Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 3
________________ उपोद्घात ' साध्वी व्याख्यान निर्णय : ' पुस्तक के लेखक पूज्य जैनाचार्य श्री मणिसागरसूरिजी जैन जगत् में सुप्रसिद्ध विद्वान् हैं। आप श्री बृहत्पर्युषणा निर्णय:, श्रगमानुसार मुहपत्ति निर्णयः, देवद्रव्य निर्णायः एवं कल्पसूत्र अनुवाद यदि कृतियों के द्वारा साहित्य सेवा करके जनता का अच्छा हितसाधन किया है एवं जैनागमों को राष्ट्र भाषा हिन्दी में अनुदित कर जनसाधारण तक पहुंचाने की आपकी योजना अवश्य ही श्लाघनीय है । इस पुस्तक का विषय नाम से ही स्पष्ट है । आश्चर्य तो इस बात का है कि जिस जैन धर्म ने व्यक्ति स्वातन्त्र्य के चरम विकाश का बीड़ा उठाया । जाति वर्ण और लिंग भेद के महत्व को निर्मूल कर "गुणा-पूजा स्थानं गुणीषु न च लिंगं न च वयः " का आदर्श उपस्थित कर मोक्ष का द्वार प्राणी मात्र के लिए खुला कर दिया उस पवित्र धर्ममें आज साध्वियों के व्याख्यान देने के निषेध का प्रश्न उपस्थित किया जाता है। जिनका जीवन ही स्व-पर कल्याण के लिए, ज्ञान ध्यान उपदेश के लिए है वे यदि व्याख्यान ज्ञान दानादि न करें ? तो क्या करें? विद्वान् श्राचार्य श्री ने प्रस्तुत प्रश्न पर शास्त्रीय प्रमाण व युक्तियों के साथ इस ग्रन्थ में यथोचित प्रकाश डाला है अतः मैं उसका पिष्टपेषण न कर कुछ अपने विचार पाठकों के समक्ष उपस्थित करता हूँ । जैन धर्म में स्त्री जाति को धार्मिक दृष्टि से पुरुष के समान अधिकार दिया गया है । उसे मानव के अति उच्चतम विकाश केवलज्ञान और मोक्ष तक की अधिकारिणी माना गया है । चतुर्विध संघ में पुरुषों के समान ही साध्वियों और श्राविकाओं का स्थान है,श्वेताम्बर जैनागमों में सैकड़ों साध्वियों [ दीक्षित स्त्रियां ] के मोक्ष जाने का उल्लेख है । उन्नीसवें तीर्थंकर श्रीमल्लिनाथ भगवान् भी स्त्री जाति के प्रति थे । भगवान् ऋषभदेव स्वामी ने अपनी ब्राह्मी सुन्दरी पुत्रियों को ६४ कलाएं सिखाई थीं और वे बाहुबलिके केवल ज्ञानोपार्जन में निमित्त कारण हो कर अन्त में मोक्ष गई । सच्चरित्रता के लिए १६ सतियों के नाम आज भी नित्य प्रातः काल स्मरण किये जाते हैं । प्रत्येक तीर्थङ्कर के संघ में साधु श्रावकों से साध्वी श्राविका की संख्या अधिक थी । उत्तराध्ययन सूत्र में कामवासना के द्वारा संयम मार्ग से विचलित होते हुए रहनेमि को सती राजीमती ने बोध देकर संयम में स्थिर करने का उल्लेख है । ज्ञाता सूत्र में मल्लिकुवरि [ १६ वें तीर्थकर ] द्वारा ६ मित्र राजाओं के प्रतिबोध एबं सती द्रौपदी का जीवन चरित्र है, अर्थात् स्त्री जाति के प्रति भी समान आदर व्यक्त किया गया है । आज कल के समय में स्त्री व्यक्ति के परिचय देने की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। जगत के बड़े से बड़े व कठिन से कठिन कार्य स्त्रियां कर सकती हैं यह पाश्चात्य देश के विकशित स्त्री समाज व भारतीय महिलाभों में पं० विजय लक्ष्मी, सरोजिनी नायडू, कैप्टन लक्ष्मीबाई आदि ने भली भांति सिद्ध कर दिखाया. है । यदि उनके विकाश में कमी है तो उसका उत्तरदायी-पुरुष समाज ही है जिसने चिरकाल से स्त्री जाति को हीन समझने और दबाये रखने की नीति धारण कर रखी है। वास्तव में स्त्री और पुरुष में लिङ्ग भेद के शारीरिक भेद के सिवा और कोइ आत्मविकाश के कारणों में भेद नहीं है । वही तेजपुंजमयी आत्मा दोनों के अन्दर बिराजमान है कई बातों में तो पुरुषों से भी बढ़कर स्त्री जाति का महत्व है I Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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