Book Title: Ratnachuda Rasa
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
Catalog link: https://jainqq.org/explore/002641/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RATNACŪDA RASA EDITED BY DR. H. C. BHAYANI L. D. SERIES 63 GENERAL EDITORS DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH भई भारती - O INSTITUTE OF INDOLO L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RATNACŪDA RĀSA EDITED BY L. D. SERIES 63 GENERAL EDITORS DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH DR. H. C. BHAYANI L. D. JNSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9 आमंति नवाद Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by K. Bhikhalal Bhavsalt Proprietor Shri Swaminarayana Mudrana Mandira 46, Bhavsar Society, Nava Vadaj, Ahmedabad-380013 Published by Nagin J. Shata Director L. D. Institute of Indology Ahmedabad-380009 FIRST EDITION December, 1977 “Printed with the Financial Assistance of the Government of Gujarat." PRICE RUPEES PRICE RUPEES Rs 4-P. 20 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड रास पंदरमी शताब्दीनी एक दृष्टांतकथायुक्त रास-कृति ( आठ हस्तप्रतोने आधारे संपादित : पाठान्तर अने भूमिका साथे) संपादक डा. ह. चू. भायाणी - - उभारA पत प्रकाशक लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अमदावाद-९ मटाला Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान संपादकीय डा. हरिवल्लभ भायाणी द्वारा संपादित पंदरमी शताब्दीनी प्राचीन गूर्जर रासकृति 'रत्नचूडरास' सौप्रथम प्रकाशित करतां आनंद थाय छे. आवी अनेक प्राचीन गुजराती कृतिओ जैन भंडारोमा उपलब्ध छे. तेमांधी पसंद करी महत्त्वनी अप्रकाशित प्राचीन गुजराती कृतिओर्नु प्रकाशन करवामां आवे तो गुजराती भाषाना विकास उपर सारा प्रकाश पडे. आ दृष्टिले अमे 'प्रद्यम्नकुमार चोपई', 'उपदेशमाला-बालावबोध', 'संधिकाव्यसमुच्चय' अने 'शंगारमंजरी' आ चार अप्रकाशित कृतिआनु प्रकाशन हाथ धर्यु छे. डॉ. भायाणीमे आ कृतिना संपादनने अत्यंत प्रमाणभूत करवा प्रशंसनीय प्रयत्न कर्या छे. उपरांत, तेमणे भूमिकामां कथासार अने रत्नचूड कथा साहित्यनुं विशद आलेखन कर्यु छे. आq सारं संशोधनकार्य करी आपवा बदल आपणे सौ अमना ऋणी छीओ. जूनी गूजराती साहित्यकृतिओना प्रकाशनमा सहकार आपवा बदल गूजरात राज्यना भाषानियामक श्री हसितभाई बुच अने नायब भाषानियामक श्री जोषीपुरानो हु अंत:करणपूर्वक आभार मोमुछ.. आ ग्रंथना प्रकाशनमा आर्थिक सहाय करवा बदल गुजरात सरकारनो हुँ आमारी छु. ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, अमदाबाद-३८०००९ १५ नेवेम्बर, १९७७. नगीन शाह अभ्मक्ष Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम भूमिका १. आधारभूत हस्तप्रत-सामग्री २. कथासार दृष्टांत-कथाओ १०-१२ १२-१३ १३-१४ १४-१५ (१) नटपुत्र रोहानु दृष्टांत (२) विधाताना पराजय पर सुबुद्धि अमात्यनु दृष्टांत (३) बढकणी सोढीनु दृष्ठांत (४) चार मूर्खनु दृष्टांत ३. रत्नचूड कथा-सा हित्य ४.केटलाक कथाघटका रत्नचूड-रास (मूळ पाठ अने पाठांतर) १६-१८ १-१८ परिशिष्ट (सं. १५५८नी प्रतना महत्वना पाठांतर) महत्वना शब्दोनी सूचि ५१-५३ शुद्धिपत्र ५४-५५ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड रास Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका १. आधारभूत हस्तप्रतसामग्री श्री मोहनलाल दलीचंद देशाई 'रत्नचूडरास' (=र.रा.)नी चौदेक प्रतोनुं वर्णन आप्यु छे. आ उपरांत पण तेनी बीजी केटलीक प्रतो मळे छे. देशाई नेांधेली प्रतोमां लेखनसंवत धरावती प्रतोमा १५७, १६०७, १६०८, १६३९, १६५०, १६६१, ९६६३, १६७६, १७९५ ए सालवाळी प्रतो छे. घणीखरी प्रतोमा रचना संवत १५०९ आपेलो छे, परंतु अक प्रतमा १५१५ अने बीनो एक प्रतमां १५०१ होवानु देशाईए उतारा आपीने दर्शाव्यु छे. कोईक प्रतमां काना बामवाळी कड़ी नथी: अहीं संपादित पाठ माटे बार हस्तप्रतो उपयोगमां लीधी छे, जेमाथी चार ओछी महत्त्वनी होईने तेमने। अंशत: उपयोग को छे. ग प्रत सं. १७१५नी अने च प्रत सं. १७२६नी छे. बाकीनी प्रतोमा लेखनसंवत नथी, आ उपरांत पाछळथी प्राप्त करेली सं. १५५९नी एक प्रतमा महत्वना पाठांतर परिशिष्टमां नेांध्यां छे. उपयोगमां लीधेली प्रतो भारतीय विद्याभवन (मुंबई)नो हस्तप्रत संग्रह, अगरचंद नाहटानो संग्रह, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर (अमदावाद)नो संग्रह तथा अन्य भंडारोमाथी प्राप्त करी हती. आमाथी क अने ग प्रत ते देशाईए नेधेिली ५ अने ६ क्रमांकवाळी प्रतो छे. आ अरांत अमदावादना डेलाना उपाश्रयना हस्तातभंअरमी बे प्रतो पाछळथी जोवा मळी छे. तेमांनी १२३४९ क्रमांकवाळी प्रतमा १८ पत्र छे, ३४५ कही छ, भने संवत १६९३ना माघ सुइ १३ ने बुधवारे ते लखायेली छे. अहींना संपादन माटे उपयोगमां लीधेल ग प्रा आ ज परंपरानी छे. डेलाना उपाश्रयनी बीजी प्रतनो क्रमांक १२३८६ के. मा १२ पत्र छे अने लेखनसंवत १६३७ छे. ते 'ऊनाउया मध्ये' चेला हरजीओ लखी हतो. आ प्रतमां रचना संवत १५०१ ('पनर एकोत्तरइ रचिउ प्रबंध') आपेलो छे. बीजी प्रतोना पाठ साथे सरखावतां आ प्रतना पाठो अनेक स्थळे फेरवेला छे--कोईओ पोतानी निपुणता बताववा मूळना पाठो वारंवार बदल्या होवानी चोकस छाप पडे छे. विविध प्रकारना प्रक्षेपो छे. उपर्युक्त प्रतामांथी क प्रतने ते जोडणीपद्धतिनी प्राचीनता जाळवी राखती होवाथी तथा प्राचीनतानां अन्य लक्षणोने कारणे, मुख्य गणी छे. ख, ग, घ, च, झ, ट, ठ ए प्रतोनु अलग जूथ करी शकाय अने ला. द. विद्यामंदिरनी स. १५५८ बाळी प्रत पण ए ज परंपरामां मूकी शकाय, आमां पण झ अने ट परस्पर घणी मळती छे अने तेमनो आधार एक ज होवान जणाय छे. ते बने प्रतामा केटलाक समान प्रक्षेपो मळे छे. ख प्रत आ बाबतमा तथा बीजी केटलीक विगतोमा झ, ट प्रतोथी जुदी पडे छे, च प्रतनु वलण पण केटलीक बाबतमां अलग पडवानु छे. ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड ए प्रतामा केटलोक अरसपरस प्रभाव पडेला छे. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० रत्नचूड-रास २. कथासार तामलती ( = ताम्रलिप्ति ) नगरी, अजित राजा, मणिचूड शेठ, सरस्वती शेठाणी. हीरामाणेकना हारना स्वप्ने पुत्र अवतर्यो नाम रत्नचूड मोटो थतां विद्या शीखवा माटे सौभाग्यमंजरी वेश्याने घेर तेने मूक्यो. विद्या शीखीने आव्यो एटले पिताए तेने परणाव्यो वेश्याने मळवानुं बंध थयुं तेना डंख मनमां राखीने एक वार वेश्याए तेने महेणु मायु" के तुं तारा बापनी लक्ष्मी वापरे छे पण ते तो पोतानी माता साथै विलास करवा जेवुं गणाय. आथी रत्नचूड पिताने समजावी, पांच करोड द्रव्य तेनी पासेथी लई, मालथी वहाण भरी परदेश वेपार अर्थे नीकळयो. पिताए तेने चेतव्यो के कूटकटाह द्वीपमां तु न जतो. त्यांनो राजा, प्रधान तथा चार शेठ धुतारा छे. बनवाजोग ते वहाण कूटकटाह ज आवी पछांच्यां चारेय शेठ मळवा आव्या. एके भाजनुं गपण काढी रत्नचूडने पोताने घेर नोतये. शेठोए (दस करोडमा ) बधेो माल राखी लीधो अने उपरांत बदलामां कशाकथी वहाण भरी देशुं एवं पण वचन आप्यु. रत्नचूडे पैसा मगाव्या त्यारे शेठोए कद्देवराव्युं के तमारो माल तो बीजा कोई लई गया हशे, अमे नथी लीधो. रत्नचूड राजाने फरियाद करवा नीकल्यो. रस्तामां एक काणो मळो. तेणे कहूयुं के तमारा पिता अहीं आवेला त्यारे में तेमनी पासे एक आंख सौनी साक्षीए गीरो मूकेली, तो आ पांच सो दीनार लेा अने मारी आंख पाछी आपो. रत्नचूडे जती वेळा आंख पाछी आपवा कबूल्यु. आगळ जतां माळी सामो मळचो. तेणे चेासर हार भेट आप्यो रत्नचूडे जती वेळा तेने ' कांईक ' भेट आपवानुं वचन आप्यु. आगळ जतां सुतार मळयो. तेणे पावडी भेट आपी. 'पछी तने राजी करशुं एवं तेने रत्नचूडे वचन आप्यु. आगळ जतां एक स्थळे चार वाणियाओ विवाद करता हता के समुद्रमां केटले पाणी हशे ? तेमणे रत्नचूडने पण तेमां संडोध्यो अने ते जो साचु न कही शके तो तेनां बाण हारे एवी शरत करी. आा बधा झगडा अने वांधामांथी छूटवा राजमान्य वेश्यानी सलाह लेवा मित्रे कट्यु. एटले रत्नचूड यमघंटानी पुत्री रणघटाने त्यां पांच्यो सौ यमघंटानी सलाह पूछवा आवे छे एवु रणघंटा पासेथी जाणीने रत्नचूड स्त्रीवेशे रणघटानी सखी तरीके, यमघंटानी पासे भडशे रह्यो. एटलामां चार शेठ आव्या यमघंटाए तेमने कहयुं के तमे रत्नचूडनां वहाण कशाकथी भरी आपवा कं छे पण जो मच्छरनां हाडकांथी भरी आपवानुं ते कहेशे तो तमे फसाशो. ज्यारे शेठो कहे छे के रत्नचूड तो नानो बाक छे, तेने एटली बुद्धि क्यांथी होय, त्यारे यमघंटा सात वरसनो होवा छतां प्रधानपद मेळवनार रोहानुं दृष्टांत कहे छे. (१) नटपुत्र रोहानुं दृष्टांत उजेणीनगरीनो पासे नटोनुं गाम कसेलव नटनो पुत्र नामे रोहो, ते पांच वरसनो थयो त्यारे तेनी माता मरी गई. पिता बीजी स्त्री परण्यो. पुत्रने दूबळो पडेलो जोईने पिताए तेने नवी मा केवोक साचवे छे ते बाबत पूछयुं रोहाए कह्यु 'मारी पहेली मा जुठाबोली हती, क्यारे आ साचाबोली छे, पहेली माता हु रमतो होउ ने ते जमवा बोलावती, त्यारे जो हु Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका ११ जमवा न जाउ तो “पछीथी हुं जमवानुं नहीं आपुं " ओम कहती, पण तेम छतां, हु मोडेथी जाउ तोये जमत्रा आपती, पण आ नवी माता आपेली धमकी बराबर पाळे छे. ' आ वात जाण्या पछी कसेलव पोते ज्यां जतो त्यां रोहाने साथै लई जतो. रोहाए मातानो मद उतारवानुं नक्की कर्यु. एक वार घरमांथी चंद्रना अजवाळामां आवीने पिता सांभळे तेम ते बोल्यो, "वरमांथी कोई पुरुष नीकळयो.” आथो पिता रोहानी नवी माता पर वद्देमायो माताए रोहाने पूछतां तेणे कयुं के मने तु सारी रीते राखे तो हु पितानुं मन तारा तरफ वाई. माता संगत थई. एक अजवाळी राते घरमांथी आवी रोहाए पिताने पोतानो पडछायो बतावतां क "जो ! पेलो पुरुष घरमाथी नीकळयो." पहेलां जेनी वात करेली ते आ ज हतो एम पिताए जाण्यु एटले तेनो वम दूर थयो. बाप साधे उजेणी गयेलो रोहो, बाप कशेक कामे जतां, सिप्रा नदीने तीरे रेतीमां उजेणी नगरी आलेखीने रमतो हतो. त्यां राजा घोडो खेलावतो नीकळयो. रोहाए राजाने कहा, ' तुं घोडों ऊभो राख, नहीं तो नगरनी पनीहारीओ कचराई जशे.' राजाए कह्यं, 'तुं मारो घोडो झाली राख, हु ताडु' नगर जोड' रोहाए क', 'हु' शु' तारो नाकर कुं ?' राजा रोहानी नीडरताथी प्रभावित था. राजसेवके रोहाना परिचय आप्यो अने असाधारण बुद्धिशाळी होईने तेने प्रवान बनाववा सूचव्यु राजा विचारतो राजमहेले गयो. राजाए नटोना गामने एक हाथी मोकलीने आदेश दीधो के हाथी मरी जाय तो ते समाचार आपचा नहीं', अने समाचार आप्या विना पण रहेवु नहीं. हाथी मरी जतां गामना डाह्या वडीलोने रोहाए रस्तो सुझाड्यो अने ते प्रमाणे माणसे राजा पासे जईने हाथी खातो. पीतो, हरतोफरतो के श्वास लेतो न होवानुं जणाव्युं, पण मरी गयो एम न कह्यु राजाए जाण्यु के आ चतुराई रोहानी छे. ते पछी राजाए बकरी मोकली अने सांपती वेळा तेनुं जेटलं वजन हतुं तेटलु वजन अमुक समय पछी पाछी सोंपती वेळा होवु जोईए एवो आदेश गामलोकोने दीघो, रोहानी सलाहथी दररोज खवरावीपीवरावीने बकरोने वाघ देखाडी राजानी शरत पूरी करी. ते पछी राजाए गाडु भरीने तल मोकलाच्या अने ऊंधे मापे लेवा भने चत्ते मापे पाछा आपवा एवो आदेश दीघो. रोहानी सलाहथी तल अरीसानी ऊधी बाजुथी मापीने लोधा, अने चत्ती बाजुना तेला मापे मापी पाछा आप्या. राजाए मीठा पाणीनो कूवो मोकलवा आदेश दीघा, तो रोहाए कहेबराव्य के ते अजाण्यो तमारे त्यां आवतां डरे, तो तमारे त्यांधी एक कुत्रो मोकलो जेनी कोटे बांधीने अमारा कुत्राने मोकलीए राजाए एक ज कूकडो मोकलीने एने लडाववा क. रोहानी सलाहथी तेने अरीसो देखाडीने तेना प्रतिबिंब साथे लडावी बताव्यो. राजाए ज्यारे रेतीनी वाट वणी आपवा कहेवराज्यं त्यारे रोहाए राजाने नमूनो मोकलवा का छेवटे पोताने मळवा आववा राजाए रोहाने आदेश मोकल्यो : तु नहीं मलिन के नहीं नाहीने, नहीं वाहनमां के नहीं पगे, नहीं वाटे के नहीं आडवाटे, नहीं दिवसे के नहीं राते, नहीं अंधारे के नहीं अजवाळे, नहीं छायामां के नहीं तडकामां, नहीं भेट लईने के नहीं खाली हाथे - ए रीते आवजे. एटले नाहीने चंदननो लेन करी, घेटा पर सवार थई, पग भोये अडे ते रीते वाट मरडतो जतो, user दिने, संध्याटाणे, माथे चाळणी मूकीने ते राजाने जईने मळयो राते ते राजाना रक्षक तरीके राजानी पासे सूतो. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ रत्नचूड-रास . पहेला पहोर पछी राजा जाग्यो. रोहो ऊंघी गयेलो. राजाए तेने पाटु मारीने जगाड्यो ने पूछथे, 'तुऊघी गयो हतो?' रोहाए कह्य, 'हु ऊ घी नहोतो गयो, पण विचारतो तो के बीजां पशु छाण करे छे, पण बकरी लींडी केम करे छे.' 'तो तेनु शु कारण ?' राजाए खुलासा पूछया. रोहाए कह, 'बकरीना पेटमां संवर्तक वाय होवाथी गोळ लौंडी बने छे.' ते प्रमाणे बीजे पहोरे राजाए रोहाने धोको मारी जगाड्यो त्यारे तेणे 'हाथी गळेलु काबहार काढे छे त्यारे ते उपरथी अकबंध पण अंदरथी पोलु होय छे' तेनेा खुलासो 'जठराग्निना बळे अंदरनु सत्त्व हरी लेवाय छे' ए रीते आप्यो, त्रीजा पहोरे चटी भरीने राजाए जगाइयो त्यारे रोहाए ‘खटाशथी दांत केम अबाई जाय छे ?' ए समस्यानेा खुलासा एम को के दांत दूधमांथी ऊपज्या होवाथी खटाशथी खाटा थई जाय छे.' चोथे पहोरे ज्यारे राजाए तेने चाबूक फटकारीने जगाड्यो त्यारे तेणे राजानी पहेलेथी क्षमा मागीने तेने एक रहस्य जणाव्यु के राजाने एक नही पण पांच बाप हता. राजाए तेनी माताने पूछतां खुलासो मळयो के माता एक बार ज्यारे ऋतुमती हती त्यारे तेणे कामभावे तेना पति उपरांत कुंभार, धोबी, वींछी अने अश्वपालने जोयेला. 'आ रहस्य ते कई रीते जाण्यु?' एवं पूछतां राजाने रोहाए वह्य', 'तमे मने जगाडवा पाटु, धोको, नटी अने चाबूकना प्रयोग को, ते अनुसार में कुंभार, धोबी, वींछी अने अश्वपालना जातिगुण तमने वारसामां मळया होवानी अटकळ करी. राजाए. प्रसन्न थईने रोहाने प्रधानपदे नीम्या. ते वेळा काणाए आवीने पोतानी वात कही. यमघंटाओ का के जो रत्नचूड सामो एम कहेशे के 'मारा पिताने त्यां तो एवी घणी आंखो घरेणे मूकेली छे माटे तमारी बीजी आंख मने काढी आपो, जेथी तेना तोले जे थाय ते तमारी घरेणे मूकेली आंख तमने पाछी सेपु', तो तारी रहीसही आंख पण जशे. बुद्धिशाळी गमे तेवी विकट परिस्थितिने सुधारी ले छे तेना समर्थनमा यमघंटाए सुबुद्धि अमात्य दृष्टांत कह्य'. (२) विधाताना पराजय पर सुबुद्धि अमात्यनु दृष्टांत . क्षितिप्रतिष्ठ नगर, पृथ्वीचंद्र राजा, सुबुद्धि अमात्य. राजाने त्यां पुत्र अवतो. छठीनी रात्रे तेना अक्षर लखीने पाछी फरती विधात्रीने पूछतां प्रधाने जाण्यु के ए छोकरो पारधीना धंधो करशे अने रोज एक प्राणी मारशे. ते प्रमाणे बीजो पुत्र थतां तेना भाग्यमां शींगडे खांडो अने पूछडे बांडो एक बळद होवान विधात्रीओ का. त्रीजी वार पुत्री जन्मी अने तेना भाग्पमा वेश्या थवान अने रोज मात्र एक ज घराकनी आवक होवानुं विधात्रीए जणाघ्यु. . ए पछी घणा दिवसे गोत्रकलह थतां राजाना विनाश थयो, राज्य गयु अने राजकुटुंब वेरविखेर थई गयुं. तेने फरी एकठु करी तेनुं भाग्य पलटवा प्रधान नीकळी पडयो. एक नगरमां पारधी बनेला मोटा राजपुत्रने। पत्तो लाग्यो. तेने रोजनु एक ज प्राणी शिकारमा मळतुं. दशा बूरी हती पत्नीनी साडी घरेणे मूकीने प्रधानने जमाडयो. शिकारमा प्रधान तेनी साथे गयो. प्रधाने तेने बीजा कोई प्राणीने न मारतां दररोज मात्र श्वेत गजराजने ज मारी तेना कुंभस्थळमाथी मोती काढवानुं बताय. त्यांथी ते फरतो फरतो बीजा पुत्रने त्यां गयो. तेनी दशा पण खराब हती. तेन्गे बळद प्रधाने वेची नखाव्या अने बीजे दिवसे नवो वळद तेने आंगणे आवी ऊभेलो ते बतावीने का के 'दररोज बळद वेची नाखजे. तने नवो नवो बळद मळतो रहेशे.' Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका त्यांथी नीकळीने ते फरतो फरतो वेश्याना धघो करती राजपुत्रीने त्यां पहेांच्या. तेने प्रध ने एवु शीखव्यु के सवा लाख आपे ते पुरुषने ज आदरवो. आ प्रमाणे त्रणेयने आजीविका बाबत निश्चित करीने प्रधान निरांते सूतो. रात्रे विधात्रीए आवीने पोतानी करुण दशा तेने कही; 'ते मारे माटे भारे उपाधि ऊभी करी. दररोज हाथी, बळद अने सवा लाखनी रकम मारे हाजर करवी पडे छे.' प्रधाने राज्य पाछु आपवाना बदलामा ए परिस्थितिमांथी विधात्रीने मुक्त करी. ते पछी त्यां माळी आव्यो. तेणे जणाव्यु के मारा चोसर हारना बदलामा रत्नचडे मने 'काईक' आपबान का छे पण हुए बहाने तेनां वहाण पडावी लईश. यमघटाओ का के घडामां देडको राखीने तेमां तारो हाथ नखावतां 'अरे ! आमां तो कांईक ' एम तुं वोली ऊठीश एटले मे तने देडको भेट आरशे. एटलामा सुतार पण त्या आवी पद्देांच्या. तेणे कह्य, 'रत्नचुडे मने राजी करवा कहथु छे, पण मने तेनां वहाण आपशे तो ज हु' राजी थयो होवानुं कहीश.' एटले यमघंटाओ का', 'राजसभामां राजा समक्ष तने रत्नच्ड पूछशे के राजाने त्यां पुत्रजन्म थयो तो तु राजी थयो के नाराज. एटले तारे . कहेवुज पडशे के हु राजी थबो. ज्यारे सुतारे एम का के ए बाळकमां एदली बुद्धि क्यांथो होय, स्यारे यमघटाए सात वरसनी वणिकवधूए अधु राज्य बुद्धिबळे केम मेळव्यु तेनुं दृष्टांत करा. (३) वढकणी सोढीनु दृष्टांत एक गाममा रहेती से।