Book Title: Samayprabhrut Author(s): Kundkundacharya, Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi View full book textPage 3
________________ 9 + हमें सन्तोष है कि स्वाध्याय प्रेमियों ने प्रकाशनों में पूर्ण रुचि दिखाई है और ग्रन्थों का सदुपयोग उचित मात्रा में हुआ है। ट्रस्ट ने भरसक प्रयास किया है और आवश्यकता और मांग के अनुसार आवश्यकता प्रकट करने वालों को बराबर ग्रन्थ मेंट स्वरूप मेरे सर और अब भी पत्रमा माये। मेग पागल मार्तण्ड की एक-एक कापी सभी यूनिवर्सिटियों में भेजी गयी। योगसार की १०० कापी अन्य समाज में वितरण की गयीं। समय सार तो ग्रन्याधिराप है। भगवान कुंद कुंद की रचना जिस पर अमृतचंद्र स्वामी की संस्कृत टीका और कलस, पंडितवर जयचंद जी छावड़ा जयपुर की भाषा टीका का अभी प्रकाशन किया जा रहा है। समय सार जी ग्रन्थ तो उपलब्ध है, परन्तु पं. जयचंद जी की टीका जयपुरी भाषा में उपलब्ध नहीं हो रही थी, इसलिए भा. जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था द्वारा प्रकाशितवीर निर्वाण सं. २४६८ में समय सार जी की टीका के अनुसार यह प्रकाशन किया गया है। पं. जयचंद जी छावड़ा की हिन्दी टीका सर्वोपरि रही है। नये विभागों को खोलकर यह टीका र सर्वसाधारण के कल्याण योग्य बनाई गई है। जैन समाज पर उनका महान् उपकार है। यह ग्रन्याधिराज है। इसका स्वाध्याय करके आत्मा के अन्तस्तत्व को प्राप्त किया जा सकता है। यह तो जिनागमों का प्राण है। इसका प्रकाशन करना ट्रस्ट के लिए गौरव की बात है। ट्रस्ट अपना प्रयास सफल समझेगा, अगर महानुभाव इसके स्वाध्याय के माध्यम से अपने आत्म स्वरूप की रुचि बढ़ाएंगे और अनुभव को प्राप्त करेंगे। ___ मैं श्री बाबूलाल जी का आभारी हूँ। वे सदा ज्ञानाभ्यास में लगे रहते हैं। उन्होंने प्रस्तावना लिख मार्गदर्शन किया है। श्री सुभाष जैन, शकुन प्रकाशन ने ग्रन्थ छपाने में हमें पूरा सहयोग दिया, हम उनके भी आभारी है। 999+9F + 555555 5 5 5 6 + + शान्तिलाल जैन अध्यक्ष, श्री मुसहीलाल जैन चेरीटेबल ट्रस्ट २/४, अंसारी रोड दरियागंज, नयी दिल्ली-११०००२ + +Page Navigation
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