Book Title: Ratnachuda Rasa
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 59
________________ रत्नचूड-रास वात करतां राति जि गई एतलइ राति बिवहुर जि थई । मइ कहिउ पहिलउ बोलसिइ जेह दस लाडूआ हारिसिइ तेह २८१ तिहां आगलि रहियउ छइ चोर दृढपणइ छइ कठिन कठोर सर्व लेई-नइ तेह जि गयउ हूं अणबोलिउ थई-नइ रहिउ २८२ दस लाडूआ-नइ कीधइ गमि मई तउ सर्व-बस्व नीगमि एहवउ मूरख जाणउ तुम्हे धर्मलाभ त उ लेसिअम्हे २८३ त्रीजउ बोलइ तीणइ वारि हूं तु मूरख अतिहि गमार कलत्र बे तु मई परिग्रही बिन्हइ बाथई आवइ सही २८४ विहंची आपि अधलउ देह कंदल-नउ तव आविउ छेह एक वार घरि आविउ जाम जिमवा बइठी एक जि ताम २८५ बीजीई बेहु धोया पाग जिमती हेरइ जाणइ काग जिमतां ऊठी पग भांजीउ बीजीइ बीजउ गांजीउ २८६ एहवउ मूरख मूह-नई जाणि धर्म-लाभ अम्हे लेसिउं प्राणि चउथउ तिणि वारिउ कलकलिई धर्मलाभ लेवा टलवलिउ २८७ बे घरिणि हूंती अम्ह-तणइ एकि खाटि सुसिउं इम भणइ डाबइ पासइ सूती एक जिमणई पणि बीजी सुविवेक २८८ २८०. पछी झ.मां वधारो : नगरपासि देवी देहरइ, अह्मे जई सूता सुषभरइ. २८१. १. ख. ग. ठ. नही आरति; झ. आरती नही करता वात. २. ग.ठ. तिवारई गई विवहर राति; झ. तिणि वेला हुई मध्यराति. ३. झ. आवइ नींद. २८२. 1. क. तिणि थानकि रहित घणा चोर; ग. आगइ रहिउ थु; झ. आगइ तिहां. २. ख. नर परउ; ज्ञ. दुष्टपगइ. . २८३. २. ग. सर्वसु; झ. चोर आपणइ थानकि रमिउ. २८४. ३. ख. झ. संग्रही. ४. ग बिहु ए. २८६. ३. ख. झ. जिमली. २८७. १. ग.झ. हुय अजाण. ३. ख. कलमल्यु, झ. ऊजमिउ. ४. झ. कमकमिउ. २८८. १. क. बेहु. २. ख. सूती, झ. ठ. सूईइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78