ढी भारे वढकणी. सौनी साथे झगडो करे अने बाथे आवे. गामना लोकाए तेनी साथे बोलवु बंध कर्यु. एक वार तेना पडोशीने त्यां एक बाई महेमान तरीके आबेली. तेना सांभळतां तेणे पोतानी कामवाळीने हुकम को, 'एक पाली खीचडी खांड अने तेमां एक माणु मीठु नाखजे.' ए सांभळी पेली परोणा तरीके आवेली खीए तेनी रसोई बगडशे एवी बीके भलाईथी तेने का, 'बहेन, ते रांध्यु भले न होय, पण सांभळयं ये नथी के खीचडीमा केटला मापे मोठु नखाय?' एटले सेगढी ऊछळीने बोली, 'तु पारकी फिकर करवा को नीकळी पडी ? हु शुतार खावा आQ छु ? अने बहेन कहे छे ते शु तारा बापनी दीकरी छु?' आवी साढी पोतानु गाम छोडीने प्रतिष्ठानपुर पहांची. राजसभामां जईने तेणे आहवान आप्यु, 'मारी साथे बडवाडमां कोई ऊतरो. नहीं तो खड खाईने हार स्वीकारा.' राजाए ढंढेरो पिटाव्यो के सोढीने वढवाडमा जे हरावे तेने अर्धं राज्य अपाशे. ते नगरना एक शेठने त्यां सात पुत्रवधू. सौथी दानी सात वरसनी. तेणे आ आहवान स्वीकार्य राजसभामां जईने तेणे सोढीने पूछयु', 'तुं कई रीते वडवा मागे छे, अने बढवाडना केटला प्रकार होय छे ?' सोढी बोली, 'वढवाउनी रीत शी ने प्रकार शो ? मोमांयी नीकल्युं ते भसी नाख्यु.' शेठनी बहुओ का', सांभळ, वडवाड एक दिवसनी होय, छ मासनी होय, एक वरसनी होय के आखा जीवतरनी होय : भाडाने लगती खेतरने लगती, पट्टाने लगती अने शाकनी एम वढवाडना चार प्रकार छे.' सोढी हारी गई. तेने गधेडे चडावीने काढी मूकी. शेठनी बहुने अधु' राज्य इनाममा मळय. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ते वेळा त्यां समुद्रवादवाळा चार वाणिया आव्या. 'रत्नचूड समुद्रजळनु चोक्कस माप केटलू छे ते कही नहीं शके, एटले तेनां वहाण अमाराज थई शक्यां छे' एम तेमणे क. घटाए, 'जो ते तमने एम कद्देशे के नदीनां पाणी तेमां आवतां अटकावो तो पाणा केटल छे ते कही आपु, तो तमारी आशा धूळमां मळशे. ' वाणियाओए कयुं, 'एटली बुद्धि रत्नचूडमां कयांथी होय ! एटले यमघटाए तेमने चार मूर्खाओनी कथाना मूरख जेवा कथा, अने तेमनी विनतीथी ए दृष्टांतकथा कही. (४) चार मूर्खनु दृष्टांत उजेणीना चार मूर्खाओने रस्तामां मळेला एक साधुए धर्मलाभ कयो, एटले तेओए अदरोअंदर बाद शरू कर्यो के आपणामांथी कोने धर्मलाभ कत्यो पाछा वळीने साधुने पूछतां तेणे का, 'तमारानां जे सौथी मोटो मूरख होय तेने. ' एटले ते दरेक मूरखे पोतानी उत्तम मूखईनी बात करी. पलाएक, हु ं मारी बहुने तेना पियरने गामथी तेडी लाववा मारे घेरथी नीकळयो त्यारे मारी माए मने शीखामण दीधी के सासरे तने जमवा बोलावे तो तरत बेसी नहीं जतो, पण थोडी ताण कराववा नकार भणजे. हु सासरे पांच्यो अने सासुए जमवा बोलाव्यो त्यारे में क के हु जमीने ज आव्यो छु, माए एटल' जमाडद्यो छे के जराये भूख नथी. राते जमवा बोलाव्यो त्यारे पण में ना भणी. वधारे ताण करीशु तो जमाईने खोटुं लागशे एवं समजीने सासुए मने वधु आग्रह न कये, रसोडामां सूत्रानी मारी व्यवस्था करी. खूब भूख्यो थयेलो एटले रसोडामां छडे चोखा हता तेनो एक बूकडो भये त्यां मारी बहु रसोडामां आवी माग गाल फूलेला अने कशु बोल नहीं ते जोईने नेणे मारी सासुने बोलावी. एकाएक तबियत बगडी आवी छे एम समजीने तरत वैद्यने बोलाव्या. तेणे मने तपास्यो अने भांमां धोळा चोखा भरेला भाळीने वेद्ये कयुं, “तमारा जमाईने तांदुलरोग थयो छे. ए असाध्य गणाय छे, पण हुं एनो उपचार जाणु छु छरी लावी एटले गाल चीरीने ए रोगनां अंतु बहार का ' सासुए तेने बदलामां में स आपवानु कल्यु. ठीव मगावीने वैद्ये एकांतमां मारी पासे चोखा थुकावी नाख्या, अने में स लईने ते चालतो थयो आम में मूर्खाई करीने ससरानो भेस खोवरावी. ' बीजाए पोतानी मूर्खाई वर्णवी : 'एक बार हु' आणु करीने सासरेयी पाछो आव्यो त्यारे गाभ बहार ज रात पड़ी गई. नगरनो दरवाजो बंध थई गयो, एटले अमारे देवळमां रात रहेवु पड्युं. वात करतां बे पहोर वीत्या. ते वेळा में कयुं, 'आपणामांथी हवे जे पहेलु मौन तोडे ते दस लाडवा हारे.' एवी शरत मारीने अमे सूता. चोरने अमारो बधो सामान लईने नासी जतो में जोयो, पण शरत जीतवा खातर हु मूंगो ज रह्यो आम दस लाडवा खातर में सर्वस्व गुमायुं . ' त्रीजाए पोतानी मूखाई वर्णवी : 'मारी बे बेरीओ खूब झगडती तेथी में सेवा माटे मारो अरधोअरधो देह तेमने वहेंची आप्यो. एक वार हु बहारथी घरे आव्यो त्यारे एक स्त्री जमवा बेठेली तेथी बीजीए मारा बने पग धोया. ते जोईने पहेली स्त्री दोडी अने तेणे बीजीने सोंपायेलो मारो पग भांगी नाख्यो. एटले पहेलीए मारो बाकीनो पग भांग्यो. ' चोथाए पोतानु ं पराक्रम कयूँ : 'मारे पण बे बैरीओ छे. एक वार मारी बने बाजुए ते खाट पर सूती हती, अने में तेमना पर मारो एकएक हाथ राखेलो. ते वेळा ऊबंदर दीवानी Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका वाट लईने दोड्यो, स्त्रीओ जागी जशे ए बीके में तेमना परथी हाथ न खसेड्या. परिणामे त्यां आग लागी अने मारां दाढीमूछ बळी गया.' यमघंटाए कयु के आम मूरख जातजातना होय छे. आ रोते बधा कोयडाना उकेल जाणीने रत्नचूड त्यांथी सवारे पोताना उतारे गयो. पछी तेणे राजा पासे जईने फरियाद करी. यमघटानी सलाह प्रमाणे बधा धूतने तेणे महात कर्या. सोळ कोटि द्रव्य प्राप्त कयु: तेनी बुद्धिथी प्रसन्न थईने राजाए वरदान मागवा कहा एटले तेणे न्यायघंट बांधवानी विनंती करी. राजाए ते स्वीकारो अने फरी कशु मागवानु कहेतां तेणे रणघंटानी मागणी करी. राजाए रणघंटाने बोलावीने रत्नचूडने सांपी. पछी त्यांथी नीकळीने ते पोताने नगर ताम्रलिप्ति आव्यो. सौए तागत कयु. रणघटा, सुभगमंजरी अने रत्नश्री ए त्रण पत्नीओ साथे ते सुखसाह्यबीमा रहेवा लाग्यो.. एकवार एक केवळी ते नगरमां आव्या, त्यारे रत्नचूडना पिताना पूछवाथी तेमणे रत्नचूडनो पूर्वभव कह्यो : नंदगाममा रहेती एक गरीब डोशीनो दीकरो थावर परबने दहाडे खीर खावानी हठ करी रडवा लाग्यो. पडोशणे सामग्री आपी. थावर खीर खावा बेठो ते वेळा एक मासो. पवासी साधु त्यां आव्या. थावरे खीर वहोरावी. ए पुण्ये ते तमारा पुत्र रत्नचूड तरीके अवतो. बे पाडोशणमांथी जे एके कुळमद सेवेलो, ते वेश्या तरीके अवतरी. बीजीए दाननी अनुमोदना करेली, ते रत्नश्री तरीके अवतरी. आम दानथी उत्तम कुळ, विद्या, लक्ष्मी वगेरे प्राप्त थाय. दृष्टांत लेखे जोईए तो रत्नचूड एटले संसारी जीव, कूटकटाह द्वीप एटले संसार, वेशी ते गुरुउपदेश, बहाण द्वारा प्रवास एटले गर्भरूपे अवतरवु. चार वाणिया ते क्रोध, मान, माया, लोभ. सुतारनी पावडी ते रागद्वेष, समुद्रनो विवाद करनारा वाणिया ते चार विकथा. रणघंटा ते सुभापितबुद्धि अने यमघंटा ते मिथ्यात्वनी वृत्ति. आ थये। अंतरंग अर्थ. गुरुनी देशनाथी वैराग्यभाव उत्पन्न थतां रत्नचुडे श्रावकधर्म स्वीकार्या. ते मुक्ति पामशे. बृहत् तपागच्छना रत्नसूरिना शिष्ये संवत १५०९ना भादरवा वद बीजने गुरुवारे रेवती नक्षत्रमा आ रास रच्यो. ३. रत्नचूडकथा-साहित्य जिनरत्नकोशमां 'रत्नचूडकथा', 'रत्नच्डकथानक' के 'रत्नचडचरित्र' एव। शीर्षक नीचे सात कृतिओनो निर्देश छे. तेमां देवेद्रगणि के नेमिचंद्रकृत 'तिलकसुंदरी रत्नचूड-कथानक अने 'रत्नचूड रास' नी वार्ता तहन भिन्न होईने तेमनी बच्चे कशोज संबंध नथी. बाकीनी कृतिओमांथी जिनवल्लभसूरि, राजवर्धन अने एक अज्ञातकर्तृक कृति विशे बीजी कशी माहिती उपलब्ध नथी. बाकी रहेल ज्ञानसागरकृत रत्नचूडकथानकर अने र. रा. बनेनी वार्ता एक ज छे. बंने बच्चे घटना. १. आ विजयकुमुदसूरि वडे संपादित थईने १९४२मा प्रकाशित थयु छे. २. यशोविजय जैन ग्रंथमाळा, क्रमांक १९१७; जर्मन अनुवाद हेर्टल Indische March enromane, १९०२. 'जिनरत्नकोश'मां तेम ज 'जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास'मां Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास क्रम, निरूपण अने अभिव्यक्तिनु घणु ज साम्य छे. वळी ज्ञानसागर (स'. १५३०नी आसपास विद्यमान) पण रत्नसिंहसूरिना शिष्य हता. तेथी आटलु बधु साम्य जोता, अने र. रा.ना कर्ता पण कोई रत्नसिंहसूरिशिष्य छे ए जोतां गुजराती अने संस्कृत रचनाना कर्ता एक ज हशे के केम एवी शंका के संभावना सहेजे उपस्थित थाय. परंतु जेन बंने कृतिओनी बच्चे साम्यनुं प्रमाण घणु मोटु छे, तेम जे तफावत छे ते पण सूचक छे नटपुत्र रोहानी दृष्टांतकथामां ज्ञानसागरनी कृतिमा (१) राजानु पोताना ४९९ मंत्रीनी उपर नीमवा माटे एक महामंत्रीनी शोधमा होवु, (२) रोहा माटेनी कसोटीओमा एकद्रव्यमय. स्तंभहीन, उत्तग प्रासाद बनावी आपवानो पहेलो आदेश; (३) रत्नचूडने माळी मळयाना प्रसंगनो अभाव; (४) पावडी भेट आपनारने यमघंटाए कहेलु सोमशर्माना पितानु दृष्टांत, जे शेखवल्लीना जाणीता कथा प्रकारचेंज एक निदर्शन छे; (५) सागरवादी वणिकोने यमघंटाए कहेलु चार मूरखनु नहीं, पण सोढीनु दृष्टांत; (६) अनेक स्थळे नानी नानी विगतोमा फरक : आ बधा भेदो उपर्युक्त बन्ने कृतिओ एकबीजा उपर आधार राखती नहीं, पण कोईक समान पूर्ववर्ती रचनानो उपयोग करती होवान पुरवार करे छे. . 'रत्नचूडरासनी अहीं उपयोगमां लीधेली बधी प्रतोना पाठ अनुसार माळी यमघटाने मळे छे, त्यारे तेने यमघटा कोई दृष्टांतकथा कहेती नथी. आ एक देखीतो अपवाद छे. यमघंटानी सलाह लेवा आवेला बधा रत्नचडने छेतरवाना इरादावाळा ठगोने यमघंटा पोतानी बातना समर्थनमां एकएक बुद्धिचतुराईनी कथा कहे छे, एटले माळीनी साथेनी बातमां पण ते आवी दृष्टांतकथा केम नथी कहेती तेनो कशो स्वाभाविक खुलासो नथी रचनाशैली आवी दृष्टांतकथानी अपेक्षा ऊभी करे छे अने ते कारणे ते स्थळे एवी ज कथा खूटती होवानो वहेम पडे छे.३ हवे अमदावादना डेलाना हस्तप्रतभंडारमांनी १२३८६ क्रमांकवाळी 'रत्नचडरास'नी स. १६३७मां लखायेली प्रतमां अन्य प्रतोथी अहीं जुदो पाठ छे, अने माळीने पण यमघंटा ससलानी चतुराईवाळी सिंह अने ससलानी कथा कहे छे. परंतु बीजी कोई प्रतषां आ पाठ मळतो नथी, अने डेलाना भंडारवाळी प्रतमां मळतो पाठ अन्यथा पण ठेकठेकाणे घालमेलबाको छे (लहियाए के कोई बीजा जणे रचना उपर पोतानो हाथ अजमावीने ठेकठेकाणे मूळ कृतिमा फेरफार करेला छे. ) ए जोतां आ कथा एक प्रक्षेप ज जणाय छे. वळो घणी खरी तोमां आपेला रचनासंवत १९०९ ए विरोधमां आ प्रतमा संवत १५०१ आपेलो छे ए पण सूचक छे सं. १७१४ मां कनकनिधाने ३५ ढाळमां रचेलो 'रत्नचड-व्यवहारि-रास'५ के जे आपणा 'रत्नचडरास'ने आधारे रचायेलो छे, तेमां यमघंटाए माळीने आपेली सलाहमां आ सिंह ने ससलानी कथा आवे छे ते जोतां एवं फलित थाय छे के कनकनिधाने डेलाना भंडारवाळी प्रत जे परंपरानी छे ते परंपरानी कोईक प्रतनो आधार लीधो हशे. जे यशोदेवगणिकृत 'रत्नचडकथा 'नो उल्लेख छे ते भूल छे. ते नेमिचंद्रवाळी ज कृति के. जुओ, 'शान्तिनाथ जैन भंडारनी ताडपत्रीय हस्तप्रतोनी सूची' भोग २ (गा. ओ. सि. क्रमांक १४९, पृ ३७०-३७३). ३. उपर्युक्त ज्ञानसागरना 'रत्नचड कथानक'मां रत्नचूडने मळनारा ठगोमां माळी नथी ए हकीकत नधिपात्र छे. - ४. आ 'पंचतंत्र', 'कथासरित्सागर', 'हितोपदेश', 'शुकसप्तति' वगेरेमा जाणीती कथा छे. ५. संपादक भीमसिह माणेक, १९०७. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका शुभशीलङ्कृत 'प्रबंध- पंचशती' (के 'पंचशती - प्रबोध' ) मां ७३मो प्रबंध अन्यायपत्तन गयेला शेठपुत्रने लगतो छे तेमां रत्नचूडकथानो ज ड्रंक सार आपेलो छे. आडकथाओ गाळी नाखी छे. अन्याय राजा, अबिचारक मंत्री, सर्वग्राही आरक्षक, अशान्ति पुरोहित, गृहीतभक्ष शेठ, मूलनाश शेठपुत्रए नामो रसत्रद छे, ते ज ग्रंथमां ५३४मा प्रबंधमां र. रा. वाळु वढकणी सोढीनु दृष्टांत विगतो. बाळु अने वधु स्पष्ट छे. आगमगच्छना मुनिसिंहसूरिना शिष्य शिलरत्न, तेना शिष्य आनंदप्रभ, तेना शिष्य आनंदरत्न, तेमना शासनमां थयेला महोपाध्याय मुनिसागर ( के मतिसागर ) ना शिष्य पंडित उदयधर्मगणीए सं. १५०७मां 'वाकयप्रकाश औक्तिक', स. १५४३मां 'मलयसुंदरीरास' अने स. १५५०मां 'कथाबीसी'नी रचना करी छे. ६ ए ज उदयधर्मे दान, शील, तप अने भावना उपर इप्टांतकथाओथी युक्त एव संस्कृतमां 'धर्मकल्पद्रुम' नामनुं एक औपदेशिक प्रकरण पण रच्युं छे. ७ तेना आठ पल्लवमांथी बोथा पल्लवमां रत्नपालराजानी कथामां, ज्ञानगर्भ मंत्रीए पोताना राजानुं गयेलु राज्य केवी रीते बुद्धिबळे पाछु वाळयुं ए लौकिक कथा शृंगारसुंदरी सुबुद्धिमंत्रीने एक दृष्टांत लेखे कद्दे छे. ('धर्मकल्पद्रुम', पल्लव ४ श्लोक ११६ थी १४५; गुजराती अनुवाद पृ. १६५-१७०). आ कथा ते र. रा.मां काणाने यमघंटा बुद्धिबळ उपर जे सुबुद्धिमंत्रीनुं दृष्टांत कहे छे ते ज छे 'धर्मकल्पद्रुम'मां कथा संक्षेपमां आपेली छे, परंतु घटनाअनो समान क्रम, केटलीक सूचक समान विगतो अने केटलुक शाब्दिक साम्य - ए बधा उपरथी लागे छे के कां तो तेना आधार 'रत्नचूडरास' होय अथवा तो कोईक त्रीजी रचना २. रा. अने 'धर्मकल्पद्रुम'वारी कथा ए बनेना समान मूळ तरीके होय. सुबुद्विवाळी कथामांना भागमां रोज एक भारवाहक बळदवाळा बीजा राजपुत्रवाळो प्रसंग 'कथासरित्सागर'नी एक कथामा वस्तुरूपे मळे छे. (जुओ; 'ओशन ओव स्टोरी', ५, पृ. १८५-१८६. नोर्मन ब्राउने आ कथाघटकनो विगते अभ्यास कये छे. जुओ, 'स्टडीझ इन ओनर ओव एम. इस फिल्ड', १९२०, ८९ - १०४. ) ४. केटलाक कथाघटको १७ मूर्खकथाओ टोम्प्सननी कथाघटक सूचिमा जे विभागमा क्रमांक १७००थी २७९९ मूर्खकथाओ माटे छे, तेमां मूर्खाईभ अज्ञान (१७३० - १७४९), मूर्खाईभरी गेरसमजो (१७५० - १८४९), हकीकतोनी मूर्खाईमरी अवगणना (१८५० - १९९९), मूर्खाईभर्यु मानभूलाणु (२००० - २०४९), मूर्खाईभरी ट्रंकदृष्टि (२०५०-२१९९), मूर्खाईभरी तर्कहीनता ( २२०० - २२५९), मूर्खाईभर्या वैज्ञानिक सिद्धांतो ने वादो (२२६० - २२९९), भोळाणा के बाघाईवाळा मूर्ख ( २३०० - २३४९), भडभडिया मूर्ख (२३५०-२३६९), कुतूहळघेला मूर्ख (२३७० - २३९९), मूर्खाईभयु अनुकरण (२४००-२४४९), ६ 'जैन साहित्यको संक्षिप्त इतिहास', पृ. ५१४, ५२४; 'जन गूर्जर कविओ', १, पृ. ६२-६३. ७ दे. ला. जै. पु. ग्रंथांक ४०, १९१७; जै. ध. प्र. स. १९२८: कुवरजी आनंदजी कृत गुजराती अनुवाद, १९२८. छेटे ले जर्मनमां १९११, १९१२ अने १९१३मां आमांनी कथाओना अनुवाद करेल होवानुं विन्दर्निय से 'हिस्टरी ओव इन्डियन लिटरेचर', २, ५४५ उपरं नोंव्यु छे. वेलणकर ('जिनरत्नकोश', पृ. १८८) ९ पल्लव होवानुं कछे छे ते भूल छे. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ रत्नचूड-रास केवळ अक्षरार्थ पकडता मूर्ख (२४५०-२४९९), मूर्खाईभर्या अतिरेक (२५९०-२५४९), मूर्खाई. भर्यु आभारदर्शन (२५५०-२५९९), कायर मूर्यो (२६००-२६४९), मूर्खाईभर्या छबरडा (२६५०२६९९), सहेलाने अधरु करता मूर्ख (२७००-२७४९) अने प्रकीर्ण (२७५०-२७९९)-ए प्रमाणे पेटा वर्गीकरण करेलुं छे... भारतीय कथासाहित्यमां मुग्धकथाओ-एटले के मूर्खकथाओनी पण घणी लांबी परंपरा छे. 'बृहत्कथा' परथी रचायेल 'कथासरित्सागर' अने 'बृहत्कथामंजरी'मा मुग्धकथाओनो गुच्छ आपेलो छे, ते 'बृहत्कथा'नी कोई उत्तरकालीन वाचना के पाठपरंपरामां ए होवानुं दर्शावे छे. 'कथासरित्सागर'मा ५६ जेटली मूर्खकथाओ आपेली छे.. र. रा.नी पहेली अने त्रीजी मूर्खकथानां मूळ आ गुच्छमांनी बे कथाओमां मळे छे. १३७मी (सांडेसरामां ९२मी) कथा एवी छे के पहेली वार सासरे गयेलो मूर्ख रांधवा माटे राखेला चोखानो छानोमानो बूकडो भरे छे, पण सासु आवी पहोंचतां ते मेमां ज राखी मूके छे. जमाईने का न बोलतो अने फूलेला गालवाळो भाळीने सासुए बोलावेलो वैद्य जेवो ते मूर्खनो जडबां पहोळां करे छे तेवा ज मोमांथी चोखा नीकळी पडे छे. १३५मी (सांडेसरामा ९०मी) कथा एवी छे के झगडता बने शिष्योने गुरुए चोळवा-पखाळवा माटे पोतानो एकएक पग रहे ची आपेलो. एक वार एक शिष्यनी गेरहाजरीमा गुरए बीजा शिष्यने बने पग चोळवानु वय, पण ते शिष्ये बीना शिष्यवाळो गुरुनो पग भांगी नाख्यो, बीजे दिवसे बीजा शिश्ये पहेला शिष्यवाळो पग भाग्यो, ते ज प्रमाणे कूटकटाहमा रत्नचूडने माळी फूलहार भेट आपे छे, त्यारे ते माळीने वचन आपे छे के हैं जता पहेलां तने कांईक आपीने राजी करीश अने पछीथी माळी तेनी पासे 'काईक' आपबानी मागणी करे छे. आनी साथे 'कथासरित्सागर'नी मूर्खकथाओमांनी १२०मी (सांडेसरामा ७५मी) कथा सरखावी शकाय, जेमा गाडु समु करी आफ्नार भूर्ख तेने 'बदलवामां है काई नहीं आपीश' कहेनार गाडावाळानी पासे 'काई नहीं' आपवानी मागणी करे छे. अहीं जातककथामांनी अनुरुद्धने लगती कथामां, माताए वारंवार खाजां मगावनार पुत्रने खाजां खूटी जतां 'हवे नथी खाजां' एम कहेवरा त्यारे पुत्रे 'नथी-खाजां होय तो नथी-खाजां मोकल' एवो संदेशो मोकल्यो ते प्रसंग पण याद करी शकाय. . र. रा.