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प्रधान संपादकीय
डा. हरिवल्लभ भायाणी द्वारा संपादित पंदरमी शताब्दीनी प्राचीन गूर्जर रासकृति 'रत्नचूडरास' सौप्रथम प्रकाशित करतां आनंद थाय छे. आवी अनेक प्राचीन गुजराती कृतिओ जैन भंडारोमा उपलब्ध छे. तेमांधी पसंद करी महत्त्वनी अप्रकाशित प्राचीन गुजराती कृतिओर्नु प्रकाशन करवामां आवे तो गुजराती भाषाना विकास उपर सारा प्रकाश पडे. आ दृष्टिले अमे 'प्रद्यम्नकुमार चोपई', 'उपदेशमाला-बालावबोध', 'संधिकाव्यसमुच्चय' अने 'शंगारमंजरी' आ चार अप्रकाशित कृतिआनु प्रकाशन हाथ धर्यु छे.
डॉ. भायाणीमे आ कृतिना संपादनने अत्यंत प्रमाणभूत करवा प्रशंसनीय प्रयत्न कर्या छे. उपरांत, तेमणे भूमिकामां कथासार अने रत्नचूड कथा साहित्यनुं विशद आलेखन कर्यु छे. आq सारं संशोधनकार्य करी आपवा बदल आपणे सौ अमना ऋणी छीओ.
जूनी गूजराती साहित्यकृतिओना प्रकाशनमा सहकार आपवा बदल गूजरात राज्यना भाषानियामक श्री हसितभाई बुच अने नायब भाषानियामक श्री जोषीपुरानो हु अंत:करणपूर्वक आभार मोमुछ.. आ ग्रंथना प्रकाशनमा आर्थिक सहाय करवा बदल गुजरात सरकारनो हुँ आमारी छु.
ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, अमदाबाद-३८०००९ १५ नेवेम्बर, १९७७.
नगीन शाह
अभ्मक्ष
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