Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 5
________________ y 卐 + + + + + थी ही नहीं। पर्याय की अशुद्धता मिट कर वस्तु पूर्ण रूप से शुद्ध ले जाएगी। समय शब्द की व्याख्या करते हुए आचार्य लिखते है कि "जो एक साथ ही (युगपद् जानना और परिणमन करना यह दोनों क्रियाएं एकत्व पूर्वक करें वह समय है। यह जीव नामक पदार्थ एकत्व पूर्वक एक ही समय में परिणमन मी करता है और जानता भी है। इसलिए समय है।" इससे साबित होता है कि इस आत्मा में एक ही समय में जाननापना और रागादिकरूप परिणमन दोनों हो रहे हैं। जाननापना स्वभाव से उठ रहा है। और रागाविक रूप परिणमन पर के सम्बन्ध से हो रहा है। इसको इस प्रकार समझना चाहिए जैसे चीनी को आग पर रख कर चासनी बनाई जाए वहां पर एक ही समय पर मीठापना भी है और गर्मपना भी है। मीठापना चीनी के स्वभाव से आ रहा है। उसके होने में ही चीनी का होना है जबकि गर्मपना अग्नि के सम्बन्ध से आ रहा है। मीठापना चीनी का स्वभाव है। वह दृव्य दृष्टि का विषय बनता है। जबकि इसी प्रकार गर्मपना अथवा ठण्डापना पर्याय दृष्टि का विषय है। मीठापना और गर्मपना दोनों काम एक साथ हो रहे हैं जबकि उसमें ठण्डे होने की शक्ति विद्यमान है इसी प्रकार आत्मा में मीठेपने की जगह ज्ञान दर्शन रूप है जो उसका स्वभाव है। वह त्रिकाल एक रूप है जिसके होने से आत्मा का होना है। चीनी के गर्भपने की जगह आत्मा में रागादिक हो रहे है जो विकारी भाव है पर के सम्बन्ध से हो रहे हैं। जबकि वीतराग रूप होने की शक्ति विद्यमान है। रागादिक होते हुए भी आत्मा ने अपने निज ज्ञानदर्शन स्वभाव को नहीं छोड़ा है जैसे चीनी कितनी ही गर्म क्यों न हो जाए, परन्तु अपने मीठेपने को नहीं छोड़ती है। जानने वाला आप ही चेतन है। आचार्य उसको सम्बोधन कर रहे है कि "तू अपने को रागादिक रूप तो। अनुभव कर रहा है, शरीर रूप तो अनुभव कर रहा है, तु अपने को वेतन रूप अनुभव क्यों नहीं कर लेता, जैसा तू अनादि अनंत रूप है। रागादिक बाहर से आए हुए है, तेरे स्वभाव में प्रवेश नहीं करते। आप ही अपने को अनुभव करने वाला है। ज्ञातापना और रागादिक एक साथ है, परन्तु अपने को रागादिक रूप अनुभव कर रहा है, अता रूप नहीं करता। यह कैसी विचित्रता है।" "जैसा एकत्व शरीर और राग में तूने स्थापित कर रखा है वैसा अपनापना अपने ज्ञान स्वभाव में स्थापित कर ले। तब शान के स्तल पर आकर तू देखे तो अपने को ज्ञान रूप पाएगा और रागादिक शरीर आदि के होते हुए भी उसका कर्ता नहीं रहेगा। तू तो ज्ञान रूप है, रागादिक चाहे शुभ हो या अशुभ, तू तो उसका जानने वाला है, उस रूप नहीं है।" एक त्रिकोण बनाया जाए और उसके ऊपर के सिरे पर झान स्वभाव को रखें, सीधी लाइन के एक म 卐 卐 + +9 5 95959 5 + + + + 9 5

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