नी बीजी मूर्खकधा ए 'मौनपालननी शरत' नामे जाणीती कथाप्रकृतिनुं निदर्शन छे. (कथा प्रकृति १३५१; कथाघटक क्रमांक जे २५११ अने तेनी नीचे आपेळ ब्राउन, टोम्प्सन अने बेलिस लगेरेना संदर्भ; 'फोक टेयल', पृ. १९५). सोथी जूनुं स्वरूप बौद्ध जातककथामां मळे छे. आपणे त्यां प्रचलित कहेवत 'बोले ते बे खाय'ने। आधारभूत टूचको (पांच लाडवामाथी कोण श्रण खाय अने कोण बे तेनेा निर्णय मामाभाणेज मूगा रहेवानी शरत द्वारा करवा संमत थाय छे अने वनेने मरेला मानी स्मशाने लई जई चिता पर पधरावे छे त्यारे मामो पोते बे खाशे अने भाणेज त्रण-एम हारीने बोली कठे छे त्यारे तेमने भूत थयेला मानी पांचेय डाघुओ नासी जाय छे) पण आ कथानु ज रूपांतर छे. र जुओ, टेनी अने पेन्झरनो अनुवाद, ग्रंथ ५, पृ. ६७-१४१ (कथांक ८५ थी १५३). आमाथी मोट। भागनी भोगीलाल सांडेसराए तेमना पंचतंत्रना गुजराती अनुवादमां आपेली छे. (पृ. ४५७-४१७: कथांक ५ थी ९४). Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका १९ समस्या उकेलतो बुद्धिप्रतिभावाळो बाळक; धुतारानगरी, न्यायघटा चार श्रेष्ठीने कहेलु नटपुत्र रोहकनु दृष्टांत औत्पत्तिकी बुद्धिना दृष्टांत तरीके आवश्यकचूर्णि', 'आवश्यकवृत्ति', जयसहिंसूरिकृत 'धमोपदेशमाला-विवरण' तथा ते पछीना अनेक ग्रंथोमा अत्यंत जाणीतु छ. आनी साथे समस्याउकेलना अने असाधारण बुद्धिप्रतिभा घरावता चमत्कारी बाळकना कथाघटको जोडायेला छे. रत्नचूडनुं धुतारानगरीमा आवी पहांचवु अने त्या विविध धुताराओनी फसामणीमाथी शठं प्रति शाठनो सिद्धांत उपयोगमा लईने छूटवु ए घटनाओ पण जाणीता कथाघटकोना निदर्शन रूप छे. शामळनी वार्ताओमां तथा केटलीक लोककथाओमा धुतारानगरी, धूतणानगरी के ठगपुरपाटण ('प्रबंध-पंचशती'मां 'अन्यायपत्तन' तरीके) आपणने जाणीतां छे. धुतारानगरीनुं नाम अहीं 'कूटकटाह' एवं आपेलुं छे (पछी कनकनिधाननी कृतिमा ते 'कूपकटाह' बनी जाय छे !). आमां 'कूट' एटले 'कूडं', 'कपटी' अने 'कटाह'. ए कटाहद्वीप तरीके 'कथासरित्सागर', 'समराइच्चकहा' वगेरे संस्कृतप्राकृत कृतिओमां वारंवार निर्देश पामेलो द्वीप छे. ते कथाकल्पित नथी, परंतु 'कडार' के 'किडार' तरीके ते प्राचीन शिलालेखोमा जाणीतो छे अने ते मलय द्वीपकल्पना दक्षिण भागमा पिनांग पासे आवेलो 'केदाह' के 'केहाह' नामनो द्वीप छे. 'कथासरित्सागर 'नी गुहसेन अने देवस्मितानी कथामां ताम्रलिप्ताथी कटाह गयेला गहसेनने त्यांना चार ठग वेपारीओनो भेटो थयानी जे वात छे ते 'रत्नचूडरास' परत्वे सुचक छे. धुताराओनी सामे रत्नच्डे यमघंटानी सलाहथी जे युक्तिप्रयुक्तिओ प्रयोजी छे तेमां शब्दछळनी युक्तिनो पण समावेश थयेलो छ-'काईक' आपवु, 'कशाक'थी वहाण भरी देव, राजी करवं' वगेरेनों शब्दार्थ लईने धुतारा लुच्चाई करवा मागे छे अने ते ज युक्तिथी रत्नचूड तेमने पाछा पाढे छे. ___रत्नचूड न्यायचंट बधाववानु बचन राजा पासेथी ले छे. १६मी शताब्दीमा मुघल बादशाह जहांगीर न्यायनी सांकळ बंधाव्यानु जाणीतुं छे. पोतानां संस्मरणो 'तुझुक-इ-जहांगीरी 'मां ते जणावे छे के• तेणे (साठ घंटडीवाळी) त्रीश गज लांबी, चार मण सोनानी सांकळनो एक छेडो आगराना किल्लादा बुरज उपर जडेलो अने बीजो छेडो नदी कांठे एक पत्थरना स्तभ पर जडी दीधेलो. जेने अन्याय थयो होय अने न्याय न मळयो होय ते आ न्यायनी सांकळ खोंचे जेथी बादशाहने जाण थाय अने ते न्याय आपे. आनी साथे केटलीक किंवदंतीओ पण संकळायेली छ, जेमके नूरजहांने हाथे शिकार करतां अकस्मात धोबी वींधाई जाय छे तेनो न्याय धोबण न्यायनी सांकळ खोंची जहांगीर पासेथी मेळवे छे. न्यायघंट खोंचीने न्याय मेळव्यानी वात है स १८मां विजयलक्ष्मीसरिरचित 'उपदेशप्रासाद'मां दृष्टांतकथा लेखे आपेलो छे. ते अनुसार कल्याणकटकना यशोवर्मा राजाए न्यायघंट बंधाव्यो त्यारे तेनी कसोटी करवा राज्यनी अधिष्ठात्री देवी गायनु रूप धरो घंट हलावीने पोतानुवाछरडु कोईए कचरी नाख्यानी फरियाद करे छे, अने ५ जेम के 'लालिया धोका'नी अने 'वीरसंग'नी वार्तामां-जुओ 'चतुराईनी कथाओ', संपादक जोरावरसिंह जादव (१९७६). १० जुओ रोजर्स अने बेवरीजनो अंग्रेजी अनुवाद, १९६८नु पुनर्मुद्रग, १, पृ. ७; मजुमदार संगदित 'ध मुघल एम्पायर', १९७५, पृ. १७६. Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० रत्नचूड-रास.. तपासमां ते गुनो पाटवी कुंवरे कर्यान प्रगट थतां तेनी उपर रथ चलाववानी शिक्षानो अमल करतां राजा अचकातो नथी जिओ 'उपदेशप्रासाद'. भाग २, जैन धर्म प्रसारक सभा द्वारा प्रकाशित, १९१९, पत्र ६५९]. १७२०मां महम्मदशाहे पण न्यायनी सांकळनी प्रथा अपनावेली. ईरानना कोईक बादशाहे न्यायधंटनी व्यवस्था प्रथम शरू करी होवानो निर्देश छे. कोई आहवान स्वीकारवानी तैयारी दर्शाववा द्वार से मूकेली भेरी के नगारा पर दांडी पीटवानी प्रथा अनेक प्राचीन कथाओमा जाणीती छे. र.रा.मां न्यायघंटनी प्रथानो निर्देश कोई पूर्ववतो' कथामांथी ( जेना मूळमा ईरानी बादशाहोने लगती ऐतिहासिक हकीकत होय) लेवायो होवानी अटकळ आपणे सहेजे करी शकीए. र.रा.ने अंते (कही ३३४-३३७)कथाने एक रूपक तरीके (परंपरागत परिभाषामां, दृष्टांत तरीके) घटावेली छे : रत्नच एटले संसारी जीव, कूटकटाह द्वीप एटले संसार वगेरे. आ रीते कथाने दृष्टांत लेखे गणीने तेनो 'उपनय' आपवानी (तेने 'अंतरंग बुद्धिथी जोवानी) परंपरानु अनुसरण 'ज्ञाताधर्मकथा', 'वसुदेवहिडी', 'भागवतपुराण' वगेरेमा आवती केटलीक कथाओमां आपणे जोईए छीए. सुफी प्रभाववाळा अवधी प्रेमाख्यानक काव्योमा ( जेम के जायसीकृत 'पद्मावत'मा) पण अंते कथाने रूपक तरीके घटाववानी प्रथा छे. ५. रचनाकाळ : कर्तृत्व विविध प्रतोमां रचनासंवत १५०१, १५०९, १५२ अने १५०४ एम जुदोजुदो आपेलो छे. आमाथी १५०९ ए वधु श्रद्धेय प्रोमां मळे छे. एटले ई.स. १४५०-५३ने आपणे मान्य राखी शकीए. रासना कर्ता तरीके बृहत् तपागच्छना रत्नसूरिना शिष्यनो उल्लेख ३४६मी कडीमां छे. क, ख, ठ ए प्रतोमा तथा ला. द. विद्यामंदिरना संग्रहमांनी स. १५५९ अने स. १६०७नी जूनी प्रतोमां आ कडी नथो. वळी ग प्रतमा ‘रयणमूरिंद'ने बदले 'जिनरयणसूरिंद' छे. आथी कर्तृत्वनी असतानां संदिग्धता उमेराय छे. परंतु रत्नसूरिना ज शिष्य ज्ञानसागरे संस्कृतमा 'रत्नवडकथानक' स. १५३०ना अरसामा रचेलं हे ए जोता र.रा. पण स्तनसरिना ज कोई शिष्ये रच्यू होवानी पूरती संभावना छ, अने तेथी केटलोक प्रोमां आ कडी कर्ताए ज रचीने उमेरी होवानु आपणे मानी शकीए. ऋणस्वीकार :: आभारदर्शन आ सशोधनकार्यमां नीचेनी संस्थाओ अने व्यक्तिओनी विविध प्रकारे जे कांई सहाय मने मकी छे ते बदल हमारी ऊंडी आभारनी लागणी व्यक कछु. भारतीय विद्याभवन (मंबई) अगरचंद नाहठानो संग्रह, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामदिर :अमदावाद), डेलाना पाश्रयना मंडारना व्यवस्थापको तथा अन्य हस्तप्रत भंडारोने। तेमनी हस्तप्रतोनो उपयोग करवा देवा माटे: मारा सहकार्य करो श्री जेसिंगमाई, श्री बाबुभाई तथा डॉ. कनुभाई शेठनो हस्तप्रतो, कथासंदी वगेरे प्राप्त करवामां सहायभूत थवा माटे; नगीनदास शाहनो तथा गुजरात राज्यना भाषा नियामकश्री. नो आ ग्रंथ ने प्रकाशन माटे स्वीकारवा माटे हु आभारी छु. श्री स्वामीनारायण मुद्रण मंदिर बती श्री भावसारे राखेली संभाकने लीधे पुस्तक छापवानु कान सरळ बन्यु. अमदावाद, फेब्रुआरी १९७८. हरिवल्लभ भायाणी Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नसूरि-शिष्य-कृत रत्नचूड-रास दूहा सरसति-देवी-पाय नमी मागउं उचित पसाउ रत्नचूड-गुण वर्णवठं दान-विसइ जसु भाउ १ जंबूदीव-माहि अछइ भरह-खित्त अति-चंग " तामलती-नयरी तिहां राजा अजित-नरिंद २ । तिणि नगरिई जण जे वसई वर्ण अढारइ लोक भोग-पुरंदर भोगवई सुख-संपति-सुरलोक ३ १. १. क. सरसतिसामणि, त. सामिणि; ख. पाइ, ग. घ. छ. झ. ट. ठ. पन. २. ख.ग. छ. ट. मागिसु, घ. ठ. मागिसि, च. झ. मागु, ड. मागिस, ढ. मागु, त. मागु; ख. छ. पसाय, ग. उचत, घ. वचन पसऊ, च. चित्ति पसाउ, ड. उचित्त. ३, क. रत्नचुड °, झ. ढ. रतनचूड ग. च वणवु, घ. वर्णवू, झ. वरणवट, ठ. ड. वण्णवू, ढ. त. वर्णवु. ४. ग. च. छ. ड. ढ. त. विषय, ठ. दाषवषि, क. ढ. जसवाउ, ख. जसु भाय, ग. घ. च. झ. ठ. ड. जस भाउ, छ. जस भाय, ट. ज भाउ. २. १. क. जंबूदीपिहि, ख. जंबूदीवह. घ ढ. जबूद्वीप °, च. छ. स. ट. त. जंबूदीप ; . जंबू'दीव, ड. जंबूद्वीम, घ. छ.. मां हिं, झ. ट. ठ. ड. ढ. ° मझारि, त. महा; ख छई, च. अछि, झ, ट. ठ. ड. ढ. वर. २. क. भरतक्षेत्र, ख. च. ड. भरतषेत्र. ग. भरतखेत्र, घ. च. त. भरतक्षेत्र, ट. भरह खित, ठ. भरतषित; ३. क. तामलतां, ख तामलस्ती° ग. तामली, ग. ठ तांमलती; ख. छ. झ. ट. त. नगरी, च. गमरो ढ. नयरि; ठ. जिहा,ड. जिहां. ४. ख ° नरिद, ग. छ. ° निरिंद, ठ. ° निरंद. ३. 1. ख. त. तीणइ, .ग तिणी, च. तेणिं, छ. ढ. तेणी, ठ. तणि, ड. तेणि; ख. नरीयरी, ग. छ. झ. ट. ठ. ड. नयरी, घ. नथरि, च. नयरिं, ढ. नगरी, त. नगरीइं; ख. 'जम' नथी, ग. छ. जन, च. जे जन, ख. झ. ट. बहुजण, ठ. जे जिण, ड. ढ. जे जण; ग. वसई घ. वशइ, ठ. विसइ. २. क. ग. छ. झ. ठ. ड. वरण, घ. अरण; क. अढारई, च. अढार वर, छ. अहारे, ठ. अढारि, ड. अढारेइ. ३. क, भोगवई, च. भोगवे, ज्ञ. ट. अनोपम भोगवइ. ४. ख. सुध, ० छ. ज्ञ. ठ. ड. सुष; क संपन, च संपति; स्व.घ. संयोग. रत्न-१ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास चउपई सरोवरि वावि करी अभिराम तिहां पाखलि फिरतां आराम विविध वृक्ष छई ते वन-माहि वसंत वास वसइ परवाहि ४ पोढां मंदिर पोलि पगार - हट्ट श्रेणि नवि लाभई पार जिणहर मणहर तोरण-माल लंका-नी परि झ कि-झमाल ५ चउरासी चउहटां अति-चंग नव-नव उच्छव नव-नव रंग कोटीधज दीसइं अति-घणा लखेसरी-नी नहीं तिहां मणा ६ मांडई दोसी भव्य कपट्ट भरियां दीसइ सोनी-हट्ट माणिक-चउकि जवहरी रह्या माणिक-मोती-हीरे सह्या ७ ४. १. ग. घ. च. झ. ट. ठ. ड ढ. सरोवर, ढ. सरोवर करी ते अति अभिराम. २. क. ढ. ते, ख. छ. तेह, झ. तिहा, ठ. तिहि; ख घ. झ. फिरता, ठ. फरता. ड. फरतां; ग. 'आराम' नथी. ३. ख. ग. झ. ट. ठ. त. विवध, ढ. विव; घ. व्रक्ष; ख. घ. 'छई' नथी, ग. झ. ड. ढ. त. छई, च. अछि, छ. ते छइ, ठ. छि; घ. जे वनसार, च. • मांहिं, ड. ए वनमा हिं. ४. क. वसंत वसइ सदा वनमाहि, ग. वासि, परिवाही, घ. वसई वास नव जोअण बार, च. संत वास वसे पुरमाहिं, छ. मास वसइ वनमाहि, झ. ट, मासः दीसइ उछहि, ठ. मास वशि वनमाहि, ड. मास वसई वर माहिं, ढ. मास रभइ तीणइ ठाहं, त. वासि बसइ वनमाहि, ५. १. क. छ. झ ट. ठ, ड. ढ. गढगढ, घ. त. पोढा; ठ. पोल. २. ग. च. हाट, ठ.. ढ.. हट; क ख. न; क. लाभई, ठ. लाभि; ड. पारइ. ३. ख. जेणहर, ठ. जिणिहर: क. दीसइ, ख.. मरणहर, ग. ठ. ड. मणिहर, घ. मुनिवर, च. छ. मनोहर; ढ. त. मुणिहर; क. नाल, ख. पोलिपगार. छ दीसइ साल, ढ पोलि पगार. ४. क छ लंकांनी, ठ. लंकानि, ड : परई, द. परइ. . ६. १. घ. ठ. ड. त. चुरासी, च. चोरासी, ड. चुरसी; क. चउटां, ख. च. ढ. चहुटां, घ ठ चुहटा, ट. चउहटा, ड. चहुडां, २. त. नयरमाहि उत्सव नव रंग ('नवनवा रंग' सुधारीने); ग. घ. झ. ट. ढ. उछव, च ओछव; क. नवला रंग. ३. ग. च. कोटीध्वज, ढ कोटिधज; ख. 'दीसइ' नथी, च दीसे, ठ. दीशि; ट अति घणां. १. क. लषेसरीना, ग. त लखेसरीना, घ. लखेसरी, च. लेखेसरीनी, छ. लषेसरी तणी, झ. लाषेसरीनी, ठ. लषेसरी; क.. 'नही' नथी, ख नथी, 'तिहां' नथी, ग. झ. ट. नही, छ. 'तिहा' नथी, ठ. ड. तिहा नही, ढ. नही काइ, त. नही कांइ. .. ७. त. मां ७ थी १० कडी नथी. १. च. मांडे, ठ. मांडे, ठ. मांडि दोशी, ढ. माडइ; क. मोटा पट्ट, ख. भइरव पाट, ग. घ. झ. ट. कपट, च. भलां जिहां पट्ट. ड. भवि, ड. कापडहाट. २. क. ग. च. ड. भरीआं, घ. छ. झ. भरीयां, ट. भरीआं, ठ. भरीइयां, ढ. सभर भरिया; च. दीसें, ठ. दीशि, ढ. छइ; ख. हाट, ग. ढ. ° हट. ३. क. °चचउकि, घ. माणिक मोती, च. °चोक, छ. चउक, ठ. ढ चुकि; ड. ° चुक; ग. झ. जवहिरी, . Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास सुरहिया फोफलिया सोनार ताई तेली न लहुं पार तंबोली मरहट घीहटी एक मांडई नेसती फडहटी ८ सूत्रीया पटुआ पारिख्य लोहटिया बंधारा लख्य चीतारा. मीणारा वहू आविउ विक्रय लाभई सहू ९ गाँधी साकरिया गुलियार सुखडिया सहजिई सुविचार सागउटइ सोहइ फल-रासि दीसइ रेड चडया आकासि १० घ. जवहर, च. जवेहरी, ड जवहीरा; क. झ. ट. रहिया. ठ. रिहा, ढ. रहा. ४. क. ° हीरा, ख. हरि, ग. मोति, घ. हीरे चूनी लाले, च. हीरे माणिक मोती, छ. ° हीरइ, ट हीरे मोती; क. लहिया, च. जडा , छ. ग्रह्या, झ. ट. सहिया, ठ. ढ. सहा. ८.त. मां नथी. १. क. ग. सरहीआ, घ. छ. झ. ट. सुरहीया, च. सरहिया, ठढ. सरहीया, ड. सरहीआ; क. च. ठ. ड.फोकलीआ, ग. घ. छ. झ ट.ढ. फोफलाया; ढ. 'सोनार ने बदले 'सार'. २. झ. ढ. नइ, ठ. नि; क. लाभइ पार, ख ग. लहु, च. लह, झ. लोहार, ट. लहु, ठ. लुह पार, ड. लहू ते पार. ३. क.मोटी, ख. सरहंड, ग. मरुमंड, घ. मणीयार, च. गांधी, छ. मुरहट, झ. ट. मणीहटी, ठ. ड. मरहट्ट, ढ सुरहीया; ख. घ. च झ. ट. ड. घीवटी, ग. घावटी छ. घीवट्टी, ठ. घीववी, ढ. घणा ४. ढ. अवर हाटनी नही कांइ मणा; क. मांडई, च. मांडी, छ. 'एक' नथी , जडइ, झ.ढ. 'एक' नथी, ढ. मांडि; ख नेसीती; ग. नेसत, घ. नीसे, च. ते तस, छ. नेसहट्ट, झ.ढ. नेस्तीहटी, ठ. नेसट, ढ. नीसति; ख. फडइहट्टी, ढ फलहट्टी. ९. त. मां नथी. १. क.ड. सूत्रीआ, ग. सुत्रीया, घ.छ झट ठ. सूत्रीया, च. सूतरीया; ख. पर, ग. पटूया, घ. पटसूत्रीया, च छ.ठ.ड. पटूआ, झ.ट. पडसूत्रीया, ढ पाट्या; क. परक्ष, ख.ठ. पारिष, ग.च. पारखी, घ पारक्ष, छ. पारषी, झाड. पारिष्य, ढ. पारिक्ष. २. .क. लोटाआ, ख. लोहठीया; ग.च.झ.ढ. लोहटीया. घ. लोटीया, छ.ट. लोहटीआ, ठ. लोहट्टीया. ड. लोहटिआ; क. बंदारा; क.ख.घ.ढ. लक्ष, ग.च. लखी, छ. लषी, झ-ठ.ड. लष्य. ३.ख. चीत्रारा, छ. चित्रारा; क. मीणारा, ख.छ. मणियारा, घ. मोची छइ, च.झ.ट. मणीआरा, ढ. बंधारा; ग.घ. बहु. ४. क.ग.झ.ठ. आविउ, ख वेचइ, घ. आवइ, च. आव्यु, छ आव्यउ; ख. विका, ढ. विकई: घ.लेखा सहु, च. लाभे, ठ लाभि. १०. त.मां नथी. १. ख. गंधी, च. वारू; क.च.ड. साकरीआ, ग.घ.छ.ठ. साकरीया, झ.ट. सागरीया, ढ. साकरया; क.घड. गलीआर. ख. गलियार, ग.झट.ठ. गलीयार, च छ. गुलोअ.र; ढ. मणीयार. २. कड. सूषडीआ, ख सूषडिया, ग.घ.झठ सूषडीया, च. सूखडीआ, छ. सूषडीआ ट. सुखडीया, ढ. सूखडिया; क. सहिजई, ग.ट. सहजि, घ.झ. सहिजिई, च सहजि, ठ.ढ. सहिजि, ड. सहजइ; ग ड ढ सविचार. ३. ख, सागहट्टइ, ग. सांगुटइ, घ, सागरहटइ, च सागुठि, छ. सागउटि, झट. सागबटइ, ठ सागुटि, ड. सागुटिइ. ढ. सागुहटइ; क. सोह ठ. सोहि, ढ. दीसइ; घ. फल सार, छ. फलनी रासि, ठ. फलनी राशि. ४. घ. इस्यां अपूरव. चहुटां सार; क. दीसई, ठ, दीशि, ड. दीस, ढ. तेहना; च. चेडा चेडी, छ. एक चड्या, ठ. चडिया, ड. रेडि. ढ. चडीया; च. आवास, छ. आवासि, ठ. आकाशि.. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तु तीणि नयरीय, तीणि नयरीय, वसई विवहारि तेह माहि एक मूलिगउ मणिचूड श्रेष्ठि तिहां जाणउं सयल-सजन नइ पोखतउ दानि मानि गुणि करी वखाणउ प्राणप्रिया तसु सरसती रूपिई रंभवतार तसु कूखिइं ए अवतरिउ सुभ-वेलां सुविचार ११ सुपनंतरि पेखइ निसिहि हीरा-माणिक-हार एह जि अरथ पसाउ करि कहुउ प्रिय कवण विचार १२ पुत्र ज होसिइ तुम्ह तणइ सुपन-तणइ आधारि फलिउ मनोरथ तुम्ह तणउ सुंदरि एह विचारि १३ वस्तु नवह मासह, नवह मासह, रहिउ गब्भम्मि अट्ट दिणंतर अग्गला शुभ-मुहूरति शुभ पुत्र जनमिउ सुपनंतर अणुसारि तिय पुत्र नाम तीणइ हरखि दीधउं सगां सणीजां हरखियां वद्धावइ वर नारि रतनचूड सुत जनमियउ उच्छव घरि घरि बारि १४ ११. १. क. तीणइ, घ.छ.ठ.ढ. तेणि, च. तेणइ, ड. तिणइ; ग.घ.झ-ट.ठ.ढ. नयरी, च. नयरइ, ड. नयरई, त. नायरिं; ढ. "विवहारि'ने बदले. 'सविवारि'. २. 'एक ने बदले : कमां नथी, ख. जे, ग.ट.ड. ए, च. ते सह मांहि. ३. क.खग.घ.च.छ.त. 'तिहां' नथी. ४. .नइ : क.ते, ख.च.छ.ड. तिहां, ग.मां नथी, च. जन, ठ. तिहा. ७. ढ. रूमिहि. ८. 'ए'ने बदलेः ख.ड.मां नथी, घ.च.ढ. सुत, झ सुर; ख.च. अक्तर्यउ. ९. छ. सुत सार. . १२. १. क. तिसिई, घ. अनई, च. करी, झ. देषी तिसई, ठः नि कहि, ड. वहइ, ढ. निसि सनातरि पेखीउ. २. क. माणिकि जडीउ हार, छ.झ.ढ. माणिक सार. ३. ट. प्रसाउ, क. करउ, ग. करु ४. क श्रीउ, घ. प्रीऊ, ट.त. प्रभु, झ. सुपनविचार. .. १३. क. होसई, ख होर यइ, ग.घ.ड. होसइ, च.झ.ठ. होसि, छ. हुशइ, ढ. हसइ, त. हुइसि. २. च. सुनितरि अनुसारि, ढ. अनुस रि ३. घ. फलइ, अम्ह तणा, च. अम तणा, छ. मुझ तणउ, ढ.त. आपणु, १४. १. ख ज.झ.ट. गर्भवासि, ठ, तस गब्भी, ड, तस गर्भ, ढ. गर्भ माहि. २. के दिणंतरि, ख. दिणंत्तिरि, च. दिनारि. ३. घ. जायु, ज. सुभवेला सुत जममिउं. ४. तिह, ग. तीहं, घ.च.छ. तिहां, झ तव, ट. तीय, ठ.