Book Title: Ratnachuda Rasa Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 18
________________ भूमिका शुभशीलङ्कृत 'प्रबंध- पंचशती' (के 'पंचशती - प्रबोध' ) मां ७३मो प्रबंध अन्यायपत्तन गयेला शेठपुत्रने लगतो छे तेमां रत्नचूडकथानो ज ड्रंक सार आपेलो छे. आडकथाओ गाळी नाखी छे. अन्याय राजा, अबिचारक मंत्री, सर्वग्राही आरक्षक, अशान्ति पुरोहित, गृहीतभक्ष शेठ, मूलनाश शेठपुत्रए नामो रसत्रद छे, ते ज ग्रंथमां ५३४मा प्रबंधमां र. रा. वाळु वढकणी सोढीनु दृष्टांत विगतो. बाळु अने वधु स्पष्ट छे. आगमगच्छना मुनिसिंहसूरिना शिष्य शिलरत्न, तेना शिष्य आनंदप्रभ, तेना शिष्य आनंदरत्न, तेमना शासनमां थयेला महोपाध्याय मुनिसागर ( के मतिसागर ) ना शिष्य पंडित उदयधर्मगणीए सं. १५०७मां 'वाकयप्रकाश औक्तिक', स. १५४३मां 'मलयसुंदरीरास' अने स. १५५०मां 'कथाबीसी'नी रचना करी छे. ६ ए ज उदयधर्मे दान, शील, तप अने भावना उपर इप्टांतकथाओथी युक्त एव संस्कृतमां 'धर्मकल्पद्रुम' नामनुं एक औपदेशिक प्रकरण पण रच्युं छे. ७ तेना आठ पल्लवमांथी बोथा पल्लवमां रत्नपालराजानी कथामां, ज्ञानगर्भ मंत्रीए पोताना राजानुं गयेलु राज्य केवी रीते बुद्धिबळे पाछु वाळयुं ए लौकिक कथा शृंगारसुंदरी सुबुद्धिमंत्रीने एक दृष्टांत लेखे कद्दे छे. ('धर्मकल्पद्रुम', पल्लव ४ श्लोक ११६ थी १४५; गुजराती अनुवाद पृ. १६५-१७०). आ कथा ते र. रा.मां काणाने यमघंटा बुद्धिबळ उपर जे सुबुद्धिमंत्रीनुं दृष्टांत कहे छे ते ज छे 'धर्मकल्पद्रुम'मां कथा संक्षेपमां आपेली छे, परंतु घटनाअनो समान क्रम, केटलीक सूचक समान विगतो अने केटलुक शाब्दिक साम्य - ए बधा उपरथी लागे छे के कां तो तेना आधार 'रत्नचूडरास' होय अथवा तो कोईक त्रीजी रचना २. रा. अने 'धर्मकल्पद्रुम'वारी कथा ए बनेना समान मूळ तरीके होय. सुबुद्विवाळी कथामांना भागमां रोज एक भारवाहक बळदवाळा बीजा राजपुत्रवाळो प्रसंग 'कथासरित्सागर'नी एक कथामा वस्तुरूपे मळे छे. (जुओ; 'ओशन ओव स्टोरी', ५, पृ. १८५-१८६. नोर्मन ब्राउने आ कथाघटकनो विगते अभ्यास कये छे. जुओ, 'स्टडीझ इन ओनर ओव एम. इस फिल्ड', १९२०, ८९ - १०४. ) ४. केटलाक कथाघटको १७ मूर्खकथाओ टोम्प्सननी कथाघटक सूचिमा जे विभागमा क्रमांक १७००थी २७९९ मूर्खकथाओ माटे छे, तेमां मूर्खाईभ अज्ञान (१७३० - १७४९), मूर्खाईभरी गेरसमजो (१७५० - १८४९), हकीकतोनी मूर्खाईमरी अवगणना (१८५० - १९९९), मूर्खाईभर्यु मानभूलाणु (२००० - २०४९), मूर्खाईभरी ट्रंकदृष्टि (२०५०-२१९९), मूर्खाईभरी तर्कहीनता ( २२०० - २२५९), मूर्खाईभर्या वैज्ञानिक सिद्धांतो ने वादो (२२६० - २२९९), भोळाणा के बाघाईवाळा मूर्ख ( २३०० - २३४९), भडभडिया मूर्ख (२३५०-२३६९), कुतूहळघेला मूर्ख (२३७० - २३९९), मूर्खाईभयु अनुकरण (२४००-२४४९), ६ 'जैन साहित्यको संक्षिप्त इतिहास', पृ. ५१४, ५२४; 'जन गूर्जर कविओ', १, पृ. ६२-६३. ७ दे. ला. जै. पु. ग्रंथांक ४०, १९१७; जै. ध. प्र. स. १९२८: कुवरजी आनंदजी कृत गुजराती अनुवाद, १९२८. छेटे ले जर्मनमां १९११, १९१२ अने १९१३मां आमांनी कथाओना अनुवाद करेल होवानुं विन्दर्निय से 'हिस्टरी ओव इन्डियन लिटरेचर', २, ५४५ उपरं नोंव्यु छे. वेलणकर ('जिनरत्नकोश', पृ. १८८) ९ पल्लव होवानुं कछे छे ते भूल छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78