Book Title: Ratnachuda Rasa Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 22
________________ रत्नसूरि-शिष्य-कृत रत्नचूड-रास दूहा सरसति-देवी-पाय नमी मागउं उचित पसाउ रत्नचूड-गुण वर्णवठं दान-विसइ जसु भाउ १ जंबूदीव-माहि अछइ भरह-खित्त अति-चंग " तामलती-नयरी तिहां राजा अजित-नरिंद २ । तिणि नगरिई जण जे वसई वर्ण अढारइ लोक भोग-पुरंदर भोगवई सुख-संपति-सुरलोक ३ १. १. क. सरसतिसामणि, त. सामिणि; ख. पाइ, ग. घ. छ. झ. ट. ठ. पन. २. ख.ग. छ. ट. मागिसु, घ. ठ. मागिसि, च. झ. मागु, ड. मागिस, ढ. मागु, त. मागु; ख. छ. पसाय, ग. उचत, घ. वचन पसऊ, च. चित्ति पसाउ, ड. उचित्त. ३, क. रत्नचुड °, झ. ढ. रतनचूड ग. च वणवु, घ. वर्णवू, झ. वरणवट, ठ. ड. वण्णवू, ढ. त. वर्णवु. ४. ग. च. छ. ड. ढ. त. विषय, ठ. दाषवषि, क. ढ. जसवाउ, ख. जसु भाय, ग. घ. च. झ. ठ. ड. जस भाउ, छ. जस भाय, ट. ज भाउ. २. १. क. जंबूदीपिहि, ख. जंबूदीवह. घ ढ. जबूद्वीप °, च. छ. स. ट. त. जंबूदीप ; . जंबू'दीव, ड. जंबूद्वीम, घ. छ.. मां हिं, झ. ट. ठ. ड. ढ. ° मझारि, त. महा; ख छई, च. अछि, झ, ट. ठ. ड. ढ. वर. २. क. भरतक्षेत्र, ख. च. ड. भरतषेत्र. ग. भरतखेत्र, घ. च. त. भरतक्षेत्र, ट. भरह खित, ठ. भरतषित; ३. क. तामलतां, ख तामलस्ती° ग. तामली, ग. ठ तांमलती; ख. छ. झ. ट. त. नगरी, च. गमरो ढ. नयरि; ठ. जिहा,ड. जिहां. ४. ख ° नरिद, ग. छ. ° निरिंद, ठ. ° निरंद. ३. 1. ख. त. तीणइ, .ग तिणी, च. तेणिं, छ. ढ. तेणी, ठ. तणि, ड. तेणि; ख. नरीयरी, ग. छ. झ. ट. ठ. ड. नयरी, घ. नथरि, च. नयरिं, ढ. नगरी, त. नगरीइं; ख. 'जम' नथी, ग. छ. जन, च. जे जन, ख. झ. ट. बहुजण, ठ. जे जिण, ड. ढ. जे जण; ग. वसई घ. वशइ, ठ. विसइ. २. क. ग. छ. झ. ठ. ड. वरण, घ. अरण; क. अढारई, च. अढार वर, छ. अहारे, ठ. अढारि, ड. अढारेइ. ३. क, भोगवई, च. भोगवे, ज्ञ. ट. अनोपम भोगवइ. ४. ख. सुध, ० छ. ज्ञ. ठ. ड. सुष; क संपन, च संपति; स्व.घ. संयोग. रत्न-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78