ड. तीह, ढ. लगी. ६ क. नामि ए हरषि, ख. एह दोधडं, ग ए हरखित धूय. घ. रत्नच्ड तसु नाम धायु, च. तिहां रतनसार अनु. सारि दीधउ, छ. ठ. नाम ए हरषि, ज. पुत्र देषि मनि हरष पामिउं, ड. नाम हरषा सु - Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचू उ-रासे चउपई वाधइ कुमर अतिहिं सुविशाल रतनचूड मेल्हिउ नेसालि आगइ कुमर ज वेश्या-तणइ मेल्हीता विद्या सीखणइ १५ सोभागह अपरि मंजरी वेश्या नामि सुभगमंजरी पाठित गुणित लिखित सुविशाल भरह-भेद सीखवियउ बाल १६ विद्या सीखी धरि आवियउ बापिइं बेटउ परिणावियउ विलसइ वसुहां नव नव भोग वेश्या-सरिसउ टलिउ संयोग १७ वेश्या मन-माहि चिंतइ इसि पी न सकउं तउ ढोली सकउं विद्या कल सीखवियउ सही मुझ सामुहउ पणि जोइ नही १८ एक दिवसि चउहटा-मझारि मित्र बिच्यारि अछइ परिवारि वेश्या नारि मिली तिणि ठामि बोलाविउ पुण लेई नाम १९ कहि नइ मडफर एवडड़ किसिउ जाणइ चंद्र अमावसि जिसिउ बाप-तणी लखमी विलसति माइ-सरीखी लोक भणंति २० ढ नाभिहि हरख हू3. ६. ज. सणीजा सवि भिली, त. सणीजा सहू भिली. ७. च. छ. झ. ट. नरनारि, ढ. धावइ वर बाल. ८. घ. रत्नचूडजन्मह तणु. १. च. उछवि करि घरि नारि, ढ. उछव जय २ कार. ढ. मां आ पछी आटलो पाठ वधारे : चंदु जेभ बीजह तणु, रूप मननथण अवतार, १५. ही च. ना उपला हांसियामां - ‘वार थिकी नइ दीधो आदेश ए' देशी-एटलु उमेरेलु छे; १. घ. सुत अनोपम अतिहि, च. कुमर तिहां सुवि.० २. ढ. सुपिउ नेसालि. ३. 'ज'ने बदले : क. धरि, ख.मां नथी, घ. जो, ज. जु, ढ. जे. ४. क. मेल्हाता कला , ग. घ. मेल्हाता, च. मेहली सीखव्यो विद्या खास, छ. मेल्हतां तिहां, झ. ट. त. मेहलीता, ड. मेहलिउ तिहां, ढ. मूकीता. १६. १. म. घ. जोतां गेह ऊपरि, च. आंबा ऊपरि जिम. २. क. सुभाग सूदरी, ख. सोहर्गसुदरी, घ, सुहगसुदरी, छ. ठ. ड. सोहागसुदरी, ज. झ. ट. सोहगमंजरी, ढ. सोहग- सुवरि, त. सुहगसुंदरि, ३. क. सिवाय बधे 'पठित.' १७. १. ख. विद्य, झ. ट. कामकला, ठ. 'कल' उपर 'स' उमेरीने 'सकल', ढ. कली, अन्यत्र बधे 'कला'. १९. १. क. च. चउटा, ख. झ चुहटा, ग. घ. ज. चहुटा, छ. चहट्टा, ठ. चिहुटा, ड. चुहुट्टा, ढ. तु हाट, त. चुहुटा ३. ग. त तीणइ च. तेणइ. २०. १. क कहि न आडवर, ख. विहा नउ, ग. कहि नं, घ. मंडलि फिर ए कसू, .. च. कहि रे, छ. कडिषउ एवंडो, ज. दर्प, झ. ट.न गर्व ढ. मरहट, त मस्ट. २. क. अमावाश्या नउ चंद्रभा जिसिउ. ३. क लिविमी, ख ग. ड. ढ. ज. लक्ष्मी. च. लखमि, छ. ठ. लषमी, ज. झ. लिषमी. ४. छ. सरीसा, ठ. शरीसु. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रा सही तीणि वयणि दूहविउ कुमार घरि आविउ मुख छाया खिसिउ तातिई पूछिउं वछ कालमुहउ धन केतलउं तुम्हे आप तात भाइ तई बोलिउ किसिउं धन्न घणउं छइ घरि आपगइ वलि वलि कांई कहउ तुम्हे तात ऊछीन धन तुम्ह तणउ लेसि साचउं वयण तु एह जि सार वर्षाकालि हुइ दर्पण जिसिउ २१ कांई चिन्ता हुइ ते कहउ विवसाय विण हुं जीवउं नही २२ अम्ह मनि हालाहल हुइ जिसिउं भोगवि भोग तुं निश्चलपणइ २३ हूं नवि मानउं एह जि वात देसाउरि विवसाउ करेसि २४ दू हा सुणी बाप कहइ नही जावा नही वीनवउं तात सुणउ 'पुत्र- तणां वयणह देशांतर दिउ जुगतउं बेकर जोडी वेगि सजाई वाहण-तणी करिव दिउ मूं तात २६ तुम्हे वात तिणि खेवि वस्तु ताति मन्निय, तांति मन्निय, बयण सुविसाल पंच कोडि द्रव्य अप्पिय पायक सइ पंच पुण तात तणा चरणह नमी बाई सीखामण कहीं कूटकटाहि म जाइ २७ माइ २३. २. ख. हालाहल समु; ग.च. झ. हालाहल जिस्युं . हेवि २५ सजन मित्र पुण साथिइ थप्पिय वाहण-मज्झि बहु वस्तु घातिय अनइ मोकलावी २१. १. क. ख. घ. झ. तिथि, ग. तीणइ, च. तेणइ, छ. तेणे, ज. ढ. तेणि, ड. तिणइ; ख कुपिउ, ग. हे मित्र, घ ढ दुमीउ, च. दुहवाणो, छ. दूमयउ, ज. ड. दूमिउ, त. दूसीउ २. क. वयण सुणिउं तिणि वार, झट. जि संसारि, ३. क. मुखि झांषु थयु, घ. झ.ट. किसिउ, ढ. जिस्यु, त. असिउ, घणुंखरु 'छाया' ४. ग दर्प, जिस्यो; घ. वर्षाकाल, जिसओ; च. हुइ दर्पण जिसउ; ढ. वृक्षा०, जिस्यु; त. हुइ दर्पण. तिसिओ, च. किस्यु, ज. इसउ, क. सूर हुइ जिसउ; ख. जिसउ जिस्युं : ट. सिउ; ठ जसिउ; ड २२. १. क. 'वछ' नथी; भइ वछ चिंता किमी; त भणइ. अमनइ कहउ; ट. ३. ग. अम्हे; त. ग.घ.च.ड. 'कांइ' नथी; च. बापि; झ.ट. बापिइ; ढ. तात २. ख. ते कहउ मनि वसिउ; च. अम्न कहो; झ. अमनइ कहु; ढ आज नवी तम हीयडइ वसी; त कुणड् दूहव्यावू कुहु. मुझ आपु. ४. त. विवसा करु हूं परदेसि जई. २४. १. झ.ट. कहिसिउ तात ३. क. तुम्ह का हूं लोस; ग. लेसु. ४. क. करोस; ग. करेसु; झट. जइ जइ विणज. २५. १ क ग.च. ठ. वयण; ३. क. देसंतरि; ग. देसंतर; च ट. देसाउरि. २६. १ ख ठ. मुझ: ग. सुणि न; घ. सुणु हिव; च. सुणे तुं; ४. क.ग.ट. दइ तू मात; ख. तुम्हे; घ. दिइ; च दे तुं मात; ठ. दिउं मात. २७. ३. ख. सुघन; ग. पुत्र; च मित्राणि ४. क. सइ पंचास ५. झ. मांहि. ७. क. भोकलावइ. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास चउपई कुमर कहइ तुम्हे कहिउ स्या भणी ते कारण तुम्हे कहउ आफणी वलत तातइ वोलि इसिउं सांभलि वच्छ दीप छइ जिसि २८ तीणइ दीपि वसइ जे लोक सांझई बोलिउँ विहाणइ फोक राति दिवसि तिहां कूड प्रपंच ऊदाली लिइं नही खलखंचि २९ अर्धा गुलि राजा. परधान सेटि च्यारि तिहां कूड-निधान लोभनंदि लोभाकर बेउ लोभसमुद्र लोभसागर तेउ ३० तात-सीखामण हियडइ धरी चालिउ कुमर स वाहण भरी पूरियां प्रवहण वाय-नई प्राणि कूट कटाहि गयां निरवाणि ३१ पूछिया लोक कवण ए दीप कूटकटाह जिसिउं हुइ सीप तातिई वारियां आबियां तिहा कुमर भणइ हिवइ जईयइ किहां ३२ गाथा मणसा चिंतइ अन्नं अन्नं पुण होइ दैवजोगेण मणसा वि जं न चिंतइ तं तं होइ विहि-निउगेण ३३ कुमर भणइ सुणि मित्र तू' आपणि कीजइ किम्म. कांई बुद्धि विभासीयइ छयल न छलियइ जिम्मउ ३४ मित्र भणइ सुणि तू कुमर वाहण कंटि धरेउ जं होसिइ तं जाणिसिउ बुद्विइं करिसिउं भेउ ३५ २८. आरंभे च.मां हांसियामा : राम सीता धीज करावइ रे. १. क.ग.घ.च ट. भणइ3; ख. तणी. २. क. कारण कहियो हित भणी; ख. आफिणी; झ. तेह वात मुझ. २९. ३. के. देसि. २. क.ख.ग.घ. बोलइ; ख व्याहणइ; ग. व्याहणइ; झ.ट. सवारे. ३. क. करइ कू.ड.. ३०. १. ख. अर्दोगणि; गाठ. अर्ध गलि; घ. अर्द्ध गलइ; च. अर्ध गली: झ. अर्धा गलि; ट. अर्धामल. ३२. २. क. ए कहीए द्वीप; ठ. ए कवण सदीप. ४, क. भणइ हवइ जइइ कहु किहां, ग. जाईस्यिइ, घ. जइसइ. ३४. १. क. मित्तजी. ३. घ. सहुइ मनभां विमासीउ. ४. क. जेणि, ख. छली न सकइ जिम; ग. छलय; घ छलि म; च. छलइ. . ३५. २. ख. धरेसु; झ. ट. धरेइ. ४. ख. बुधि भली करेसु; ग. करेसु. Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास चउपई वाहण कंठिई आव्यां सही गाम-माहि तव वात जि हुई सेठि च्यारि हियडइ गहगहिया वाहण पाखलि आवी रहिया ३६ तोणइ कुमर बोलाविउ ताम कहउ तुम्हारळ किसिउं नाम कुग बंदिर था तुम्हे आविया सो सी वस्तु तुम्हे ल्यावीया ३७ कुमर भणइ सुणउ तुम्हे नाम तामलती नयरी अम्ह ठाम मणिचूडाभिध कहियइ बाप नामई लीधई नासई पाप ३८ च्यारिइ बोल्या हरखिई हसी एह वात अम्ह मनि उल्हसी भूला भूला आव्या ठामि हरख हूउ तुम्हारइ नामि ३९ रत्नचूड कुमर अम्ह नाम दीठउं अभिनवउं तुम्हार गाम वणिगे चिहुं वलतू वोलियउं दूध-माहि साकर घोलियड ४० एक भणइ हिव सुणि भत्रीज आज अम्हारइ आखा-त्रीज थाहर जोतां सगपण मिलिउं घेवर-माहिइं जिम घृत ढलिउं ४१ बीजउ भणइ तुम्हे ऊठउ सही मंदिर आपणइ आवउ वही तिणि वारइ जीजउ बोलियउ चउथउ बाहइ विलगी रहियउ ४२ मित्र भणइ तुम्हे सुणउ कुमार कांई लिउ करिवानइ जुहार अणजाणिइ जउ सगपण मिलिउं जाणइ बीज-तणउं चांद्रिणउं ४३ ३५. ३. क. घ. मंदिरि थी; ख.ग. मंदिर था; च. वंदिर थी; ठ. मंदिर थिया; झ.ट. थानकि थी. ४. ग. मोतीषालइ वधावीया; घ. च. झ. ट. ठ. मोती थाल भरी वधान ३८. १. क. ठ अम्ह; च. अम्ह गाम; झ. द. माहरु ठाम. २. क. ठ. गाम; ट. लामलवती.. ३९. २. क. ख. अम्हनइ; ख. अपदसी. ३. ख. भलइ. ४. क. हरषी शई हिव ताहर; ख हरषास्यद: ग. हरखी सि; घ. हरख्या हिवइ. ४०. १. क. मुझ; घ. च. अम्हारू: ट. माहरु. २. क. दीठ अम्हे, ठाम.; झ. ट. एह अपूरव. ३. घ. वालावीत; च बोलाविओ. ४. ख. साकरमाहि दूध ज मिल्यउ; च. भेलीओ. ४१. ३. क. वाहन जोता; च ठाहर. ४. क. घी जि ढलिउं; ख. घ. घीअ ज. ग. घीय ज. ४२. २. क. ग. ट. भाई; ख. राई; घ. झ. ठ. भई; ३ झ. ट. ऊमहिउ. ४३. २. झ. ट. श्रीफल, Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड.रास लीधां कापड कसमस द्राख चारुहली सिउं वानी लाख चालिउ कुमर मिलेवा भणी आगलि आवी बहिनर घणी ४४ भाई प्रतिइं ते दिई आसीस अम्ह मनि पहुती आज जगीस ऊतावली तिहां दिई अंघोलि भोजनि सालि दालि धृत-घोल ४५ कुमर आरोगी ऊठिउ जाम हीडोलाटिइं पढिउ ताम ततखिणि. आव्या च्यारइ सेठि आवी-नई बइठा पग-हेठि ४६ इक पग चांपइ घालइ वाउ इक बीडी दिइ पान जि खाउ कुमरि चिंतिउ अइसिउं जाम ओलग सारइ सारउं गाम ४७ च्यारिइ पूछई वस्तु ज किसी कहउ साचउं तुम्हे हुइ जिसी कुमर भगइ वस्तु अम्ह तणी साहली कउची आछी घणी ४८ तुम्हे कही वस्तु छइ जेतली इहां माठई आवी ततेली एवंकारई निरतउं कहउ वचन तु तुम्हारउं साचलं हउ ४९ कुमर विचारइ हियडइ ईम सिट्ठपणई ए च्यारइ सीम सरिखा-सरिखउं जउ थाईयइ सिटिई सिट्ठ तु पजाइयइ. ५० कुमर भणइ सर्वांकइ सही दस कोडि सरवालइ कही। वाहण-वस्तु उतारउ सहू वलतउं भरि आपेसिउं बहू ५१ ४४. १. ग. कसमशि; च. कसमसी. २. क. नवली नव लाश्य; घ. लीधा मोदिक आबा साखः च मित्र थईनइ मिलिआ लाख. ४५. १. झ. ट भणी. ३. ख. ग. घ. ठ. हुई. ४. झ. घोलि. ४६. 1. क. अगेगी. २. क.° लाषाटइ; ख. ढोल ताला इव च्छाया ताम; ग. हीडोलाबाट ढाली छइ ताम; घ. वांधी छि तांम. ४. क. बइठा कुअरना ४७. १. क. घातई: ठ. याति. ३. क. ए आउं जाम; ख. भन करि. ४. क. करइ, सह; झ. ट. ठ. सघलउं. ४८. १. क. वाणिज. ४. क. ख. ग. ट. साल्ही कु ची; ग. चोल ज घणी; घ. सखरी वस्तु छइ अम्ह घगी; च. सारी उंची; ठ. कुछी. ४९. १. क. जे भली. ३. क. कहूं; ग.ट. कहु. ४. क. हृउं; ग. रहु; च. झ. ट. लहु; ठ. वहु. ४९. पछी च. मां वधारो : हवडां ग्राहक नथी कोय, माठइ द्रामि न थाय सोय; माहोमांहिं ते करइ पारसी, कुयरि वात न जाणी किसी. ५०. २. क. सिद्धपणइ, भीम; ग. सेठपणइ, च. सेठ खल ए; झ.ट. सिद्ध बणिक. ४. क. सिठ प्राइ सिठ जि थाईइ: ग. पईजाई इ; च. तो पणि कुणहिं नवि वाहिई; ठ. भाविइ. ५१. १. क. सवि अं हुई; च. होय; ठ. हुई. २. क. ठ. थई: ग हुई; च. जोय. रत्न-२ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास सघली वस्तु समोपी जाम विहिची विहिची लीधी ताम द्रोम मगाव्या तेणई वारि भणई लीधा ते जूआ च्यारि ५२ वाणिउत्रि पाइ आवी कहिउँ जेणई लीधउं ते अम्हे नहु कुमर भणइ सामलि तूं मित्र आतां दीसइ खरउं अखत्र ५३ मित्र भणइ राउलि जाउ आज राउ टाली नवि सीझइ काज ए तु झगडउ पछइ होइसिइ हूं न जणाविउ राउ इम कहिसिइ ५४ दुहा कुमरिइ जाम इम चौतविउं जाणिउं राउलि जाइ शुक्राक्ष तव एकलउं आविउं तीणइ ठाइ काणउं बोलइ सुणि कुमर आविउं हूतउ तुम्ह तात आंखि मेल्ही मई गरहणइ सहु-को जाणइ वात ५६ ते आपउं तुम्हे द्रव्य लिउं पंच सयां दीनार कुमर भणइ मित्र ए किसिउं कहउं तुम्हे एह विचार ५७ मित्र भणइ सुणि तुं कुमर हिवडो लीजइ अर्थ चालइ तिम चल्लावियइ अरथिइ . टलइ अनर्थ ५८ पंच सयां दीनार लेई कुमर कहइ सुणि वच्छ जातां चक्ष जि आपिसिउं हिवडां छांडर्ड __ कच्च ५९ ५२. २. क. ततषिणि ताम; च. वहिला वहिला; ठ. विणगे विहची. ३. क. जेणइ; ग. वारोवारि. ४. घ. सेठि ते; ठ. वस्तु लोधी ते. ५३. 1. क. वाणत्रि पाछउं; ग. झ. वाणुत्र. २. झ. ट. वस्त लीधी. ४. क. करिउं; ठ. वडउ. . ५४. २. क. नही. ४. घ. च. जाण्; ठ. मुझ. ५५. १. घ. जो मनि; च. हीइ. २. ग. घ. जाउं. ३. घ. अक मिलिउ. ५७. २. ख. सइ; ग. सई'; ठ. सि. ३. क. ग. मित्रह किसि; ख. सु कहउ; झ. ट. तव भित्र सिउं. ५८. १. क. सांभलि कु° ; ग. कुमरह. २. ठ. हवणा. .: ५९. १. ग. सई; ठ. सि. २. क. ठ. मित्रा; ग. घ. वत्त: च. वात. ३. ख. ग. घ. आषि जि. ४. क. ग. ठ. बत्थ; घ. वथ; च. छोडो झगडा जाति. ५९. पछी ख.मां आटलं हांसियामां वधारेः ए कम षोटाड दीसइ सही, हिव आपण जीपीसि नही; जे टूकउ ते तरइ हाथ, तेह सउं किम दिवराइ बाथ. ५.. पछी च.मां वधारोः क्षणेन लभ्यते यामो यामेन लभ्यते दिनम् । दिनेन लभ्यते कालः कालः कालो भविष्यति ॥६० १. क. रंजीउ. २. क. भेटिउ; झ.ट, मिलीउ, ३. क, मेल्ही , Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास चउपइ राज-भवनि चालियउ कुमार आगलि माली भेटियउ सार चउसर लेई कीधउं भेटणउं कांई जातो आपिसिउं तुम्ह तणउं ६० सूत्रधार मिलियउ सई फेटि वारू पावडी कीधी भेटि हिवडां जाउ तुम्हारइ ठामि रुलियाइति करिसिउं जातां गामि ६१ आगलि देखइ इक प्रासाद वणिग च्यारि तिहां करइ विवाद तेह माहिलउ बोलइ एक एह कुमर आपेसिइ छेक ६२ तीणइं बोलई कुमर जि हसिउ कहउ तुम्हारइ झगडउ किसिउ समुद्रि नीर अछइ केतलडं तुम्हे कही आपउ हुइ जेतलउं ६३ च्यारिइ बोलइ पांच पांच कोडि वाहण तुम्हारउं सरिसउं जोडि जेह नउं वचन चडइ परमाणि रिद्धि सघली तेहनी निरवाणि कुमर भणइ तुम्हि जाउ ठामि झगडउ भांजिसि जातां गामि सूरिज संध्या जाई मिलिउ कुमर विमासी पाछउ वलिउ. ६५ मित्र भणइ तुम्हे कीधउं किसिउं राय:प्रतिइ तुम्हे सिउं आइसिउं वलतउ कुमर ज बोलइ इसिउँ झगडा विलगा कीजइ किसिउँ ६६ कवण कवण तुम्ह झगडा हूया नामि प्रमाणि कहउ जूजूया मिलियउ माली पणि रथकार वणिगे चिहूं लगाडी वार ६७ ६०. पछी च.मां वधारो; वली कुमर राउलि चालिउ, सूत्रधार आगलि आविउ, तेणइ मेहली आगलि पावडी, कुयरि दीठी अति रूयडी. ६१. १. क. सफेटि; च. संफेटि; ठ. साफेटि. ६२. १. क.ग. प्रसाद. ४. क. आ, करी छेक; ठ. ऊतर. ६३. २. क. 'कहउ' नथी, छइ किसिउ, ३. क. छइ कहु. ४. क. 'तुम्हे' नथी. ६४. १. घ. पांच सि; च. च्यारि च्यारि. ४. ग. ऋद्धि. ६५. २. क. भांजउ; ग. भांजीसइ; ठ. रलीआइति करसिउं. ३. ४. घ.मां नथी. ३. क. नइ जई; ग. संध्यां जई. EE. अहींनां चरण 3-४ काठमां २-३ छे. क.ग.घ. 'विलगा'ने स्थाने 'लागो': च. मां अहींन चोथं चरण त्रीजा चरण तरीके छे. ४. क. विम्मासणि हवइ कीजइ किसिउं; च. कहु तुम्हने ऊपजइ जिस्यु'; ठ. कूडकटा साचू हुइ जिसिउं. ६७. क. नइ; झ. काणउ माली. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧ ૨ रत्नचूड-रास कुमर भइ हिव कीजइ किसिउं मित्र भणइ साहस म म छंडि मित्र भणइ तू सांभली वात तेह तणइ घरि जाइजइ आज कणय दढ सउ बांधी गांठ गहिराहितु महिमहितु गयउ कण कण जाणीतू पात्र रूपई रणघंटा निहालीयइ जोई कुमर सु चितइ जाम पधारउ मंदिर आपणइ पाछी दासि जई कहियउ घणउं ततखिणि ऊठी आवी ताम कुमर पहूत जात- खेव मंदिर जिहां दीनार आप्या कहउ तुम्हारइ ऊपजइ जिसिउं एहविइ वीहइ भागी डि ६८ जे मानीतू राउलि पात्र सरसिइ सघलडं ताहरउं काज ६९ मागणहार भरावइ मूठि वेश्या मंदिर जाई रहिउ ७० जमघंटा नउं सहूइ छात्र ओ बइठी पइलइ मालीयइ ७१ आगलि आवी दासी ताम अम्हे नाव उं तेडइ तुम्ह· तणइ ७२ रणघंटा हीउं रणझणिउं पधारउ तुम्हे पग दिउ आम ७३ हींडोलाट ढाली छइ तिहां हरखिई हरख मिलिउ तिणि वार ७४ दूहा उल्लसी नयणे तिहां तिहां पुव्व-भवंतरि मण मग्गण सही प्रेम रस अमीय झरंति हसीय मिलति ७५ ६८. १. ग. हिवई. २ ग. मत; ट तुम्हनइ ४ क. अहवी मोटी लागी राडि; ग. एहवा भागी बीहइ; घ. बापडी. झ.ट. अहवी वातइ; ठ राड. ६७. चं. मां आ प्रमाणे : अह गोम खोटारू सही, हवे आपण जीवू नहीं; जे टुका ते नेरी हाथि, तेद्दे स्युं किम देवराये बाथ. ७०. १. च.झ.ट. घांच सइ ४. क. घरि जई ऊभु रहिउ; ग. वेसाहरि आगलि; घ. घरि आगलि ; ठ. वेश्याहरि. ७१. १. क. कहु कहिनां कही तुझे पात्र. ४. क. मोटइ: घ अछइ बइठी; ठ. ऊचि. ७२. १. क. जावड; ख. जउ, काम: ग. जाउं; च. जावु; झट जोतु, काम. ३. क.ठ. आवी कहिउ. ७३. ३. ठ. वेश्या ऊठी. ७४. १. झ. तिहां. २. क. हींडोला; च. हींडोलाखाट; झ.ट. जिहां. ३. क. जातां खरच; च. द्रव्य लाख. ७५. २. क. नयणां; ठ नीर. ३. क. सगण सुगणसिउ; ठ. सगुणा सगुणि; घ. अमीयरस; च मणि माणिक तिहां. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नंचूड-रास रंग-सुरंगा वयण तिहां बोलइ अबला बाल फलिउ मनोरथ अम्ह-तणउ सफल जनम सुविशाल ७६ कुमर बईठउ तिणि समइ आगलि उच्छव-ग रणघंटा नाटक करइ जाणइ अपछर अंगि ७७ कला बहुत्तरि परिकरी वीनवीउ कुमार दृष्टि तुम्हे दीधी नहीं अम्ह नाटक इक-बार ७८ हे सुंदरि सुकला भली तई कीधी सुविशाल चिंता-सायर मूह-नई कहि-नई कहु वर बाल ७९ कह उ स्वामी चिंता किसो जे हुइ हियडइ हेव तिणई दुखिई हूं दुखिणि मुझ आगलि कहउ देव ८० वस्तु " निसुणि सुंदरी, निसुणि सुंदरी, पुव्व वरतंत वाई वाहण आवियां इणई बंदिर तडि कंठि लग्गिय सेठि च्यारि तिहां आविया विविह वस्तु तेणिइ जि लिद्धिय सांज्ञई द्राम मगाविया मुकर गया तिणि वारि काणउ माली चाखडी वणिग कह्या ते च्यारि ८१ चउपई चिंता एह तुम्हे परिहरउ दुक्ख सुक्ख मनहियडइ धरउ जमघंटा छइ माहरी माइ. तेह कन्हलि बुधि पूछइ राइ ८२ ७६. ५. ठ सुंदहि एह विचार. ७७. क.ग च. रचइ. ४. क रंग. ७८. 1. ठ. परवरी. २. घ. नवि भीनु. ३. क.ठ. तुम्हो नवि दिद्ध पुण; ख. न दीयण; च. न दीध पणि. ४. च. ए नाटक अम्ह सार. ७९. 1. क. तुझ कला. २. क. कीवन'. ३. ग. मुंह ° ; झ.ट. हुं पडिउ: ठ. मूरहि. ४. क. कहि तु कह वर बोल. ८०. ३. ४. च. लाज तजी मुझ आगलिं साचु कहु प्रभु हेवि. ८१. ३. क.घ.झ.ट. मंदिर; ख गाठ मंदिर; च. आणे तटे प्ररवेसी कीधो. ४. क. तव. ६. झ.ठ. पावडी. ७. ग. विणग; झ.ट. विलम्गा; ठ. वाहिया ते जाणि. ८२. १..क. एह जि चित मनि. २. क. तुम्हे म; ख. मति; झ. मनि. ४. क. कनइ; घ. कहि पूछिसिउ जायः च. कह्नि. