Book Title: Ratnachuda Rasa
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 10
________________ भूमिका १. आधारभूत हस्तप्रतसामग्री श्री मोहनलाल दलीचंद देशाई 'रत्नचूडरास' (=र.रा.)नी चौदेक प्रतोनुं वर्णन आप्यु छे. आ उपरांत पण तेनी बीजी केटलीक प्रतो मळे छे. देशाई नेांधेली प्रतोमां लेखनसंवत धरावती प्रतोमा १५७, १६०७, १६०८, १६३९, १६५०, १६६१, ९६६३, १६७६, १७९५ ए सालवाळी प्रतो छे. घणीखरी प्रतोमा रचना संवत १५०९ आपेलो छे, परंतु अक प्रतमा १५१५ अने बीनो एक प्रतमां १५०१ होवानु देशाईए उतारा आपीने दर्शाव्यु छे. कोईक प्रतमां काना बामवाळी कड़ी नथी: अहीं संपादित पाठ माटे बार हस्तप्रतो उपयोगमां लीधी छे, जेमाथी चार ओछी महत्त्वनी होईने तेमने। अंशत: उपयोग को छे. ग प्रत सं. १७१५नी अने च प्रत सं. १७२६नी छे. बाकीनी प्रतोमा लेखनसंवत नथी, आ उपरांत पाछळथी प्राप्त करेली सं. १५५९नी एक प्रतमा महत्वना पाठांतर परिशिष्टमां नेांध्यां छे. उपयोगमां लीधेली प्रतो भारतीय विद्याभवन (मुंबई)नो हस्तप्रत संग्रह, अगरचंद नाहटानो संग्रह, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर (अमदावाद)नो संग्रह तथा अन्य भंडारोमाथी प्राप्त करी हती. आमाथी क अने ग प्रत ते देशाईए नेधेिली ५ अने ६ क्रमांकवाळी प्रतो छे. आ अरांत अमदावादना डेलाना उपाश्रयना हस्तातभंअरमी बे प्रतो पाछळथी जोवा मळी छे. तेमांनी १२३४९ क्रमांकवाळी प्रतमा १८ पत्र छे, ३४५ कही छ, भने संवत १६९३ना माघ सुइ १३ ने बुधवारे ते लखायेली छे. अहींना संपादन माटे उपयोगमां लीधेल ग प्रा आ ज परंपरानी छे. डेलाना उपाश्रयनी बीजी प्रतनो क्रमांक १२३८६ के. मा १२ पत्र छे अने लेखनसंवत १६३७ छे. ते 'ऊनाउया मध्ये' चेला हरजीओ लखी हतो. आ प्रतमां रचना संवत १५०१ ('पनर एकोत्तरइ रचिउ प्रबंध') आपेलो छे. बीजी प्रतोना पाठ साथे सरखावतां आ प्रतना पाठो अनेक स्थळे फेरवेला छे--कोईओ पोतानी निपुणता बताववा मूळना पाठो वारंवार बदल्या होवानी चोकस छाप पडे छे. विविध प्रकारना प्रक्षेपो छे. उपर्युक्त प्रतामांथी क प्रतने ते जोडणीपद्धतिनी प्राचीनता जाळवी राखती होवाथी तथा प्राचीनतानां अन्य लक्षणोने कारणे, मुख्य गणी छे. ख, ग, घ, च, झ, ट, ठ ए प्रतोनु अलग जूथ करी शकाय अने ला. द. विद्यामंदिरनी स. १५५८ बाळी प्रत पण ए ज परंपरामां मूकी शकाय, आमां पण झ अने ट परस्पर घणी मळती छे अने तेमनो आधार एक ज होवान जणाय छे. ते बने प्रतामा केटलाक समान प्रक्षेपो मळे छे. ख प्रत आ बाबतमा तथा बीजी केटलीक विगतोमा झ, ट प्रतोथी जुदी पडे छे, च प्रतनु वलण पण केटलीक बाबतमां अलग पडवानु छे. ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड ए प्रतामा केटलोक अरसपरस प्रभाव पडेला छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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