इसलिये ज्ञानीके कर्मबंध भी नहीं है, अधिकार पूर्ण
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