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ रत्नचूड-रास सहू तिहां पूछेवा आवइ वयण अह्मार मन-माहि धरउ नारि-वचन पाए मन-माहि घरी नेर- रणज्ञणकार जमघंटा पूछइ ए कवण एतलउ ऊतर आपिउ जाम पाछिलि जई नइ बइठा तेउ रतनचूड आविउ छइ आहां चिहुं बोलिउं अम्ह होस्यइ लाहु कहउ रे तुम्हे कहिउं छइ किसिउं रे रे तुम्हे वरांस्या मूलि ए मागिसिइ मसानां अस्ति ए एतलउं न जाणइ बाल कूडां माणिक कूडां ठीक नाहउ एह न जागईं किसिउं सात वरस - नइ बुद्धिई करी सेठि भणई ते रोहउ किसिउ जमघंटा भणइ सांभलउ सही बुधि जूजूई कहई छइ बहू पुरुष - वेष हिवडां परिहरउ ८३ पालटिउ वेस साडी करी वेश्या नई जई किद्ध जुहार ८४ सहियर नात्रइ ए छइ रमणि च्यारिइ सेठि पहूता ताम ८५ नारि भगइ तुम्हे लेज्यो भेउ जमघंटा पूछइ तत्र लाह ८६ बुद्धि-तणउ अम्ह करउ पसाउ जातां वाहण भरी आपिसिउं ८७ लाभपणा- नई पडिसिइ धूलि कर सिइ कवण तुम्हरी पस्ति ८८ अम्हे आपिसिउं कूडा परवाल तेह-तणी वाले सिउं नीक ८९ राखे मनि विम्मास इसिउं प्रधान-मुद्रा रोहइ एह वात अम्ह नइ उपदिसउ मन वचनिई काया- सिउं रही ९१ वरी ९० * छइ गाम नटावा नउं ऊजेणी परिसर कसेलवट्ट नटावउ वसइ प्रेमवती प्रिया- सिउं हर ८३. २. क. कहू छ; ग. कहिसइ. ८४. २. ठ. सजाई करी. च. पहिर्यो त्रिवेष ४. क. करिउ. ८५. २. क. सहीघणू अनइ सगपुण; ख. छइ. सगपण रमण. ग ठ. सहीयपणइ छइ ए सगणः घ. सहीयप छई ए सगपण; च सखीणि एह सगपण, ८६. १. क. बेइ; ख.ग.घ.च. बेउ. ३. क. आज; ग.घ. च.झ ट. साह. ४. क. ते साथि अम्हे मांडिल काज; ग.ठ. कुण लाव्या लाह. ८७. १. क. कहइ च्यारि २. ८८. १. क. वणशशिउ २. ८९. १. ग. एतली बुद्धि. ९०. १. क. म जाणउ ९१. १. ख. नई सांभलि सही. ४. क. कही; च. थिर रही. ९२. १ झ ठ. नाटकीया. २. ख. नयर नटावा: च. नर. ३. ग. कसेलब; घ. कुशल; च. भरह. ठ. व.सेल. रहिवाठाम हसइ ९२ क. तुम्हे; ग. तम्हे. ३. क. कां रे. क. ● पणइ पणि ४. ख. पुस्ति: ग. पक्षि. ३. ग. कूडि ठीक, च. अकीक ४. क.ठ वाहेसिउ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास तेह नउ बेटउ रोहउ जाणि पांच वरस-नउ हूउ प्रमाणि पणि तु तेहनी माइ जि मुई बापिइ तय बीजी संग्रही ९३ बापिई पूछिउ छ कां दूबलउ सीदाइ कइ. पहुचइ रुलउ रोहउ भणइ सुणउ तुम्हे ताय साचा-वोली एह जि माइ ९४ पहिली जूठा-बोली हती एह बात तुम्हे सुणउ वीनती। आवि वच्छ सीरामण लेउ मउडउं भोजन हूं नवि देउं ५५ रमी करी हूं जातउ जाम ततक्षणि भोजन देती ताम एक वात सुणउ तुम्हे सही पहिली जूठा बोली कही ९६ आह जि साचा बोली इसी जिमवा तेडइ मनि ऊकसइ जउ तिहारई हूं नवि गयउ भोजन-नउ सांसउ तव थयउ ९७ बाप भणइ ए साचउं कहिउँ वचन एहनउं मन-माहि रहिउं . जिहां जाइ तिहां लेई साथि जिमाडइ पणि आपणइ हाथि ९८ रोहा-मनि विमासण इसी एह-नउ मद ऊतारउं घसी चंद्र-तणई अजूआलइ रही रोहइ वात विमासी कही ९९ रोहइ बात जणावी इसी घरह तणी ए रीति जि किसी एक पुरुष जूउ नीकलइ बाप-तणउं मन तिहां खलभलइ १०० ताहरी मा दिउं भूडी रांड इच्छां होंडइ आपणई मांड वंडपण-तणी विमासणहारि मइ परिग्रही अइसी नारि १०१ ९३. पछी च.मां वधारो : व्याधि हुइ तो वेदन लहइ, सूकातो जाय न सारो रहइ; एक वार रोहो दूबलो दीठ, पिता तण मनि आरति पयट्ट. ९५. ३. क.ग. दिउ'; ख.घ. दीउ; ठ. देउ. ४. क. पछइ; ख. लहउं; ग. दिउं; घ.ठ. दीउं. - ९६. १. क. रमी २; ग. रमीभमी; घ. रही रमी. ३. ४. क मां नथी. ३. ग. वात तम वीनती. ठ. वीनती. १. ग.ठ. हती. ९७. १. क. इसिइं; ग. सही. २. क. उवसइ; ख. उलसी: ग. उल्लसइ; झ. ऊकसी. ठ. ऊषसि. . ९८. १. क. संदेह जि. ख. तणउ संदेह भणउ; ग. तणु तु संदेह भयु; ठ. संदेह. ९९. १. ख.झ. वसी. २. क. धरिलं. १००. १. ख. विमासी झ. बोली. २. क. परि, किसी; ठ. परि कीजि किसी; झ. घरणि तणी ३. ग. जोउं; घ. जोऊ; झ. जोवउ; ठ. जोइ. ४. क. तिणि. १०१. १.ख. 'दिल' नथी ,ग. मा तउ; च. छि: झ-ट.ए. २. क. ओ छांही हीडइ ते माड; ख इछां हियडइ. ४. क. आणी एहवी कुनारि; घठ. परहरी;च. एहवी; झ. परिहरिवी एह जि Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास हिव चिंता न करइ तेह-भणी बात यांकी थई तुणि जि तणी कहि रे रोहा तूंह जि वात कांई न बोलइ ताहर उ तात १०२ रोह उ भणइ सुणउ तुम्हे माइ तुम्ह सिउं रूठ उ माहरउ ताय कह रे रोहा ते स्या भणी हूं सिउं जाणउं वात तुम्ह तणी १०३ किम्हइ मानइ ते परि करउ तूंतउ माहरइ सगउ दीकिरउ रोहउ बोलइ ततखिणि हसी एक बात पणि छइ जि इसी १०४ भोजन-वस्त्र-न्हाण-अंघोलि साचवणी जउ करिसिउ गोलि एह वात आदरिसिउ तुम्हे सनसुख कंत करेसिउ अम्हे १०५ माइवचन जउ पालड इसिउं रोहा नह मनि तउ वीससिउं एकदिवसि रोह उ इम भणइ पइलउ पुरुष तात आंगणइ १०६ बाप भणइ तुम्हे कह उ ते किहां छाया पुरुष दिखाडिउ तहां आगइ पुरुष दिखाडिउ एह हा तात तुम्हे जाणउ तेह १०७ तात-तणी जउ कासलिटली माइ-तणी तउ पहुती रुली दिनि दिन सश्रूषा अति भली रोहा-नइ मनि गमइ जेतली १०८ बाप बेटउ बे साथई गया ऊजेणी-माहि जई नइ रह्या राउलि जावउँ छइ मूहनई सीरामण देवासु तूहनई १०९ सोरावी रोहउ ऊठीउ तात जि आपणि रागियउ नगर फिरी जोयउंतिणि बालि रमतउ गयउ सिप्रा नइ पालि ११० आलेखी ऊजेणी सार गढ मढ मंदिर पउलि पगार रमलि करतउ आविउ राइ घोडउ खेलावइ तिणि ठाइ १११ १०२. १. क.च. तणी; ग. हवई, २. ख. तू णिज: घ. एह ज. १०४. १. झ. मनाई. २. ग. तुह जि; तुंहि ज. ४. ख. एक; ग. पुण; झट. दीसइ. १०५. २. ख. बोलि; गः करि रंगरोलि; घ. घोल, ३. ग. आदरसिउ अम्हई. १. ग. करेज्यो तमइ: घ. करेयो तुम्हो. - १०६. २. ग. रोहानुं मन; च. तेह ज घस्यु.. . १०७. १. ख. कुहु दे; च. कहि रे. २. झ-ट. नही तेह. १०८. १. क. तणइ मनि संका घ. टली; घ कसमल. २. क.ठ. पूगी, घ. आस्या फली. ३. झ.ट. करइ. ४. क. तेतली; ख. ति करइ; झ,ट. गमतइ परइ... १०९. १. क. जि साथई. ११०. .. ग.झ.ट. राजा भवनइ; घ. साथि लीओ. ३. क.ठ. ठाइ; ग.प्र. तीणइ ठामि, च. ठाय. ४. क. रमतिई; नदी माहि; ग.च. रमतु २ गयु शिप्रानदी माहि. घ. ० नदी तांम. १११. ३. ग.राउ. ४. ग. खेलाथिवा तीणइ ठाउ, Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास रे क्षत्री तू घोडउ राखि आगिलि साहमुं जोइ-न आंखि पाणोहारि हीडइ छइ बहू नगर-माहि झगरासिइ सहू ११२ राइ भणइ तू घोडउ साहि नगर तुम्हारडं जोऊं माहि वलतउं रोहउ बोलइ इसिउं जण तुम्हारउ हूं छउँ किसिउं ११३ राइ नगर दीठउं सश्रीक छोकरडउ केहवउ निरभीक पाछलि परिघउ आविउ ताम कहउ बालक-न किसिउं नाम ११४ कसेलवट नउ ए दीकिरउ बुद्धिवंत छइ ए छोकरउ रोहउ कहियइ एह-नउं नाम वसइ वासि नट्टावा-गामि ११५ एह नी मति दीसइ छई खरी प्रधान कीजइ परीक्षा करी राउ विमासी राउलि गयउ कोहेडउ एक अएरव भयउ ११६ हाथी एक वडउ पाठविउ पाछलि बोल इसिउ आठविउ मूउ इहां न कहिवउं सही अणकहिवइ पणि रहिवलं नही ११७ हाथी तिहां दिवंगत हूउ लोक विमासई बोल जूजूउ कहइ नइ हिव कीजीसिइ किसिउं राउलउं वचन आविउ छइ इसिउं ११८ परिसरि आवी बइठा बहू राउरउं जण ए जाणइ सहू आडंबर मंडाणउ इसिउ तेह-माहि-थउ कसेलवट खिसिउ ११९ रोहउ भणउ असूरा तात तउं नवि जाणइ गाम-नी वात राउलउ हाथी गाम-माहि मूउ तेह-नउ ऊतर कुणई नवि हूउ १२० ११२. ३. ४. ग.मां ऊलटांसुलटां; ग. डगरासि; च. हीडइ छइ: ठ. सहित. ११३. ४. झ. नफर. ११४. १. क.ख. श्रीकार; घ. तव सही, च. नर. २. क. करिउ विचार. ३. च. पायक. ११५. १. ख. हुं कसेलवनु, ग. कसेलवनु; घ. कसल नटावानु; च. भरत; ठ. फसेलहत्थ. ११६. ४. क कुहेडउ, कहिउ; ग. कोहिड्ड; च. कयो; ठ. कोहेडिंउ, कहिउ. ११७. २. ठ. ऊरि. ३. क. म कहिसिउ. ४. ग. पुण, ११८. ४. झ. राउलि ऊतर सिउ आपसि. ११९. १. ख. परसइ; ग. फरस. २. ख.झ. वचन जणाव्यउं; ग. जाणो; च. छल. घ, फलहि; च. पासे. ३. क. आडइ धंधु मांडणउ इसिउ; ग. आ डांघु; घ. कुहिड: च. आगे मांडण; झ. षोषींदर. ठ. उडबलु.४. ख. माहिल; ग. कसेलच न; घ. क्रसलु: च. भरत नटाबो; झ. किणइ न ऊतर थाइ किसिउ; ठ. अवसरि बिठा विमासि हसिउ. ११९. पछी झ.ट. मां वधारो; कसेलवट तेह मांहि अछइ, किणइ ऊतर दीधु पर्छइ । वात विमासी सहू ऊठीया, सज्ञ समइ सह को घरि गया. १२०. १. ख. अबूझ्या, झ. असूया. रत्न-३ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास वस्तु कुमर पभणइ, कुमर पभणइ, निसुणि तू तात कवण कबण ते हाथीउ, कवणि कवणि मोकलिउ किणि परि वलतउं तातिई इम भणिउं, निसुणि वच्छ तूं ए वटंतर आइस राउलु इम अछइ, चारउ पाउ नित्त मउ पणि म जणाविसिउ अणकहि म रहिसिउ वत्त १२१ चउपई चलतउं रोहउ बोलइ हसी एह वात विमासण किसी हूं जाणउं ए एतली वात तुम्हे न जाणउ माहरा तात १२२ कहि रे रोहा वात जि किसी तुम्हे जाउ परिसरि उल्हसी जई नइ कहउ हूं भंजिसि वाद करावउ रोहा-नइ साद १२३ रोहउ तेडिउ तीणइ ठामि तिहां बोलाविउ सघलइ गामि पच्छेडउ पहिरणि ओढणइ खोलइ बइठउ बापह तणइ १२४ एक एक नइ करइ छइ सान मुहडइ हजी गंधाइ थान आ भांजेसिइ झगडउ सार जाणपणा-सिरि पडिसिइ छार १२५ हूं आविउ छउं झगडउ भांजिवा बुद्धिवंत छउ तुम्हे नव-नवा गाम-गरास भोगवउ तुम्हे तुम्हे भांजउ कइ भांजउं अम्हे १२६ गाम-लोक बोलइ सुविचार ग्रास तुम्हारउ करिसिउं सार वेगिई ए ऊकेलउ सही जंकहिसिउ तं करिसिउं रही १२७ रोहउ बोलइ तीणइ वारि तेडउ वणिग लिखइ जे सार नीर न पीइ चारि नवि चरइ ससइ न वासइ हीडइ फिरइ १२८ जणे तेडउ मोकलिसिउ जेउ तेहनइ हूं कही आपउं भेउ गज मूउ राजा जव कहइ एह वात तउ सामी लहइ १२९ १२१. ५. ख. वरतंत. ग. वत्तं तरि; झ. वृत्तांत जिण परि. ठ. वृत्तांतर. ६. घ. नित २ चारी पाईओ. ७. ग चारज्यो पाइज्यो; घ. नीर बहुलू भत्त. १२२. ३. ख. सघली. . १२३. २. ख. परसइ'; ग. परस; घ. परधुलु; च. पुरमां. ४. ख. कराव्यउ रोहाना; घ. देवरावु. १२५. १. क.ग. कहइ. २. ख. अजी. १२६. १. ग.घ झ. अम्हे आव्या . ३. क.घ. छउ तुम्हे . १२८. १. क. परोहित भणइ. १२९. १. ख. भाइ तेड्यउ, Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास लेख लेई-नइ पहुतउ जाम सविवेकिई तिहां वांचिउ ताम गज मूउ कहइ राजा हेव अम्हे न कहउं तुम्हे कहउ छउ देव १३० कहि रे लेख लिखाविउ कुणइ रोहई पुत्र कसेलव तणइ बुद्धि रोहा नो सुणी जव राइ राजा-हियडइ हरख न माइ १३१ वलती छाली मोकली एक चारउ पाउ तुम्हे सविवेक तोली आप तोली लीउं अधिकी ओछी नवि सांसह १३२ आणी बांधी रोहा-नइ बारि छाली-नइ मन वंछित चारि नाहर देखाडइ दिनि दिनि सही मान-प्रमाणिइ छाली रही १३३ राइं छाली अणावी जाम तोली जोई पहुती ताम कहि रे छाली राखी कीम नाहर दृष्टि देखाडी तीम १३४ राइं तिल-गाडउं मेोकलिउं साथिई वचन इसिउ आठविउं तिल लेज्यो तुम्हे ऊधइ करी तेल आपज्यो पाधरइ भरी १३५ तिल लोधा दर्पण-सिउं भरी तेल-ठीप सघलइ विस्तरी बुद्धि प्रपंची जाणिउ राइ हियडा माहि हरख न माइ १३६ इहां जोइथइ छइ मीठउ कूप रोहा-प्रतिइं कहावइ भूप मोटा भुई नान्हउ बीहइ एह वात विचारउ हियइ १३७ तुम्हे तउ पोतइ छउ सुविवेक नगर-माहिलउ मोकलउ एक टई नांगली इहां नउं मोकलीइ वली १३८ कुर्कुट एक मोकलीउ राइ झूझाडिवा-नउ करउ उपाय। दर्पण आणिउ तीणइ ठामि झूझाडी मोकलीउ गामि १३९ वलती वाटि जि वेलू तणी राजा कहइ तुम्हे वणिज्यो घणी वलतउं रोहइ कहाविड हेव निमूनउ मोकलज्यो देव १४० १३१. २. च. भरत तणो तेणि. ३. क. आलिउं. १३४. २. क. तोलइ बुहुत्ती तेतली ताम; घ. तोली लोधी ते परि. ४. क. दिष्टई राषी ईम. १३५.. १. झ.ट. आठविउ. २. गघ. पाठविउं; च. पाठव्यु. ३. क. त्यल. ख. मोकलयो. ४. ग घ.झ. मोकलज्यो. २३६.१. च. दर्पण तलइ करी. २. ख. पाधरइ: ग. टीप'; घ. समिः झ. विस्तारी दीध, ३. घ. प्रपंचइ. ४. च. अचिरज थाय. १३७. १. क. आंहां, भोट3; झ. कूड. २. झ. मोकलीउ दुउ. ३. ख. मोटा थकल. १३८. ५. आंहां थउ; ख. आवइ; घ. ईहाथु; च. आ गामनो. १३९. ४. क. झूझाउवा. १४०. १. ठ. वणो बाटि. ४. च. भंडारथी बाती. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रासं राजा बोलइ चडी अहंकार ए रोहउ तां दीसइ अपारि आगइ समस्या पूरी घणी हिवइ बुधि जाणीसिइ एह-तणी १४१ वस्तु राउ पभणइ, राउ पभगइ, निसुणि तू नट्ट मइल-सहित नवि आविवउं, स्नान यान नवि पाय चल्लिय मारगि उनमारगि पुण, दिवस-राति अंधारि अजूआलिय छायां तावडि नाविवउं भेटि न ठालइ हाथि आयस हूअउ राउलउ सघलउं करज्यो साथि १४२. दूहा चंदन ऊगटण करी हुडि आरोहिउ जाम चालइ वाट जि मरडतउ पग भुंइ फरसइ ताम १४३ पडिवइ हूंती तीणि दिणि संध्यां मिलियउ सूर माथइ दीधी चालणी चालिउ हरखई पूरि १४४ ऊजेणी थिउ इकडउ प्रिथवी लीधी हाथि आयस कीधउ राउलउ बाप अछइ पुण साथि १४५ ईसिउ वेस ज तसु तणउ हूउ हासाकार गाम जि जोवा ऊलटिउं राजा किद्ध जुहार १४६ चउपई राउ भणइ रोहा ए किसिउं मइ कीधउंजिम तुम्हि आयसिउं: कसेलवट-नई कहइ छइ राउ रोहउ इहां रहिस्यइ तुम्हि जाउ १४७ १४१. च. मां ३-४. चरण १-२ तरीके छे. १. ग. वली. ३-४. च. जो इहांथी मोकलो धणी, तो इहांथी मोकल्स्यु घणी ४. ग. जाणेसि बुद्धि; घ. जाणसू बुद्धि. .... १४२. १. च. नंदन. २. ग मलण ° : घ. मलिवा; च. मल ३ ग. पागि; घ. पाग. ६ ठ. नवि पंथि चलीय. ८.क. एहव';ग हब'; घ. ग्रह ऊतावा. ९. क कुशल क.. १४३. २. ग. हडः ठ. हुड. १४४. १. झ. पूनिम. १४५. ग. दूकडउ थिउ; घ. इकड थयु. ठ. थी दूकडि. २.झ. माटी. १४६. २. काठ. हाहाकार. १४७. २. ख. तुम्हारउ; घ. अम्हे कहिउ जिसू; झ. उपदिसि. ३. ग. कसेलव; घ. कसलबन •; च. भरतने. ठ. कसेळहत्थ. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रासे अंग-ओलगू राखिसि राति मोकलिसिउं मोटइ परभाति रातिइ राजा पउढिउ जाम ऊलग सारइ जागइ ताम १४८ सुख-सिज्या रा पउढिउ सही रोहा नई तव निद्रा हूई पहिलइ पहरइ जागइ जाम रोहा नई बोलावइ ताम १४९ पाटू मेहलि जगाबइ राइ कहि रे रोहा सूत उ काई ना जी हूं जागउं छउं ताय चिंता छइ मुझ-नई मन-माहि १५० जागिउ राजा पूछइ वात एह-नर अरथ कह उ तुम्हे तात बीजउं चउपउं छाण जि करइ छाली-नी लोंडी कुण घडइ १५१ राजा भणइ न जाणउं अम्हे एह संदेह जि भांजउ तुम्हे संवर्तक वाउ अछइ पेट-माहि तीणइ लींडी वाटुली थाइ १५२ हूं सूउं छउं निश्चंत थई तउं रूडई जागेजे भई राजा जागिउ बीजइ पहरि रोहानइ पणि छइ बिवहुरि १५३ बोलाविउ तर बोलइ नही गोटीलइ जगाडिउ सही तिह्वारनी मुझ निद्रा टली राजा जागिउ पूछइ वली १५४ कहि रोहा तई चिंतिउ किसिउं हाथी कउठ गलइ मुखि जिसिउं आखउं मेहलइ ते नीहारि पुदगल नुहइ तेह-मझारि १५५ राउ भणइ रोहा कहि वत्त एह न ऊपजइ अम्ह-नई तत्त कउठ कठिण ऊपरि पुण जाणि हरियइ पुदगल अगनि-पराणि १५६ १४८. ग.झ. राखिसु . ३. झ. निदा हुई. ४. झ. तुं जागे रे भई. १४९. २. ठ. मां नथी. १५०. १. गाठ. जगाडिउ; घ.च. जगाड्यु. ३. क. स्वामि; च. मारी जगाड्यो. ४. क. थई छइ सामि; ग.घ. अछइ मुझ मन. १५२. २. च. एहनो उत्तर आपो. १५३. १. ग. सूतो. २. क. तुं जो; ग. तु जु, जागि; घ. तु जु जागइ. ४ ख झ. थई; ग. जोइइ बिन्नु हर'; घ.अछइ पुण बिठु हुई. १५४. २. क. गोटीलइ जगाविउ, ख.झ. कोटी लइ; ग जगाव्यु. घ. जगाविउ. ३. क 'मुझ' ने स्थाने 'ते'; ठ. मू. ग.च. ते रोहानी निद्रा. घ. रोहो कहइ; झ. तव रोहा नइ. ४. क. जगावी; ग. जगाइतु पूछठ. ठ. पूछि छि. १५५. २. क. ळीइ मुखि सिउं; ग गलीइ मुख सिउ, च मुख स्यु. ४. ग.च. न हुइ. १५६. १. ख. एह; घ. सुणि; च. वृत्तांत; झ. एय २. क. एहनु; ख.झ. अन्हे न जाणु एह नउ भेयः घ.च. चित्ति; ठ. एहबू, तात. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास त्रीजि पहुरि रा सूतउ वली रोहा-नी तु आंखि जि मिली पुनरपि राजा जागि बईठ राइ रोहउ सूतउ दीठ १५७ चिहुंटीइं चबकाविउ सार रोहा सूतां हुई वडी वार ना जी हूं जागउं छउं ताय चिंता अछइ मुझ-नई मन-माहि १५८ राजा बोलइ पुण तु हसी रोहा एवडी चिंता किसी खाटउं देखी दाढई नीर आवइ ते कहउ साहस-धीर १५९ राजा कहइ न जाणउं अम्हे एहनउं ऊतर आपउ तुम्हे दूधई दाढ ऊपनी जाणि खाटि नीर आवइ निरवाणि १६० चउथइ पाहरि रा सूतउ वली निद्रा कीधी रोहइ रुली रा जागिउ संचल हूउ घोर रोहा-नई देखइ अग्घोर १६१ चाबकइ सटकावइ जाम रोहउ ऊठी बइठ उ ताम राजा रीसिई बोलइ इसिउं रोहा वलि वलि सृतउ किसिउ १६२ सूतउ नथी विमासण देव कहि रे चिंता किसी छइ हेव राउलउ छल जो हूं नवि लहउं वचन एक अपूरव कहउँ १६३ वचन अम्हारउं एह ज सही धीर सुपारी रोहइ लही कहि स्वामी हूं पूछउं वात अछइ तुम्हारइ केता तात १६४ रोहा तुम्हे तु बुधिई कल्या पणि तु वली अम्ह माहि भिल्या स्वामो तुम्हारइ पांच जि तात न मानउ तउ पूछउ मात १६५ ऊठिउ राजा गयु आवासि पूछइ वचन जि माता-पासि अम्ब अम्हारइ केता बाप कूडउं कहउ तउ तुम्ह नइ पाप १६६ १५७. २. च. निद्रा मुंकी रोहा दळी. १५८. १. क. चरटीई'; ग. चमकाव्यु; घ. चमकाविउ; झ चटकाविउ. ३. ख.ग.घ. घ. सही; च. बली. ४. क.ख. थई; ग घ.च झ. माहरइ हईइ चिंता थई (घ. वली). १६०. २. च. एहनो संदेहे भाजु. ३. क. दाढ पचो ते; च उपन्नी. १६१. २. क. मूकी रोहा वली; ख. वली; ग. मुंकी रोहा दली. घ. मू की रोहा वली; ठ. भली; च. रोहा निद्रा आंख ज मिली. ३. ख. चउर; झ चोर. ४ घ. अंघोर; च. अघोरि; झ. रोहानइ वा जइ छइ धोर. १६३. ३. ग. छण; घ. राउ जाणई; च. राउलि अवगुण है'; झ. राउली धीर सोपारी लहुं. १६४. १. ग. तमारु. २. क. ° सोपारी रानी; ग. 'सोपारी रोहा नई हुई, च. सुपारी. ३. च. कहु. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास कहि नई पुत्र किसिउं छइ काज इणि वचनइ लीधइ हुइ लाज कहिसिउ वचन जिह्वारइ माइ धान-पाणी तउ मई लेवाइ १६७ हूं जहींई हूती रतिवंत दृष्टिइं पडिया पांचइ कंत कुंभार धोबी वृश्रिक जाइ चउथउ पांडव पांचमु राइ १६८ पाछउ आविउ पूछो वात कहि रोहा किम जाण्या तात निद्रा-माहि जु वालिङ चेत तात कही आप्या संकेत १६९ पाटू गोटीलउ चिहुंटीउ चउथउ चाबक तुम्हे दीउ पाटूयई जाणिउ कुंभार धोबी वीछी पांडव सार १७० सभा-माहि राई इम भणिउं इह-नी बुद्धिइ हीउं रुणझणिउं प्रधान-मुद्गां दीधी जाम हरखिउ राजलोक सहू गाम १७१ प्रधान मुद्रा' रोहइ लही रखे जाणउ बुधि सूझइ नही विवहारीया हुइ बुधिवंत परमेश्वरि कीधा धनवंत १७२ इम करतां काणउ आवियउ यमघंटाइ बोलावियउ रतनचूड कुमर आवियर तुम्ह-नइ लाभ किसिउं फावियउ १७३ लाभ हुणहार उ अम्ह-नइ अछइ कणय पांच सइ आप्या पछइ जाता तुम्हारी आपसिउ आंखि च्यारि जणा कीधा तिहां साखि १७४ काणइ वात जि बोली इसी तिणि वातिइं यमघंटा हसी एह वात हिब कीजइ किसी ताहरी डाबी आँखि जि खिसी १७५ १६७. १. क ए पूछिइ सिउं काज. २. क. घणी आवइ. ४. ख. अन्न. १६८. ३. ग. ताय. १६९. ३. घ. जगाव्यु. ४. क. तेतलइ'; ग.च. तमिइ कही आप्या देव संकेत; घ. तुम्हे कही. १७१. ४. रोहानइ कीधो परधान. १७२. १. क. लेइ. ३. घ. धनवंत. ४. घ. बुद्धिवंत, ठ. रधिवंत. १७३. २. ख. भलाविउ. ३. च. अव्यो छइ साह. ४. ग. लावीउ; च. यमघंटा पूछइ कुण लाह; झ. पावीउ. १७४. १.घ. लाभ धणु अम्हनइ होइसि. ३. घ. अछइ. ३. क. अम्हारी आपसइ, ग. तुह्मनइ आपीसि. ४. ग.घ. कीधा छइ. १७५. २. क. बोलई'; घ. बोलइ. ३. ख. हुइसइ इसी; घ. तुम्हे कहु छु कसी ४. ग. डाबी बीजी. १ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ एवडी वात गय राज रत्नचूड-रास माहरा बाप नई आंखि जि बीजी काढी मूकउ न जाणइ सुबुधि वालिय घणी हेव तोइ न जाणीइ केही समर्वाड तोली क्षितिप्रतिष्ट नगर तू जाणि सुबुधि प्रधान अछइ तेह-तणइ ईछइ पूछइ ता हूउ पुत्र सगउं सणीजडं सूत ं जाम निसीथ-रात्रि आवी विहि इ आहेडी होसिइ ए सही प्रधान सुणी- नई झांखउ थयउ छट्ठी रात्रि आवी विहि इ सींग खांड पूछई बंड वय वय मानिहं बुद्धि ज होइ विहि लिखियउं नामउं टालियउं राजा पृथवीचंद्र वखाणि राउ अपुत्रियउ सहू को भणइ छट्ठी जागइ सघलडं गोत्र प्रधान रहिउ दीपांतरि ताम १७९ अक्षर लिखी नइ पुणिइम कहइ एक जीव मारेसिइ रही १८० कालिइं बीजउ बेटउ भयउ अक्षर लिखी - नइ तव इम कहइ १८१ बलद सांपजसिइ एक अखंड तं निसुणी चमकि परधान राज काजि पुणि छइ सावधान १८२ त्रीजी वारई पुत्री हूई दीप छांहइ छट्ठी - दिवसि विही इम भणइ होसिइ तुम्ह-तणी आपडं तेव १७६ जोइ रही वेश्या - तणइ १७६. २. क.ग. जाणु. ३. च. जिमणी; ग. ततक्षण तोली आपुं जाम; घ. तिम ते, जेम; च घ. मां आटले सुधी पाठ छे पछीना पत्रो खुटे छे. १७७. १. झ. सोइ. २. क. एवडी बुद्धि में माइ. ४. ग. वही. १७७ मंदिर १८३ झ. देव ४. क ततपिणि, आलउं देव; ततखिण: झ. हेव; ठ. देव. १७८ १७९. १. क. इम करता हूउ पुत्री; ख झ. एक वार तसु; ग. ईछ पछि' हुउ. २. ग. जागरण. १८०. ख. निसि घरि; ग.च. आवइ वहई, झ. सध्य रात्रि तिहा. २. ठ. मुषे. १८१. ३. ग. आवई वहइ. ४. क एहवं; ग कोरि; ठ कोहरी. १८२. २. क. पामिसइ; ग. सांपडिसे; च. सांपडस्ये; झ. एहनइ होसिह एक ज संड. १८३. ३. झ. रातिइ आवी भणइ. ४. च. जास्य; झ. ए थाएसिइ गणिका तणइ. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास पक पुरुष दिन दिन आंबडइ बीजउ पुरुष नहीं सांपडइ प्रधान हियइ विमासइ घणउं राज जातउं देखउं एह-तणउं १८४ दिवस घणा जउ हूआ सही गोत्र-माहि वढवाडि ज हुई राजा विणठउ भागउं राज कुटंब विखूटउं पडियउं आज १८५ कुटंव प्रधान एकठ करी हिवइ जोउं राजा-नउं चरी फिरतउ एकई नगरिई चडिउ आहेडी तिहां दृष्टिइं पडिउ १८६ देखी नयणे आविउं नीर सांई दीधउं साहस-धीर कुटंब-तणी हिव कहु-नई वात घरह भणी पधारउ तात १८७ कहइ कुमर तूं किम करइ भाई बहिन किहां पुत्र दिन दिन किम तूं जोगवइ किसिउं ताहरउं सूत्र १८८ एक जीव जउ मई मरइ बीजउ नासी जाइ भाई बहिन न जाणियइ माहरउं सूत्र ए ताय १८९ कलत्र-कन्हइ इम पूछियउं कांइंगरियां आज हूंतउं तेह जि. बावरियं किम कीजइ हिव लाज १९० १८४. १.क. नितु नितु; ग. आवी जुइ, झ. प्रति सांपडइ. २. ग. बीनु पण तो; झ. आभडइ. ४. क. राजसूत्र किं रहिशइएहन १८५. २. क. वढावडि थई; ग. थई; झ. वढाबडि हुई; ४. ख. विठउ बिणठउँ काज; ग. विहउ': झ. गयु' कुटंब दिसोदिसि भाजि. १८६ .१. क. प्रधाननू; ख. प्रधानउ'; ग. प्रधाननु २. ख.ग. फिरी; च. फरी; झ. राजकुमर नइ फिरी; ठ. फिरी. १८७. १. ख. दृष्टिइ'; ग.झ. दृष्टिई आवतुं नर. २. ग. लीधू', धरी; झ. दीधी. १८८. १. ख. कहि उपाइ तउं; ग. ऊया; च. उपाय; झ. कहि अऊया. २. झ.. बहिनर; ठ. कहि. ३. ग. दिन किम २. १८९. १, क. भइ; ग. जो मिलइ; ग. पूछीउ'; झ. मई. १९०. १. क. मई; ख. मई पूछि'. ४. क. कहइतां आवइ लाज, ग. आज, च. मां अहींना १, ३, ४=१, २,३. चोथा चरण तरीके 'नाम धरावीइ आपण राज'. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास पालक पंथी परहुणउ चोर मागण नइ प्रेत आथि न जाणइ घर-तणी हियडइ नही सचेत १९१ साडी मूकी गरणइ करउ साचवणी आज घरि प्रधान जि आवियउ नवि कीजइ तउ लाज १९२ घरणिई आवी इम कहिउँ ऊठउ बुद्धि-निधान . तीणि वारि जम्या राज-पुत्र परधान १९३ आम तात तुम्हि घरि रहउ हूं जाउं छउं रानि आहेढउ करिया सही अम्ह नई एक जि ध्यान प्रधान बलतउ इम कहइ हूं आविसि तुझ-साथि हरिण जि लागउ मारिवा प्रधान विलगउ हाथि १९५ आगलि हाथी ऊमटिया टोलइ मिल्या बि-च्यारि बाण ज ताकी-नइ रहिउ प्रधान कहइ म मारि १९६ चिहुं दंतूसलि आवियउ धवलउ जे गजराज प्रधानई इम आइसिउं आ तू मारि-न आज १९७ ततखिण बाणिइ आहणिउ हस्ती गया पराण काती लेई ते फिरिउ मूरिख तूं नवि जाणि १९८ १९१. १. क.ख.ठ. पही, ग. पहिः च. बेटी. ३. च. वेदन न. ४. क. सावचेत; ख. नइ जाण; च. चिंतइ एम; झ. नुहइ. १९२. पछी झ.ट.मां वधारो : मेहली साडी गरहणइ आणिउ घृत पकवान । शाक अनइ दही घोल घण कीधा उन्हा धान ॥ १९३. २. ख. हवइ प्रधान; ग.च. हु धान; झ. हुया अन्न नइ पान; ठ. हवू धान परधान. १९४. ३. ठ. भणी. १९५. २. ग. आविसु तय; झ. आवितु तुझ संघाति. ४. क. विलागु; च. मां चोथु चरण खूटे छे. १९५. २ पछी झ.ट.मां वधारो: बे जण अटवी चालीया करता बहु परि वात । __ आगलि टोलां ऊमटियां हिण तणा बहू साथ । १९६. च. मां १ थी ३ चरण खूटे छे. १९७. १. ख.ग.. आवीउ; च. आविउ. २. ख. भद्र जाती; ग. जां. १९८. १. ग. मारिउ. Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड.रास इहाथी मोती काढि तू कुंभस्थल स विडारि नितु नितु एहवउ मारिजे बोजउ जीव म मारि १९९ माणउं मोती लेइ करी बलिया बिन्हइ साथि नगर-माहि ते आविया जां घरि आपणइ आथि २०० हूं जाउं छउं जोइवा बहन-भाई-नी सुद्धि तुझ नई मई ए बुद्धि कही इणि परि लेजइ रिद्धि २०१ तिहां थर प्रधान चलियर जोवइ आगलि दीठ आवत लेवा कोहरी घर जातर भर २८२ बिह्नइ ते सांई मिल्या पछइ कुटंबह वली वली केहूं पूछसिउं देविई कीधउ कहउ तुम्हे किणि परि अछउ निरवाहउ छउ चारि-भारउ एक वेकीइ दिन नीगमीइ वात घात २०३ कीम ईम मिलिया बे जण घरि गया घरिणी ए कुण आविउ प्राणउ कंत कहइ अम्ह तात २०५ पूछइ भोजन कांई अछइ घर-माहि राखइ देव सुणी प्रधान जि इम कहइ पोठी वेचि न हेव २०६ १९९. १. ग. आखां मोती; झ. था. २. च. ° स्थलने विदारि. २००. २. क. बिहुइ; ग. बिहुइ. ४. क. थई आपणइ घरि; ग. घर आपण3; ठ. जे रहिवा घरि. २०१.. ४. झ. लेयो. २०२. २. क. जोइ कुमरीअ; ख. जोई फिर २ देस; ग. जोतो नगर फिरंत: च. जोइ कुंवर घरबार; झ. जोतु सवि घरि बारि; ठ. परि. च.झ.ट. परि. ४. ख.ग. भार. २०३. १. ग. बिहुँइ. ३. ख. वाधव सुधि प्रधानइ कही; ग. काई; झ. भाई सुद्धि प्रधानइ कही. ४. ख. बहिन न जाणउ वत; ग दीधउ: झ. बहिन न जाणुं तात. २०४. ३. ख.झ. वेची करी; ग. भरी नइ; च थेचीह; झ. खड... २०५. २. ख.झ. ५रुहुणसं. २०६. १. ग. छ. २. ख.झ. नहि देव. ४. ख. वेच3 षेव; ग. वेचो; झ. वैचउ. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ रत्नचूई-रास पोठी वेची आणियउ भोजन कीधउ' सार बे जण जीमी ऊठिया असूर थयउ ति-वारि २०७ कुमर भणइ जाउ चारि-नई घरि रहिज्यो तुम्हे देव असूर थिउं छइ बापडी सांझ पडी छइ हेव २०८ विहाणउं थिउ तव उठीयउ जोइ जाम कुमार आगिलि दीठउ पोठीउ जाणइ तेह जि सार २०९ भाई-नई सघलउं कहिउं दीठ जेह सुखीउ करी हूं आवीउ धन मेलसिइ अनंत २१० पोठी वेचे दिन दिनइ एहबु आविसि नित्त बहिनि-तणी सुधि हूं करउ आविसु लेई वत्त २११ वृतांत चउपई ईम कही चालिउ परधान गाम एक पुणि बुद्धि-निधान नगर-नाइका-पाडा-भणी दीठी बेटी राजा-तणी २१२ कहउ वच्छि तुम्ह वरतणि किसी वलतू बोलइ लाजी जसी एक पुरुष आवइ सांझ-उरउ तीणइ नवि सूझइ घर-नउ वरउ २१३ २०७. ४. क. छड् बारि; ख.झ. केम ल्यावीस्यइ च्यारि; ग. किम आणीसई सार; च. किम आणिस्ये चारि. २०८. झ.ट.मां आ प्रमाणे : तुम्हे घरि रहियो तातजी, हुं जाउं छउ हेव । चारि लेवानइ कारणि, भारु ल्यावउं देव ॥ ३. क. थयु; ख. वाटडी; ग. थ, वापडी. २०८. पछी झ.ट.मां वधारो : तव प्रधान वलतु भणइ, असूर थयु छ आज राति समइ तुं घरि रही, प्रभाति जाए काजि. २०९. १. झ. प्रहि वहिसी तव. २. ग. जाई. ४. ग. तेहनी. २१०. १. ग. भाईना, झ. नु; .. ग. तत्त. ४. ग. मेलइ ए, ठ. मेलइ अत्यंत. २११. १. ग. दिन २ एहवो आनेसे नित्त; २. क. पाभिसि नितु; ख. तई गमे काल; ग.झ. तु इम गमजे काल. ३-४. ख.झ जाउं छउं जोईवा बहिननी करु सभाल. २१३. १. क कुंअरि. २. क.झ. इसी. ३. क. ऊरु; ग. अरो; च. रहिओ. १. ग. सिझई. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास वचन अम्हारउं तूं इम जाणि साचलं होसिइ ते निरवाणि सवा लाख जे आपइ दान तेह पुरुष-नइ देजे मान २१४ रांधिणि-पांहि रंधाविउ कूर वासउ रहउं छउं थयउ असूर एह वात मई निश्वल कही प्रभाति ऊठी आविउ सही २१५ एती वारि नवि आबिउ कोइ तुणिउ विगूचासइ विहाणइ जोइ रातिई एक पुरुष आवियउ सवा लाख पणि तेणई दियउ २१६ प्रधानि पूछिउं को आवीउ रातिई एक आविउ भावीउ सवा लाख तू लेजे ईम एक पुरुष टाली तुझ नीम २१७ कुटंब सघलउं सुखीउं कीध चिंता-रहई देसवटउ दीध सविहू नई जई दीधी धीर निचित थई-नई सूतउ वीर २१८ बिवहरि रातिइं आवी विहिइ वली वली तेह जि इसिउं कहइ तू तउ सूतउ निभूत थई चिंता सघली मुझ-नइ भई २१९ एती वारि आवियउ कुण विहि कहइ सहू जाणइ पुण मुझ-सिउं काज अछइ केतलडं जे प्रसाद कीधउं एतलडं २२० २१४. ३. ग. दाम. ४. ग. देज्यो ठाम. २१५. १. ग. पई. २१५. पछी झ.उ.मां वधारो : कुमरी वात विमासी सोइ, छयल पुरष पणि नावइ कोइ । सवा लाष पणि देसई जेह, पुरुष 'आदरसिउ निश्चिई तेह. २१६. ने बदले झ.ट.मां आ प्रमाणे : ईम करंता संध्या हुई तुणि तणी विमासण थई । एतलइ एक पुरुष आवीउ सवालाष पणि तेणि आपीउ ॥ कुमरी मनमाहि हर्ष अपार प्रधानवचन फली ते सार । प्रभाति ऊठी मंत्रीस्वर गया लाजइ कुमरी ऊभा थया ॥ २१६. १. ख.ग. अत्यार लगइ; च. सांझ लगि नवी. २. ख. तु गूचस्यउ इ वाहणनउ तोइ; ग. तोणि विगूचिस व्याहणइ तोइ; च. इणि नइ विगूचसि, सोइं; ठ. तुणि. ४. ख. दीणइ दिउ: ग. मां नथी. २१७. १. ग मां नथी. २१८. २. क.ख देसुटउ; ग. देसोटो; ठ. देसटउ. ४. ख. हुई.. २१९. 1. झ. थध्यरात्रि तिहां. २. ख. पणि तहनइ; ग. पुण २; झ. मंत्री प्रतिइ इसिउं. . २२०. ने बदले झ.ट मां आ प्रमाणे : सुणि वचन जागिउ तिणि वारि, मत्री कहइ कवण तूं नारि । विधात्र। छइ माहरु नाम, अम्हनई तई सवि दीधां काम ॥ २२०. 1. ख. अत्यारह; ग. अत्यारे; च. अंत्यारि. २. ग. कहिउ साहु जाणो; च. विहाणइ' करी हीइ. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड - रास हूं सचित तई कीधउ सही ऊठ-न तू आवि मुझ-साथि पूरव पोलिई आवी जोइ आवी दीठडं जव परधान आनावेखणडं मुझ-नई छोडि प्रधानि वलती वात जि कहीं विहि आपिउं तव सघलउं राज भाई-बहन तां सहू आवीउं सुबुधि- अमाति वालिंडं राज एतलउ बोल काणा - नई कहिउ यमघंटाई पूछिउ तिहां मई कीधरं चउसर भेटणउं ए जाणइ छइ कांई एक द्योस तडं जाणइ छइ हूं ई सुजाण तुझ- नइ चिंता किसी ही नही हाथी पोठी बदरउ हाथि २२१ अम्ह विवस्था एहवी होइ विहि बोलाविउ लेई नाम हूं वीनवउँ बे कर जोडि राज आपउ तर छोडउं सही २२३ लोक तगडं तर सीधउं काज लोके पुनरपि बद्धावीजं २२४ तिम ए सघलडं करिसिइ काज तेतलई माली आवी रहिउ २२५ २२२ * कहु दे लाभ तुम्हारउ किहां कहइ कांई आपेसिउं घणउं २२६ हूं तु एहनां वाहण ल्योस बाहण नउं विती पडिसिइ पहाण २२७ कहउ नइ तुम्हे कहिउं स्या-भणी कांई घट-माहि लिउ आफणी जिम हाथ घालिसि लेवा-भणी डेडक विलगेसिइ आफणी २२८ २२१. पछी झट. मां वधारो : स्वेतभद्र हाथो परचंड, सींगइ पूंछइ षांडर संड । सवा ला सिउं पुरुष ज सार, त्रिण्हि ऊभा पोलिहूयारि ।। २२१. २. च. तुझ आगलि हूं आवी रही. ३. च. पूठि ४. क. बदरा करि; ख. बदर; च. बदिरो झ. जिम देखाइउ सघली आथि; ठ. बिदरउ. २२२. २. ख. अम्ह नइ अवस्था इसी; च अवस्ता सी. ४. ख. झ. बुधिनधान; च. देई मान. २२३. १. ख. होइ; ग. अह्मनई. ४. ग. आपइ; ठ. आपि. २. ग. तिम तेहि ए; ठ. तिम तु तेहू. २२५. १ च. महति २२७. १. ग.ख. देसि २. ग.च झ. लेसि; ठ लिउस. ३. क. हूं अ. ४. ख. वाहण छतउं; ग. वाहणना वतु, च. ताहरि मुर्दि; झ. वाहण जातां. २२७. पछी झट. मां वधःरो : यमघंटा कहि सांभलि बात, एह वाणीउ पेलसिइ घात । astrife डेड दाषिसिह, जनसापि एहवउ भाषिसि ॥ २२९. १-२. झट. कांई एक घडा माहि छइ जेय, माली हिवs तुम्हे लिउ ते. २.क. लिय शा भणी; ग. खडली. ३. ग घालस्यउ २२७. च. मां आ प्रमाणे : घडामाहि डेडक घालसि, ते तु लेई आगलि मेल्हसि: घडामाहिं घालसि हाथ, कांह कांइ माहिं छि सोमनाथ. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास घडा-माहि कांई छइ सही ओसींकल हूया अम्हे भई । एतली बुधि ऊपजसिइ नही तुम्ह पाखइ कुण जाणइ कही २२९ इम करतां आविउ रथकार कहउ तुम्हारउ किसिउ विचार मई पावडी मूकी पग-हेठि कहइ रुलियाइत करिसिउं सेठि २३० हूं रुलियाइत थाइसि नही वाहण आप्या पाखइ सही यमघंटाइ वलतउं कहिउं विमासि ते हियडइ रहिउँ २३१ राजसभां लेई जासिइ सही राय-नइ बेटउ आविउ भई तू रुलियाइत कइ कालमुहु श्यामवर्ण तु राय-थिउ मूउ २३२ बुद्धि नहीं सूझइ एतली तुम्हि जाणउ छउ पणि जेतली सात वरसनी वणिग-नी बहू अर्ध राज तिणि लीघउं सहू २३३ सेठि-वहू-नउ किसिउ आमलउ साबधान थई सहू सांभलउ गाम सभीतरि सोढी वसइ कलि-कंदल तसु मनि उल्हसइ २३४ त्रिकि चच्चरि पाडोसिणि-साथि करइ वढावडि आवइ बाथि विढवाडि पणि एती सीम भणइ लोक बोलाया-नोम २३५ कउअचि सइरि लागि खाजूइ फड फड रांड वढावडि जूइ पाडोसि आविइ एक परहुणइ घरि आएसइ ते रांधणइ २३६ २२९. १. ग. अछइ. ४. क.ख ग. सही. २२८ च.मां आ प्रमाणे : एतलिं ए भास्ये कल थयो, सारो बोल माली नि कहिओ; माली कहिं बुद्धि उपजसि नहीं, तुम्हनि टाली कुण जाणे कही २२८ पछीनो च.नांनो वधारानो खंड परिशिष्टमां आपेलो छे. २३०. १. क. कहितां. २३१. १. ग.. थाइस्यु'. ३. ग. इम कहई. ४. ग. मनमाहिं रहइं. २३२. ४. ख. राई हाथई; ग. रीई हाथई. च. नहीं कहि तो मारितो मुओ. २३४. १. २. च.मां नथी. १. झ. गामि सावत्थि. ३. ख. सीमानि ४.ख. कलहां: ग. कलह. २३५. २. ग. वढविढि बाथोबाथि; च. वढावढि; ठ. वढवांडि. ३. झ वढवाडिनी. ४. ख.झ. बोलेवा. . २३६. १. क. कऊअछि शरि, ख. कऊअचिग. कचि रस लागई. च. कूअचि: २. ख. बढवाडि ग. राडि वढावढि जोई; च. वढवाकारणि ते फुरफुरद: झ. बढइ फूफूइ. ३. ग. पाडोसणी. ४. क. करई रोधगउ.३. ४. च. मां : बहिन कहि प्रणाम जे करि, ते साथि वढीनि मरइ. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूद्र-रास खीचड पाली एक जि खाडि माणउं मोठउं घालि न रांडि एह वात परहुणइ सांभली कहइ बाई तई बोलिउं वली २३७ राधिउं नथी तु सांभलिउ नही एह वात तई इम काई कही खाई आपणउं बोलइ फोक ताति पराई करइ जि लोक २३८ बाई कही रे तई छोकरी हूं सिउं ताहरा बाप-नी दीकरी विढकणी पणि ते जाणी रांड जोतरी गाडल टलीइ मांड २३९ पोटी पल्हाणी गई मरहहि पइठाण-पुर तव पडिउ देठि राज-भुवनि ए जई-नइ रही खड पूलउ तिहां मूकिउ सही २४० वादि वढावडि जे को सज्ज आणि सभां तूं नरवर अज्ज जउ को ताहरइ नुहइ वीर खड खाउ नई पीउ नीर २४१ रांड सांड नइ छाकिउ भांड एह बिहु-प्रति टलियइ मांड पणि तउ एणि बोलिउं इसिउं कहउ प्रधान हिव कीजइ किसिउं २४२ २३७, १. २. च. : जे आपि रांधवा रांधणु', तेह मांहि घालि मीठ घणु. १. ठ. पाडी ("दालि ने बदले). २. झ. बाई जीभई कही कां वली. ३. ४. ग.च.थां नथी. ४. क. तइ काइ ए कही. २६८. च.मां नथी. 1. ग.मां नथी. २. क. न कहइ अणछती. २३९. १. क. बाहइ हकारी; च. ते मुझने को कही. २. ग. हु छउं. ३. झ. विढकण पणइ. ५. क. आ; ख. गाडलिई साग. टलीया. २३९. ४. ने बदले झ.मां आ प्रमाणे : मुखि बोलइ ते वचन अभंड ।। लोक कहइ मत बोलउ तम्हे । एहना गुण सवि जाणु अम्हे। एह सिंउ क्चन म बोलउ कोइ । जे बोलइ ते हारहे सोइ ॥ भूषिउ भाट बगायुं ढोर, सुद्ध जुयारी बांध्थु चोर । सांड भांडनी रांमा ती रांड, ए सातईथी टलीइ मांड. लोके बोलवा लीघ3 नोम, वढवा पाषइ रांड रहइ कीम. ___ २४०. १. च. गामबाहरि काढी ते3; ट. जोतरिया शकट पलाण्या पोठी. २. झ. ट. चाली देसि गई मरहोट्टि. ३.झ. राउल आगलि ३. पछी. झ.मां वधारो; पुर पयठाण पडिड तसु द्रष्टि, राजभुवनि चाली विद्धष्टि ॥ २४१. च. मू साथि वढइ जे आज, इहां तेडावो महाराज, मो सु वढीनि साजी जाइ जेह, खड खाई पाणी पिइ तेह. १.२. झ.ट. राउ कहइए विढकणी रांड, जाणे दीसह साचिली भांड.. २४२. १. ग. मातो. च. माती ट. २. क.च. त्रिहुथा. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहइ प्रधान पडावउ साद पडह वजाविउ नगर- मझारि सातमीइं सांभलिउ साद तेडउं आविउँ पणि राउलउं सासू खूण सांतइ जाम राउला जण-नी दृष्टिई पडी ससरा सहित तिहां पहुतीवहू राउ भणइ वछि भांजउ भेउ इहां तेी तुम्हे पूछउं सोढी सोढी तेडी तीणइ ठामि ढाड न नाम जि किसिउं बढी न जाणइ तूं बापडी विढावडि-ना भेद छइ च्यारि सोढी कहइ हारिडं छइ अम्हे रत्नचूड- रास समरथ कोई करेसिइ वाद एक सेठि-नई बहू त्रिणि व्यारि २४३ म वासउ पडहु भांजिसि वाद सेठि कुटंब थयउं आकुल २४४ डोकडं काढी जोवइ ताम चाली राउलि पालखि चडी २४५ राई मान जि दीघडं बहू अरध राज तुम्हे लेज्यो एह २४६ तू जाणइ केणी परि वढी वढसि विढावडि केहइ नामि २४७ मुहि नीकलइ तेह जि भसिउं कांई आवी नइ राउलि चडी २४८ न जाणड तड मानउ हारि भेद भांजउ पणि च्यारि इ तुम्हे २४९ जाव-जीवनी केह - नई पाडि चउथी सउकि-नी वढावडि कही २५० दिवस छ मास वरस-नी राढि भाडउं खेत्र पटाइत सही २४३. २. ख. करावा; ग. करइ: झ. विढकण साथि करावउ. ४. ख. पणि सार. २४४. १. ख. सात वरसनी; ठ. वाहु. २. ग. वायसि; झ. पडह छबी कहइ भांजिसु. ३-४ च. ति वचन सेठि सांभल्युं कुटुंब सघलु जोबा मल्यु. ३३ २४५. १. ग. सांती. २. झ. मुह ३ ४ च. ससरा सेठि नि साथि यई, पालखी बिठी राउल गई. २४७. १. क. कहु जाणइ छइ; ग. कहइ तु केही परि जाणई बढी १-२ च. मां नथी. २४८. १. ख. कहिउं; झ. वाद वढावडि. २. ख. बोलुं तसुं; ग. मुहडइ; च. बिढइ तिसिओ; झ. बोलीजइ तिसिउ. २४९. ४. च. ए भेद कही आपो तुम्हे. २५०. १. ख. झ. दिवस मास; च चउ मास. २. ख. झ. नही कुण; ठ. नही. २५० पछी झट.मां वधारो : च्यारइ भेद कहा जूजूया, सोढी क्रेडिङ लोक में हुया | सोढी हारि मनावी घणडं, लोक कहई धिग २ जाणपणं ॥ ५ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ माथिइ पाटा पाडया सात काढी सोढी गर्दभि चडी बहू-नई आपिडं अधलउं राज सात वरसनी राज जि लहिउँ रत्नचूड-रास लोक बोलइ छह एक जि वात आगलि काहली पणि तडतडी २५१ सासू-ससरा सरियां काज यमघंटाई बिहुं-नई कहिउं २५२ * ततक्षणि वणिग च्यारि आविया कहउ तुम्हार फलपति किसी फलपति होसिइ अम्ह-नई एह समुद्रि केवल अछइ नीर वचन तुम्हारडं कहु नइ सही नीर-मान जउ नही कहउ तुम्हे यमघंटा तव बोलइ हसी नदी आवती राखउ तुम्हे २५१. २. क. एहवी; च. वछीआत. ४. च. तडतडी. बोलाविया यमघंटाई च्यारिइ बोलइ ते तिहां हसी २५३ झगड सांभलउ तुम्हे धुरि छेह तुम्हे कही आपउ बावन वीर २५४ लक्ष्मी अम्हारी तुम्हे सवि लही बाहण तुम्हारां लेसिउं अम्हे २५५ वात सांभलउ तुम्हे उल्हसी नीर-मान कही आप अम्हे २५६ २५१. पछी झट.मां वधारो : सोढी नइ देसुटउ हूउ, राजा नगरि कराविउ दूउ | मंत्री राजा प्रति कहइ देव, वचन आपणुं पालीइ देव ॥ २५२. २. क. झ. सीधां. ३. ख. जब लेउ. ४. क. वचन जि; ख. सहु इमिइ ग. इन सहूनइ कहिउ. · २५२. ३-४. ने बदले झ.ट.मां : जिमघंटा कहइ तेणी बहू, अरघ राज़ जो लीघू सहू । तिम जो बुद्धिवंत बाणीया, बुधिवंत अछइ प्राणीया । काज करेसिइ आपणी मतिइ, म जे वचन कहिउं तुम्ह प्रति ॥ २५३. च.मां २५३ थी ३१४ जुदा शब्दोभां ते पछी शाब्दिक समानता घणा मोटा प्रमाणमां, क्वचित कोई शब्द जुदो . २५५. १-२ ने बदले झ. : वचन कुमार प्रतिहूं अम्हे कहिउं तीणइ वचन सवे सांसहिउ | वीस कोड सोनईया जेह ईणइ लीधा हाथिइ तेह ॥ २ ठ लाछी तुमारी अमनि हूई. ४. क. अम्ह घरि रहु; ग. अम्हारी तुम्हने हुई. २५६. ख.मां आ कडी २५८ पछी छे. १. क. बोलइ देव; ग. इम. २. क. बांधल नांकां नदीनां देव; ग. पण इसी. ३. क पछइ सागर तोलुं नीर. ४. क. एवं वचन कहिसइ ते वीर. २५६. झ.ट.मां आ प्रमाणे : यमघंटा कहर ए प्रतिकूलि, वाहणनइ मिसि पडिसि धूलि | कुमरबुधि सवि जाणं अम्हे । ते ऊतर नवि होसिइ तुम्हे ॥ बांधउ नदी समुद्र आवती, नीरमान सवि आरती ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेत्नचूड-रांस बुद्धि एतली न सूझइ किमई ए तु हजी जिमाडिउ जिमइ मूरख च्यारि जि आगइ हूआ तेह-सरीखा पणि तुम्हे थया २५७ कवण कवण ते मूरख च्यारि किहां हूआ ते कह उ विचारि सांभलउ ते थई सावधान वचन अम्हारउ देज्यो कानि २५८ वस्तु च्यारि मूरख, च्यारि मूरख, वसइ ऊजेणि उन्हालइ पणि नयरि-मज्झिा साधु एक आगलि जि मिलियउ अणजाणिई तेणइ कहिउं धरमलाभ तिणि रिखिइ दीयउ रिखि आघउ जव चालियउ परिसरि करइ विवाद धरमलाभ मुझ-नई कहिउं पूछइं रिखि करि साद २५९ चउपई आगलि जई-नई रिखि राखीउ धरमलाभ केह-नई दाखीउ चिहुं-माहिइ जे मूरख कीहउ(?) धरमलाभ अम्हे तेह-नई दीउ २६० एक मूरख बीजउ कहइ हूं अ त्रीजउ कहइ पाछउ था तू अ . तिणि वारिइं चउथउ बोलियउ तेणई तेह-नु ऊतर कहियउ २६१ ऊजेणी अम्ह रहिवा-ठाम परिसरि जमलउं हूंतउं गाम तेह गाम-नू माथा-सिरउं तिहां हूंतउं माहरउं सासरउ २६२ सासरइ जावा सामहिउ जाम माइं सिखामणि दीधी ताम तिहां गया हूंता मुद्रा धरे जिमवा ऊठाडइ नही नही करे २६३ २५७. २. क. हवडां बोलउ छउ तुझे इमइ; ख. ए ऊपरि ऊषाणु सुणउ.. २५८. ४. ख. अम्हारइ, कान; ग. अम्हारी दीउ कान. ख.मां आ पछी २५६ मी कडी छे. ते पछी आटलु वधारे : जिमघंटाइ वलउ इसिन, विणिक च्यारि नइ बीतउ जसउ. २५९. २. ख.झ. बाहरि नीकल्या हरषद तेणि. ४.क. सह्य'; झ. जाणे सुरतरु अफलां फलिउ. ५. झ. कहिउ. ७. क. मूरष करइ तिहां वाद; ठ. मंदि वाद; ग. परस्पर. ८.ठ. केहनि. ___ २६०. ठ.मां नथी. १. झ. पूछीउ. २. ग. झ. दीउ. ३. ख.ग. सही,. झ. सुध. ४. ख. कही; ग. कहीउ भाई; झ. दीध. - २६१. २. ख. न थाउ. ३. झ. कलकलिउ. ४. झ. अटकलिउ. २६१. पछी झ.ट.मां वधारो : रिषि कहइ जूठी म करउ वात, आपापणा कहउ अवदात । मूरिष निगति कहउ जूजूई, जिणि परि जेहनी वात ज हुई ॥ २६२. २. ग. जाम. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेनचूड-रांसे गयउ सासरहूं टइंगर करी दिइ आसीस अजरामर सार २६४ जिमवा ऊठाडइ तेतलई माइ- नई हाथिई भूख न होइ २६५ आछण्या चोखा रांधिउ कूर मुझ-नई भूख नथी कांई घणी २६६ प्राणइ किम विलगीजइ बांह जिमाडीइ तु वडइ सासरइ २६७ रसोइ -माहि सूआरिउ राति भूख लागी पणि पेट विदाहि २६८ आछण चोखा दीठा ताम घर-नी स्त्रीई दीठउ तेतलई २६९ होठ बूरी-नई बइठउ तेह कांई जमाई असरीखउं थाइ २७० बोलाविउ बोलइ नहीं ताम वैद्यराज - नइ तेडउं गयडं २७१ जोइ नाडि नइ साहइ वांह धउलउ तंदुल दीठउ सार २७२ माइ वचन जु मन-माहि घरी सासू-नई जई कीध जुहार तिहां जई - नइ बइठउ जेतलइ हिवडां जिमी - नइ आव्या तोइ इम करतां आश्रमियउ सूर ऊठाडिउ वली जिमवा-भणी पहिलडं जमाई आव्या आंह आगइ जिमी आव्या छइ परई जमिसिइ जमाई पणि परभाति कधी माम जि आवी माहि आघउं पाछउं जोवइ जाम गाल भरी बइठउ जेतलइ मोटा गाल देखी संदेह बेटीइ बोलावी माइ ततखिणि आवी सासू जाम जमाई - नई किसिउं थयउं आविड वैद्य ऊतावलउ तिहां मुख छाया जोई तिणि वारि २६३. १. ठ. सुडिउ २ ख. सीरामण दीधु. २६४. १-२. ख.झ. : गयउ सासरइ गहिगह करी, मित्र त्रिणि (झ. च्यारिइं तव) साबिइ धरी. २. ग टंगारव करी; ठ. टिगर. २६५. २. झ. ऊठउ जिमवा कहिउं. २६६. २. क. क.ख. झ. आण्या; ख. रांधावा षीर; ग. आछण. ३. ख. राति; ग. ऊठो जमाई जमवा; झ निसि. १२६७. ४. क. बली जिमता लाजइ ं; विहाणइ ए जिमसिइ. ख. जमाइ चडइ; ग. जमाई जाइ तो; झ. २६८. २. ख.ग. रसोडा. ३. ठ. ठाहि. ४. क. घणी पेट माहि; ग पेट ज माहि २६९. २. ख.झ अछाडया; ग, आछुण्या; ठ. आछण्या. ३. गं. जाम. ४. ख. अस्त्री जागी; ग. स्त्री दीवो लेई आवी ताम; झ. स्त्री दीवउ ल्यावी तेतल्इ. २७२. १. पछी ख.मां बधारो : जमाई बइटउ छइ जिहां २. ने बदले झ. : आपकाजि जे छइ आकुलउ | तेहनइ मनि छइ एक ज भूष, द्रव्य करी पामीजइ संध्य. ३. ग. मुख उघाडी, ठ. तिणि वारि; ठ. बधउ तंदल दीठ सार. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नधूड-रास वैद्य कहइ ए तंदुल-व्याधि नही अनेरा केह-नइ साधि ल्यावउ छुरी देखाडउं ईम दुष्ट व्याधि ए मोटी सीम २७३ गाल चीरी-नइ काढलं कण काठ-माहि जिम दीसइ घुण आ जाणउ व्याधि न मूल तुम्ह-नइ परमेश्वर अनुकूल २७४ कर्म तुम्हारउ अम्हारी बुद्धि चडइ जस नइ हुइ हस्त-सिद्धि थाइसिइ जमाई जु सटेक तुम्ह-नई भइंसि आपसि एक २७५ पाछा थाउ काई रह्या फिरी अणावउ ठीब राखई भरी निवर थानक तेणई कही नाखि-न मूरख माहि सही २७६ थूक राख बेहु ल्यावी करी दाटउ बाहिरि खाडउ भरी सासू कहइ अम्ह हुंती आधि भलई जमाई हुई समाधि २७७ वैद्य भइंसि लेई चालीउ जमाई आणउ करि हालीउ मूरखपणउ मू एती सीम भईसी नीगमी ससरा-नी ईम २७८ एहबउ मूरख हूं अ जि सही धर्मलाभ तउ मूह-नई कही बीजउ बोलइ तीणइ वारि गाढउ मूरख हूं अप्पार २७९ एक वार हूं सासरइ गयउ आणउं करि पाछउ आवियउ जउ अम्हे आव्या नगर-दूआरि पउलि दीधी रह्या देउल-मझारि २८० २७३. ४. क. एतलइ ए सीम. २७४. १-२. झ. काढिउ दाणउ चीरी गाल, कष्ट माहि छई मोटउ साल । २. ग. होइ जिस्यो घण. २७४. पछी झ.मां वधारो : जउ हिव हीयडु करसिउ बरु, तुह्म जमाई साजउ करउं. २७५. १. क.ख. धर्म. २. ख.झ. चडस्यइ; हुस्यई; ग. चडॐ; च. जस कीरत; झ. अम्ह सिद्धि. ३ ख. सचेत; ग. सविसेक; ४. ग. दूष जमाईन जासिई छेक. . २७६. ३. ख. कही; झ. करीनइ साहिउ बांहि. ४. ख. थूकि, बाहइ धरी; ग. थू कि नि » किन मूरिष एह ज माहि. ___२७७. १. ग. राख हलावी; झ. भेलिउ आफणी. २. झ. षाडीइ षणी. ३. ठ. व्याधि. ४. ख.ग.झ. टाली व्याधि. २७८. १-२. पछी झ.मां वधारो : एहवउ मूरिष हउ हेव, धर्मलाभ अह्मनइ दिउ देव । एहवउ मूरिष हुंअ जि अछउ धर्मलाभ लेईनइ मछउं ॥ ३. झ. मुझ. २७९. ५. ठ. गमार.. २८०. ४. ख. रहीयां बारि; झ. रह्यां अम्हे बारि. ठ. नगरि ० . Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास वात करतां राति जि गई एतलइ राति बिवहुर जि थई । मइ कहिउ पहिलउ बोलसिइ जेह दस लाडूआ हारिसिइ तेह २८१ तिहां आगलि रहियउ छइ चोर दृढपणइ छइ कठिन कठोर सर्व लेई-नइ तेह जि गयउ हूं अणबोलिउ थई-नइ रहिउ २८२ दस लाडूआ-नइ कीधइ गमि मई तउ सर्व-बस्व नीगमि एहवउ मूरख जाणउ तुम्हे धर्मलाभ त उ लेसिअम्हे २८३ त्रीजउ बोलइ तीणइ वारि हूं तु मूरख अतिहि गमार कलत्र बे तु मई परिग्रही बिन्हइ बाथई आवइ सही २८४ विहंची आपि अधलउ देह कंदल-नउ तव आविउ छेह एक वार घरि आविउ जाम जिमवा बइठी एक जि ताम २८५ बीजीई बेहु धोया पाग जिमती हेरइ जाणइ काग जिमतां ऊठी पग भांजीउ बीजीइ बीजउ गांजीउ २८६ एहवउ मूरख मूह-नई जाणि धर्म-लाभ अम्हे लेसिउं प्राणि चउथउ तिणि वारिउ कलकलिई धर्मलाभ लेवा टलवलिउ २८७ बे घरिणि हूंती अम्ह-तणइ एकि खाटि सुसिउं इम भणइ डाबइ पासइ सूती एक जिमणई पणि बीजी सुविवेक २८८ २८०. पछी झ.मां वधारो : नगरपासि देवी देहरइ, अह्मे जई सूता सुषभरइ. २८१. १. ख. ग. ठ. नही आरति; झ. आरती नही करता वात. २. ग.ठ. तिवारई गई विवहर राति; झ. तिणि वेला हुई मध्यराति. ३. झ. आवइ नींद. २८२. 1. क. तिणि थानकि रहित घणा चोर; ग. आगइ रहिउ थु; झ. आगइ तिहां. २. ख. नर परउ; ज्ञ. दुष्टपगइ. . २८३. २. ग. सर्वसु; झ. चोर आपणइ थानकि रमिउ. २८४. ३. ख. झ. संग्रही. ४. ग बिहु ए. २८६. ३. ख. झ. जिमली. २८७. १. ग.झ. हुय अजाण. ३. ख. कलमल्यु, झ. ऊजमिउ. ४. झ. कमकमिउ. २८८. १. क. बेहु. २. ख. सूती, झ. ठ. सूईइ. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास बेहु हाथ बिहूं ऊपरि धरि ऊंदिरि दीवटि लेई संचरी हाथ न कीधा पाछा बेह जाणिउं रखे जागेसिइ तेह २८९ घर लागउं बलि डाढी मूछ मूह-सरीखउनही कोई भूछ मूरखपणा माहि पहिली लिही धर्मलाभ तउ मई संग्रही २९० तेह मूरख-सरिखा जाणिवा लहुडा मोटा मनि नाणिवा यमघंटा इम कहि-नइ रही सहू विसर्जिउ साथिइ सही २९१ राति रहिउ रणघंटा-पासि वात करइ बिन्हइ आवासि माहरउं जीविउं तउ परमाण तुझ-नई साथ लिउ निरवाणि २९२ प्रभाति रणघंटा इम भणइ ऊठउ स्वामी आवउ आंगणइ ऊठिउ कुमर ऊतारइ गयउ मित्र-आगलि वृत्तांत जि कहिउ २९३ कुमर भणइ तुम्हे आवउ साथि जीत आपणि टली अणाथि कही जोयउं सम-दानि करी पछइ राउलि लीधा धरी २९४ कुमर सुलक्षण दीठउ राइ हियडइ हरख किमिहि न समाइ आप आपणउ झगडउ कहिउ राउ सुणी अणबोलिउ रहिउ २९५ ततक्षणि कुमर करइ वीनती सावधान तुम्हे रहउ एक रती प्रवहण लीधां बोलिउं इसिडं जं मागिसिउ भरी आपिसिउं २९६ २८९. १. ख. बिन्हई हाथ; ग. बे हाथ. २. ख. दीवउ; झ. दीवा. ५. ग. जागई. २९०. क. ठ. मां नथी. १. ग. नई बलीउ कूच, झ. बली मंछ दाढी तिणि वारि, हसिवा जागी वह नारि. ३. ग. लीह. ४. ग. लेसिङ सवि दीह; झ. लेसिङ थई सीह. २९०. पछी. झ. मां वधारो : ते तु च्यारि वढता रहा, ते लोके पणि मूरिष ते कह्या. २९१. १. ग. ठ. जाणि. २. क. तुम्हो हवइ इहां नाविवा; ख. बुधिवंत छ। पणि नवनवा. आ पछी ख.मां वधारो: रत्नचूड कुमर सहू ते कह्यउ, एड्नु काम विसेष ययय । एहवा मूरिष छठ तुम्हि जाण, धन नीगमस्यउ पणि निर्वाण | ग. धन नीगमीठं सो पुण निरवाणि. ठ. डाहापण आवशि माहि निरवाणि. ३. क.ठ. रणघंटा. २९१. ३-४.ने बदले झ.मां : जूजूया बोल विचारी कह्या, तेउ सधला ऊठीना गया । कुमरइ ते तु प्रीछिउं सहू, इम करतां असुर थिउबहू ॥ २९२. २. झ. मन उल्हासि. ४. झ. मुझ. २९२. २. ग. सूर आव्यो . २९३थी ३१६ सुधी झ.ना पाठ स्वतंत्र-जुदा शब्दोमां ए ज वस्तु . २९४. ३. क. साजना नइ फरी, ख.च. समदाइ'. ग. सामदामई. ४. क. जईइ फिरी; : ग. पछइ लिवारु राउलि धरी. २९६. २. ग. सुणो. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास तात-तगर कागल आवियउ मसा-तणा अस्ति ल्याविजउ परइ अछइ जु अम्हारइ चाड तुम्हे ल्यावउ मसा-ना हाड २९७ राउ भणइ तुम्हे कांइ कहि बोलिउं तउ जोईइ निरवहिलं लक्ष्मी एहनी आपउ रही जासिइ नाक कान बे सही २९८ कुमर भणइ भरी आपउ जाण अम्हे नवि लेउं कूडउं क्रियाण दस-इ कोडि तिहां चिहुए कही कुमरई तेह जि लीधी सही २९९ ततखिणि काणउ आविउ तिहां कहु दे आंखि अम्हारी किहां जमली काढी मूकउ आंखि तोली आपउं राजा-साखि ३०० ल्याविउ शस्न नई काढिउ सार काणउ नाठउ तीणइ वारि तिणि अवसरि माली आवियउ तेणई कुमर जि बोलावियउ ३०१ कांइ अम्हारडं आपउ तुम्हे राय-वदीतउं लेसिउं अम्हे सउ पंचास लिउ तुम्हे सही ओसीकल तुम्हे करउ रही ३०२ माली कहई तउ काइ लीडे आवि भाई तु ताहरउं दीउं हाथ घलाविउ घट-माहि पछई वलतउं इम कहइ कांइ अछइ ३०३ ऊसरामण थया छउं अम्हे महाराज सांभलिज्यो तुम्हे माली प्रीछवी रहिया जाम सूत्रधार तिहां आविउ ताम ३०४ अम्हे जावा हीडउं छउं गामि झगडउ टालउ लेई द्राम अम्हे कांई नही लीउं भई रुलियाइत करउ नइ लई ३०५ २९७. ४. ख. आपस्यउ; ग. आपो. २९७ पछी क. मां नीचेना पाठ वधुः पछइ आयु ससानां सींग, पहिलु तु थया छउ रीग कागलमा प्रीछवणी भली, कहिक घोडानु ल्यावउ वली गाडानु आपु चींचूउ, तेत तणु ए ऊतर एउ च्यारि वस्तु आपु तुझे सार, हवईम करसउ कांइइ कार २९८. ३. ग. कही. २९९. १. ग. ठ. आपो वाहाण. ४. ठ. तिहा कणि, ३००. ४. ख. तो वारइ कुमरय साषि. ३०१. १. क. काढिवा सारि; ग. काटल सार, ३०२. ४. ख. उसीगलउ; ग. उसींगल करूं तुझे भाई, ठ अभ्हे थाउ सही. ३०३. १. ग. लेड. २. क. हू; ग. देउं. ३०५. २. ग. भाई. ४. ग. लाई. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास वलत एम कहइ कुमार राय-नई बेटउ आविउ सार . रुलियाइत कालमुहा तुम्हे किस्या जिसिउं चीति मुखि बोलउ तिस्या ३०६ रुलियाइत अम्हे थया छउँ सही ओसीकल अम्हे हूआ भई वणिग च्यारि ते तिहां आविया सागर-झगडा-ना भाबिया ३०७ बोल तुम्हारउ करउ प्रमाण नीर-मान कहु तुम्हे सुजाण नव सइ नवाणूं नदी राखि नीर-मान कहुं राय-साखि ३०८ राउ भणइ तुम्हे कहिउं करउ द्रव्य एहन आपउ परह प्रधानई तिहां कीधउ न्याय सोल कोडि द्रव्य लेई जाइ ३०९ इणि बुद्धिई तिहां तूठउ राउ मागि मागि तू उचित पसाउ न्याय घंट तुम्हे बांधउ हेव न्यायई उलग सारइ देव ३१० वस्तु कुमर पभणइ, कुमर पभणइ, निसुणि तू भूप न्यायई राजा जाणियइ, न्याय-धर्म त्रिहु भुवनि वखाणइ न्यायई लक्ष्मी ऊपजइ ते धनि धनि घरि घरिप्रमाणइ न्यायवंतनई तिर्यंच अपि करइ सखाइत सार न्याय-विण रावण मूकि करि भाई गया तिणि वार ३११ तिणि चार राउ हरखियउ बंधावइ वलिय जि तूठउ इम भणइ मुझ न्याय-घंट आपउ रणघंट ३१२ ३०७. २. क. तुझि भई. ४. क. व ल्यावीआ. ३०८. ३. क. सवे नदी आवंती. ४. ठ. तोली नीर आपु. ३०९. १. ख. हारिउ कहु. ३१०. २. ख. अचिंत. ३. ठ. बंधावु. ३११. ३. क. व्यापीअ; ख. दीपइ; ग. लोक. ५. क. जाणीअ; ख. झाई: संग्राम संवाद जीपइ; ग. रहिं जाणी; ठ. रधि माणिइ. ६-९. ख. ज्ञाई सषाइत तस करई, ज्ञाई तणी ए वाणि । ज्ञाइ रिण रावण मूउ, नरगि गयउ निरवाणि ।। ठ. नरनि सही. ७..क. भंई अन्याय निवारि; ठ. सषाइक लोक. ९. ठ. राज गयु एह लोक. ३१२. ३. क. कुअर इम. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ रघंटा तेडावि विम्मासण तुम्हे म करउ तेह वचन मानी करी कुमरइ जेहवडं चतविउ रत्नचूड-रास करी दीघउ नगर-माहि पुण न्याय जिभयउ कुमर सजाई चालिवा तणी यमघंटा मोकलावी करी पूर्या सड्ढ वाय-नई प्राणि पगि पगि करइ उयारणां माइ-बाप बे हरखियां कुमरह राय-नई सघलडं त्राटक वद्धावी वाजइ गयणि नर-नारी मृदंग भेरि ज सार सार सीकरि छत्रचामर सोहए ३१६. २. स्व. संघषर; ग. तामलती अहिठाणि; स्व. नगरी ग्यां उचित पसाउ साथ जाउ कीध प्रणाम सीधउं काम ३१३. १. ग. तेडी. २. क. दीघां. ३. ग. मत. ३१४. ३. ख. हुअउ जे ● ३१४. पछी क.मां आलु खोटहडउ जे साधु जि थयउ कीघी पणि ते तिहां अति घणी ३१५ चाल्यां वाहण सरवस भरी तामलती आज्या निरवाणि ३१६ ; ठ सह न्याय. वधारे : राय भणइ तु करु, अझ बेटी वीवाह कुंअर तव बोलिउ नहीं, हूउ मनि उत्स रूss दिमि लोध लगन, वीवा कग्युि उदार नामइ ते सुरमंजरी, परणिउ रत्नचूडकुमार. ३१३ जोवइ नयणि ढोल अपार ढमकइ ध्वज पताका - सहित आविउ, वाहण देखी मोहए ३१७ भामिणि बहिर सार राजा - हरख अपार ३१८ ३१४ ३१५. २. क. खोटारू; ख. खोटई झूठ; ग. सहु साध ज भयो: बात बालवा तणी, हूई वीवाह तणी पूरणी. पूर्या, सरवस्त; ठ. भणी. ३. ग. चाल्या. ४. क. पुहुता जाणि; ग. ते जाणि, च. पुहता ठाण ३१६. पछी स्व. मां 'टक' ने बदले 'छंद' ३१७ - ३२१ क. झ. मां नथी. ३-४. कोची ३१७. २. ख नगर नारि ३. ख. झालर सार. ४. ख. ढम २ ढमकइ. ६. ग. मन मोहए. ३१८. १. ख. घरि घरि करइ वघामणा, ग.मां ३१८ पहेलां 'लढण' Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रासे प्राणप्रिया आणंदिया हरखिउ सयल जि लोक नगर ज हरखिई भेटियउ टलियउ सघलउ शोक ३१९ वाहण-माहि-थी ऊतरी लागा बाप-नई पाइ सजन-सहित घरि आविया चरणं नम्यो तिहां माइ ३२० माडी आसीस ऊचरइ अखइ होइजे वच्छ महियलि रवि-ससि जां लगइ सागर पाणी सच्छ ३२१ टक ऊतरियां वाहण सही द्रव्य कोडी त्रीस ज हुई हीर चीर पटकूल बहूय (2) रणघंटा साथई वहूय (2) दानि मानि सहू संतोखीउं पहुता मंदिरि आपणई, . सजन सहूइ पोखीउं ३२२ चउपई रणघंटा नइ सुभगमंजरी परणी पुणि तु रतनसिरी .... नव नव उच्छव नव नव रंग भोग भोगवइ अतिहि सुचंग ३२३ सुगंध सालि दालि घृत-घोल हीडोला नई फूल-तंबोल जस-कीरति नई साहूकार कुटुंब-वृद्धि नई उत्तम सार ३२४ ३१९. ३. ग. भेलीओ. ३२०. १. ठ. थिया. ४. ख. नमीजई. ३२०. १. ख. दिई आसीस बहु. २. ख. चिरजीवि तूं वछ. ३. ख. ससहर. ३२१. क.मां : ऊतरी वहणि बस्त्र जि करी, वीस कोडि शरवालई बरी । चोर पट्टकूल धन बहू, ल्याविउ रणघंटा नई बहू ॥ झ. धन सेवन बहू. ३२२.नी पंक्तिओ ख.मां उलटपुलट छे. २. ख. कोडी ज; ठ. तेत्रीस. ३. ख. माणिक. ४. ख देषी मोहए दृष्ट. ५-६. झ.मां नथी. ५. पछी ख.मां वधारो : याचक जन- जय २ रव भणइ. ६. ख. सवे हरषीया; ग. पहतला. ३२३. १. क. सुरमंजरी, ख. सोहगमंजरी, २. क. परणी घरि - आवी पाधरी; झ. रतनमंजरी. ३२४. क.मां नथी. १. हीजोलाषाटइं; गाठ. हीडोलाट. ३२४ थी ३२९ ख.मां स्वतंत्र-जुदा ज शब्दोमां. ४. ख.ग.च. कुटंबमेलावउ. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूंड-रास तिणि नयरी आव्या केवली पाखलि संघ बइठेउ मिली षापइं वचन जि पूछि इसिउं करम विपाक बेटो-नउं किसिउं ३२५ मंद-गामि वसइ डोकरी बेटउ एक बीजउ गिउ मरी थावर बेटउ नही घरि धन्न पर्वणि लोक जिमइ पकवान्न ३२६ खीर खांड घी मागइ तिहाँ माइ भणइ वच्छ देउं किहां रोतउ दिखि पाडोसिणि कहइ खीर आपिसिउं घी पणि लहइ ३२७ खीर खांड घी तिणि आपिया भाणइ प्रीसी विरला किया मास-खमण नई मुनि पारणई धर्म लाभ दीधउ बारणइ ३२८ चित्त वित्त नई उत्तम पात्र थावर-नउं टाढउ थिउ गात्र जग चिंतामणि साहस धीर हरखइ ऊठी दीधी खीर ३२९ देवलोक-नउं बांधिलं आय पाडोसणि विमासइ माइ बिहू कहिउं कुल उत्तम आपणउं नीच करम सिंहां बांधिउं घणउं ३३० आउ पूरी-नई गया देव-लोकि रत्नचूड आविउ इह-लोकि पुत्र तुम्हारउ इणि परि हूउ दान-प्रमाणइ धनवंत थयउ ३३१ ३२५. २. ग. लोक बइठा तिहां. ३.४. क. पूरवभव बेटानुं वली, मणिचूड प्रति कहइ केवली. ३२६. २. क. बेटउ मागई परमान्न, ग. भव्य अन्नः ठ. भव्यन. . ३२७-३३० ने बदले क. मां आ प्रमाणे : षीर षांड घी न प्रीसई माइ, रोवा लागड तेणि ठाइ षीर बांड घी मई दीध, दान देई आहारह लोध. ३२७. ३. ख. रोता, मिली. ४. ख. आप्यउस. ३२८. १. ख. बिहु आपिया: ग. बेहुं आलीयां. ४ ख. आगणइ. ३२९. खः दीधी भावई षीर. ३३०. २. ग. बेहु नई माय. ३३१. १-२. कः तेणइ पुन्यई गयु देवलोकि, रत्नचूड हुड मृत्युलोकि. २. ख. पाम्य ध्यान अति अवलोकि; ग. आव्या मृतलोके; च. अवतो मृत्यलोक.४. ग. च. प्रभावई. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाडोसिणि ते बिन्हइ मुई अनुमोदना करी एक तिहां आप धर्म कुल - सोभागी धर्मई विद्या लक्ष्मी मित्र रतनचूड संसारी जीव जे वेश्या ते गुरु-उपदेश आज्ञाई कुल-नू संयोग चिह्न वणिगे बस्तु जे लही सूत्रधार- नी जे पावडी समुद्रबाद कीधउ जे जाणि रघंटा ते सुभाषित-बुद्धि अंतरंग ते बुद्धि जाणिज्यो रत्नचूड-रास अहंकारि ते वेश्या हूई रतनसिरी पणि हूई इहां ३३२ धर्म उत्तम मा नई बाप धर्म - लगइ सवि जीपइ शत्र * ३३३ कूटकटाह संसारह दीव वाहणि चडीउ गर्भनिवेश ३३४ नीच कुल-नु तेह जि भोग क्रोध मान माया लोभ सही राग-द्वेष बेहू च्यारि विकथा ते निरवाणि ३३६ यमघंटा मिध्यात्व प्रसिद्ध चित्त-माहि सूधउँ आणिज्यो ३३७ ३३५ ३३२-३४३. क.मां नथी. ३३२. १ झ. त्रिग्हि. २. झ. इक वेश्या ४. श. रत्नसुंदरी परणी छइ इहां. ३३३. च. झ.मां नथी. १. ख. शेोभइ २. ग. सहइ. ४. ग. तंत्र. ३३४. ३. ग. सदउपदेश: च. सहगुरू. ३३४. पछी ख. मां वघारो: धर्म तणउ एहवु निवेस. ४५ ३३५. १. ख. झ. अन्य २ ख थानक; ग. आज्ञा थइ थानकनो योग; च. अन्याय थानकनुं योग. २. ख. जीव कुल; झ. जीवा योनि तेह जिनु. समकित ३३५. पछी झमां वधारो : कांणी आंषि तणउ वृत्तांत, ते विनि मिश्र प्राणीउ जंतु । मिथ्यात्व सरीषु गिगइ, जिनवर हरिहर अंतर नवि मुणइ || फुलकीड भेटणक, पुण्य करइ तस महिमा दीघउ इणि सही, तर एवडी ऋद्धि सवि लही ॥ घणउ । माली पात्रदान ३३६. २. क. तडीवडी; ख. ते बेवड तेवडी ३ ४ च. मां नथी. ३३७. १-२.च.मां नथी. १. ग. शुभाशुभ; ३. शास्त्रवात यमघंटाबुद्धि २ झ. रणघंटा. ' ३३७. पछी झ.मां वधाश: गणधर गुरु न्यानी जिम कहिउ, सूधइ मनि ते सवि सहि. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रासे कर्म-विपाक सहु-इ साँभली वैरागि पूर्या आव्था वली सुमति-सहित बार-इ व्रत लिया बोधि-बीज-अंकूरा भया ३३८ सप्त-क्षेत्रि धन वेचिउं घणउं दीन-दुस्थित तेह-नुं सिउं भण तप तपीउ वरतावी अमारि महामंत्र ते घरि घरि बारि ३३९ ग्रही-धर्म ते इणि परि कीध पंच महाव्रत हियडइ लीध खडग-धार सूधउ तप करइ प्रमाद अंग-थिकउ परिहरइ ३४० चउद पूरव इग्यारइ अंग अवडाव्या ते अतिहि सुचंग आराधी इम संयम-सिरी छेहडई अणसण अंगीकरी ३४१ पहुता देव-लोकि सातमइं सतर सागर आउ तिहां गमइ एक वार अवतरसिइ वली मुगति जाइसिइ करम सवि दली ३४२ रतनचूड-नउ सुणिउ विचार पात्र दान तिणि दीधउं सार दान-प्रभावइं एवडी रिद्धि दान-प्रभावई पामी सिद्धि ३४३ दान सील तप भावन सार दान-तणउ उत्तम विस्तार दानई जस-कीरति विस्तरइ त्रिण्णि जीब पणि दानिई तरइ ३४४ ३३८. २. ग. उठीया; झ. रुली. ३. ख. समक्ति लइ जिया, ग,च,झ, समक्तिसहित. ४ ग. बुद्धि. ३३९. १. ग. वित्त झ. नवइ. पोपि. .. ख. ग. भणु. ३. ख. म कर्यउ अहंकार; च. नृप वीनवी. ३-४. ख. मां नथी. ३४०. १. ख. पालीउ. २. ग. ख.झ. छेहडे; अ सूधइ मनि संयम तिणि लीउ, ३. ग. करी १. ग. थिका, परहीरी. ३४१. १. ठ. अग्यारह. २. ग. सरव सअंग, झ. भण्या भणाव्या. ३. ख. धरी. '३४१. पछी झ.मां वधारो : मास दिवस अणसण प्रतिपालि, शुभ ध्यानि तमु हउ काल. '३४२. पछी झ.मां वधारोः देवलोकना सुष भागवी, अनुक्रमि तेह तिहाथी चवी. ३४२. क. झ. ट. भाद्रवइ, ग. भाद्रवई. ३४२. २. ख. अंगमइ, ग. सागर सात आय तिहां खपई; झ. रमइ. ३. ख. महाविदेहि अवतरसिइ सही. ५. ख. टली; ग. निर्दली. झ. निद ही. ३४३. २. ग. तिणवार. ३-४ ग. मां नथी. ३. झ. प्रमाणिइं. ४. ख. प्रसिद्ध. ३४४. १. ग. मां मथी. २. ख. ग. विचार. ४. च. दान देयतां दूस्तर तरइ. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नचूड-रास पनर-नवोत्तरि एह प्रबंध पढतां गुणतां टलइ कर्मबंध बहुल बीज भाद्रवडइ हती कवित नीपनउं भृगु-रेवती ३४५ वड-तप-गछि श्री-रतनसूरिंद अद्भुत कला करी अभिनव चंद तास सीस सेवक ऊचरइ खटपद चरण-कमल अणुसरइ ३४६ सवि सुख हूइ एणइ भणिइ नर-नारी जे निश्चिई गुणइ तस घरि लक्ष्मी हुइ भरपूरि जां तपइ वली चंद नई सूरि ३४७ एह मंगल एह ज कल्याण भणउ भणावउ जां ससि-भाण रतनचूड-नउं चरित्र ए सार श्री-संघ-नई हुइ जयजयकार ३४८ ३४५. १. २. क. पनर एकोत्तरई प्रबंध, रत्नचूडनउ कहिलं संबंध.. १. क. ख. पनर एकोतरइ हुउ प्रबंध; झ. पनर बारोतरइए.. २. ख.ट. रतनचूड तणउ संबंध. १. च. पनर एकोत्तरि नीपना प्रबंध, रत्नचूडना ए संबध. ३४६. क. ख. ठ.मां नथी. १. ग. तपगछ श्री जिनरयणसू रिंद. २. ग. अमृत; झ. पूरउ. ३. ग. तास तणो. क. ठ.मां नथी. १. ख. ऊपजइ; ग. भणई. २. ख. मुगति निर्मल लाभ इणि भण्यइ; ग. मुगतिमर्म लाभई ईण गुणइ. झ. भाविई सुणइ. ३. ४. ख.: अनंत कीरति संपद इणि जपइ, चंद सूरिज इम निर्मल तप: ग. अति कीरति संपद संपजई', उत्तम थानिक ते उपजई. ३४८. १. २. क.मां नथी. २. झ. जाणसुजाण, ३. क. रत्नचूडनु सुणउ विचार; श्री संघनई करइ जयकार (३२७). ४. च. श्री संधनि करइ जयजयकार; झ. हुयो. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ख. ग. च. झ. ट. ठ. पुष्पिकाओ इति श्री रत्नचूड रास संपूणं ॥ छ ॥ सकल पंडित शिरोमणि पंडित श्री ५ सूरविजयगणि तत् शिष्य प्रीतविजय लिखितं समाप्तं । इति रत्नचूडरासः ॥ श्री ॥ छः ॥ इति श्री रत्नचूड चोप | चउपई || संपूर्ण ॥ संवत १७१५ वर्षे चैत्र मासे कृष्णपक्षे ४ः । दिने । पंडित श्री ५ श्री सुमतिविजयग० शिष्य मु० साधुविजय लिषिते ॥ श्री इति श्री रत्नचूडरास संपूर्णः ॥ लिखित् १७२६ वर्षे माघ वदि ११ दिने ॥ दुहा— उत्तम आदरी आय, ऊदाऊ भजी नही । जिम हर धतरांहिं, विरूआहिं विरचइ नहीं ॥ इति श्री सुपात्रदानविषये रत्नचूड प्रबंध संबंध संपूर्णः । इति श्री पात्रदानविषये रत्नचुडकुमार चउपइ ॥ संपूर्णः ॥ श्री ॥ अति रत्नचूडचरित्र संपूर्ण ॥ समाप्त ॥ मति ॥ श्री ॥ च्छ ॥ श्री च्छ॥ श्री ॥ छ ॥ श्री छ॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट [लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरना हस्तप्रतसंग्रहमांना पुण्यविजयजी संग्रहनी ८४६० क्रमांकनी हस्तप्रतमा पत्र १४३ थी १५३ पर आपेल 'रत्नचूडरास' (लेखनकाल विक्रम संवत् १५५८)नां महत्त्वनां पाठान्तर ] १.१. मग्गिसु ३.४. संपुन्न ४.१. सुरवरवासि. ४. वनसाहि १३.१. जि १५.२. लेसाल. ३. जि १६.२ सोहगमंजरी । २१.१. दूमीउ २२.२. चिंति २३.२ ए वसि २४.२. जीवं २६.४. तुं मात २७.८. सीखामणि २८.३. तातिई ३०.१. अर्द्ध गलि ७०.१. सुण्ण द्रढ बांधी. ४ वेशाहरि ७२.३. पाधारूं ७४.२. 'टिइ पुढी ७९.३. मूहरइ दहई ८०.३. दूखणी ८१.७. थयां ८२.४. कन्हा ८५.२. सहीअपy छई ए गपण ८६.१. बेउ. ४. कुण लाह ९२.३. कुशल ९७.२, ऊषिसइ ९८. नथी ९९.१. वसी १०७.१. कुह दे १०८.२. पूगी ११०.३. ठाइ. ४. नदी माहि ११२.३.४. ऊलटसुलटां ११६.३. रलुगनि ११८.३. कहु हिव ११९.१ चाचरि. ३. आकोडिड १२१.५. ए व्रतंत. ७. चारउ पाली ९. अणकहिइ १२३.२ परसइ १२८.४. कुंजर फिरई १३८.४. आहाथु १३९.१. कूकडउ १४०.४ मानप्रमाण १४३.१. चंदणि १९६२. हाहाकार ३२.१. ए कवण सदीप ३७.१. मोती थाल भरी वधावीयां ३८.१. आतमाराम ३९. नथी . ४१.४. भलिउ ४२.४. बाहिइ १५.२. पूगी आस जगीस.३ अंगोहलि ५०. नथी ५६.५. कोइ ६४.१. च्यारि बोलई ६५.२. भांजिसु ६६.१. लागा ६८.३. मन Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० रत्नचूड-रास ११७.३, कसेलव ११८... राखेसि १५१.१. राजा:प्रतिइ १५४.२. कोटी लेई १७०.१. कोटीलउ १७३.४. एह वात सविसंभ लावी १७८.४. सकोई १७९.१. ईछपरीछई हउ १८२.२. बलद एक साढीउ १८४.१. आमडई १८६.२. राज फिरी १९१.१. बालक प्रीय नई १९२.२. सजाई १९४.४. एह जि १९७.२. जव २०२.२. जोउ कोरी नउं घर २१ ६.२ तुणि जोईसई विहाणइ होई २२१.४. बलदउ २२७.३. सहू अजाण. ४. वतू' २२९.४. पाषलिइ २३२.४. राय-हाथई २३६ ४. कहु बाई वढावडि काई करूं २३७-२३९. नथी २४०.२. परठी २४४.२. पडह म वाइंसु २५०.२. नही कुण पाडि २५२.३. बरसनीई, ली. ४. सह नइ २५६. नथी. २५९.२. बाहरि नीकलई हरष जेणि. ६. परिवाली नइ गयु. २६०.१. राहवीउ. ३. सही. ४. कही २६४.१.२. गयु सासरइ गहिगट करी मित्र चित्रणइ साथइ धरी २६९.४. स्त्री जागी २७०.४. जमाई नई २७३.४. द्रष्टि २७५.३. सटेक २७६.४.थंकनि २७७.१. बे हलावी. ४. टाली व्याधि २८०.४. रहियां बाहरि वाडि २८१.१. नही आरति. २. तिवारइ गई बिपहर रात्रि २८७.३. तिवारई कलमलिउ २९०. नथी २९१.२. बुद्धिवंत छई ए पणि नवा. आ पछी वधारेः रत्नचूडिकुमार ते कहिउ । एहनूं काज सविसेषुहर्क २९४.३. समांदायक २९९.१. वहण ३१०.४. न्याइ लगइ सानिद्धि करई देव ३११.६.९. ज्ञाइ तुरीय सषाइत करई ज्ञाइ भणी ए वाणि । ज्ञाइ विण रावण मूकि करि भाई गयां विण नरवाणि || ३१७.३. भेरी झल्लरि सार ३१८-३२२. नथी ३२४.२. हीडोलाई ३२८.४. आंगणइ ३३१.२ पाम्युं ध्यान अतिहि अवलोक ३३२.४. परणी छइ ईहां ३३५.१ अन्याइ भानकन ३३८.४. समक्ति भजूआतीयां ३४०.२. छेहडई ३४६. नथी ३४७.१. सिव. २. मुगति निर्मल लाभइ इणइ गणिई (अंत) ३३४।। इति रत्नचुडरास संपूर्णः ।। पूर्णिमापक्षे कछोलीवालगच्छे भ. श्री ६ विद्यासागरसूरिभि आचार्य श्री ३ लक्ष्मीतिलकसूरि. शिष्य मुनि कर्मसुंदरेण लिषतः ।। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र. रा.ना महत्त्वना शब्दोनी सूचि (निदेश कडी अने पंक्तिना क्रमे) अग्घोर १६१.४ अणाथि २९४.२ भधलउ २८५.१ अपारि १४१.२ अधींगुलि (2) (पाठां. भर्भगलि) ३०.. अस्ति ८८.३ अंघोलि १०५.१ आइसिङ ६६२ आछण्या २६६.२ आठविउ ११७.२ आतां ५३.४ आथि १९१.३ आनावेखणउ २२३.१ आफणी २८.२, २२८.२ आम तात १९४.१ आमलउ २३४.१ आह ९७.१ आहणिउ १९८.१ आहेडी १८०.३, १८६.४ भांबडई १८१.१ उयारणां ३१८.१ उलग ३१०.४ . उकसइ ९७.२ ऊदालइ २९.४ ऊलग १४८.४ ऊसरामण ३०४.१ ओलग ४७.४ . ओलगू १४८१ ओसीकल ३०२.४, ३०७.२ ओसींकल २२९.२ कउअचि २३६.१ कउची १८.५ कच्छ ५९.४ कणय ७०.१, १७४.२ कन्हलि ८२.४ कपा ७.१ कंदल २८५.२ कासलि १०८.१ कुकुट १३९.१ कोहरी २०२.२ खमण ३२८.३ खलखंच २९.४ खाइ २३६.१ खेव २५.२, ७४.३ खोटहडउ ३१५.२ गरहणइ ५६.३, १९२.१ गाडल २३९.४ गोटीलउ १५४.२ गोलि १०५.२ घोहटी ८.३ चउप १५१.३ चरी १८६.२ चारुहली ४४.२ चांद्रिण १३.४ चिंहुटीउ १५८.१ छेक ६२.४ छेह २५४.२ छोकरडउ ११४.२ जगीस ४५.२ जमलउ २६२.२ जूउ ५२.४ जूजूलं ६७.२ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ झगराइ ११२.४ इंगर २६४.२ ठीक ८९.३ ठी २७६.२ डोकरी ३२६.१ ताति २३८.४ तामलती ३१६.४ तुणि १०२.२ तुणिउ २१६.२ बाहर ४१.३ दीकिरउ १०४.२, ११५.१ ट्रेठि २४०.२ धीर- सुपारी १६४.२ धुरि २५४.२ नात्र ८५.२ नाहर १३३.३ नांगली १३८.३ निमूनव १४०.४ निरत ४९.३ निवर २७६.३ नीक ८९.४ नीहारइ १५५.३ जुहइ १५५.४, २४१.३ पइलइ ७१.४ पढाइस १५०.३ परवाहि (पाठां वन- साहि) ४.४ परहु ३०९.२ पति ८८.४ पाखइ २२९.४ पाखलि ४.२ पांडव १६८.४, १७०.४ पहि २१५.१ फडही ८.४ फलपति २५३.३, २५४.१ बदरउ २२१.४ बहिनर ४४.४ रत्नच्चूड-रास बंड १८२.१ विहरि २१९.१ बिवहुर २८१.२ बिबहुरि १५३.४ भिल्या १६५.२ मूंछ २९० २ मउड ९५.४ मडफर २०१ माडी. ३२१.१ माथा-सिर २६९.३ माम २६८.३ मुकरि ८१.२१ रमाले १११.३ रसोइ २६८.२ 'रहर' २१८.२ राखे ९०.२ णि २१५.१ रुलउ ९४.२ रुलियाइत २३०.४ रुलियाइति ६१.४ लगइ ३३३.४ लागउ २९०, १ लिही २९०.३ बढावडि] २३५.१ वरतण २१३.१ सिउ ८.१ वाटुलउं १५२.४ वासइ २४४.२ विगूचाइ २१६.२ विढकणी २३९.३ विढवाडि २३५.३ विती २२७.४ विरलउ ३२८.२ विहंचइ २८५.१ विहि १७७.४, १८०.१ वेकीइ २०४.३ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दसचि वेचिङ ३३९.१ सइर २३६.१ सई फेटि ६१.१ सखाइत ३११.२ सटेक २७५.३ सणीज' १७९.३ सभीतरि २३४.३ समवडि १७६.. समाधि २७७.४ सरवस ३१६.२ सरवालउ ५१.२ सरिस ६४.२ सह्या ७.४ सागउटउ १०.३ सामहिउ २६३.१ सायर ७९.३ साहली १८.. साहा ११३.१ साई १८७.२, २०३.१ सांझउरउ २१३.३ सांतइ २४५.१ सांपज १८२.२ सांसहइ १३२.. सिट्ट ५०.४ सीकरि ३१७.५ सीप ३२.२ सीम २७३.५. २७८ ३. सीरामण २५.३ सुधि २११.३ सूआरिउ २६८.२ . सूघउं ३३७.४,३४०.३ हालीउ २७८.२ हासाकार १४६.२ " हीडोलाट ४६२,७४.. हीडइ ३०५.१ हुड १४३.२ हुणहारउ १७४.१ हेरइ २८६.२ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुदिपत्र भूमिका मूळ पाठ पृष्ठ पंकि सुधारो पंक्ति सुधारो माक पडछायो तेनो होईने तेटलुज मोकलीए. शाक सुरहट तण ३ देसंतरि जिम्म १५ १८ . 4 ૨૨ ठाम काणउ करी. मळतु. प्रधाने मीठ थई गयां । पाणी यमघंटा छडेला आवी. गाम रीते कोटि १७ तउ बीजी एहन गोलि तिहां दिनि दिनि देवारठ सीरावी ११ १६ ११ वेश्या १७ २१ राउलि राउल भणइ WWW. AS CGWW.00 लीधा सुभाषित बीज ने रत्नचूड-कथागक जाणीता नथी. रचनाशली १५०९ना विरोधमां सूचक छे. भूल छे. टीप ૨૫ २९ जोइयई संध्यां पहरि Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रदिप ५५ मूल पाठ सुधारो पंथि १. मुधारो मद्रा पुणि इम जोई १६ एक वेचि-न पोठी सर्व-वस्त त्रीज कलकलिउ सरीखउ नही वावरि आहेडल Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in Education International