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________________ १४ ते वेळा त्यां समुद्रवादवाळा चार वाणिया आव्या. 'रत्नचूड समुद्रजळनु चोक्कस माप केटलू छे ते कही नहीं शके, एटले तेनां वहाण अमाराज थई शक्यां छे' एम तेमणे क. घटाए, 'जो ते तमने एम कद्देशे के नदीनां पाणी तेमां आवतां अटकावो तो पाणा केटल छे ते कही आपु, तो तमारी आशा धूळमां मळशे. ' वाणियाओए कयुं, 'एटली बुद्धि रत्नचूडमां कयांथी होय ! एटले यमघटाए तेमने चार मूर्खाओनी कथाना मूरख जेवा कथा, अने तेमनी विनतीथी ए दृष्टांतकथा कही. (४) चार मूर्खनु दृष्टांत उजेणीना चार मूर्खाओने रस्तामां मळेला एक साधुए धर्मलाभ कयो, एटले तेओए अदरोअंदर बाद शरू कर्यो के आपणामांथी कोने धर्मलाभ कत्यो पाछा वळीने साधुने पूछतां तेणे का, 'तमारानां जे सौथी मोटो मूरख होय तेने. ' एटले ते दरेक मूरखे पोतानी उत्तम मूखईनी बात करी. पलाएक, हु ं मारी बहुने तेना पियरने गामथी तेडी लाववा मारे घेरथी नीकळयो त्यारे मारी माए मने शीखामण दीधी के सासरे तने जमवा बोलावे तो तरत बेसी नहीं जतो, पण थोडी ताण कराववा नकार भणजे. हु सासरे पांच्यो अने सासुए जमवा बोलाव्यो त्यारे में क के हु जमीने ज आव्यो छु, माए एटल' जमाडद्यो छे के जराये भूख नथी. राते जमवा बोलाव्यो त्यारे पण में ना भणी. वधारे ताण करीशु तो जमाईने खोटुं लागशे एवं समजीने सासुए मने वधु आग्रह न कये, रसोडामां सूत्रानी मारी व्यवस्था करी. खूब भूख्यो थयेलो एटले रसोडामां छडे चोखा हता तेनो एक बूकडो भये त्यां मारी बहु रसोडामां आवी माग गाल फूलेला अने कशु बोल नहीं ते जोईने नेणे मारी सासुने बोलावी. एकाएक तबियत बगडी आवी छे एम समजीने तरत वैद्यने बोलाव्या. तेणे मने तपास्यो अने भांमां धोळा चोखा भरेला भाळीने वेद्ये कयुं, “तमारा जमाईने तांदुलरोग थयो छे. ए असाध्य गणाय छे, पण हुं एनो उपचार जाणु छु छरी लावी एटले गाल चीरीने ए रोगनां अंतु बहार का ' सासुए तेने बदलामां में स आपवानु कल्यु. ठीव मगावीने वैद्ये एकांतमां मारी पासे चोखा थुकावी नाख्या, अने में स लईने ते चालतो थयो आम में मूर्खाई करीने ससरानो भेस खोवरावी. ' बीजाए पोतानी मूर्खाई वर्णवी : 'एक बार हु' आणु करीने सासरेयी पाछो आव्यो त्यारे गाभ बहार ज रात पड़ी गई. नगरनो दरवाजो बंध थई गयो, एटले अमारे देवळमां रात रहेवु पड्युं. वात करतां बे पहोर वीत्या. ते वेळा में कयुं, 'आपणामांथी हवे जे पहेलु मौन तोडे ते दस लाडवा हारे.' एवी शरत मारीने अमे सूता. चोरने अमारो बधो सामान लईने नासी जतो में जोयो, पण शरत जीतवा खातर हु मूंगो ज रह्यो आम दस लाडवा खातर में सर्वस्व गुमायुं . ' त्रीजाए पोतानी मूखाई वर्णवी : 'मारी बे बेरीओ खूब झगडती तेथी में सेवा माटे मारो अरधोअरधो देह तेमने वहेंची आप्यो. एक वार हु बहारथी घरे आव्यो त्यारे एक स्त्री जमवा बेठेली तेथी बीजीए मारा बने पग धोया. ते जोईने पहेली स्त्री दोडी अने तेणे बीजीने सोंपायेलो मारो पग भांगी नाख्यो. एटले पहेलीए मारो बाकीनो पग भांग्यो. ' चोथाए पोतानु ं पराक्रम कयूँ : 'मारे पण बे बैरीओ छे. एक वार मारी बने बाजुए ते खाट पर सूती हती, अने में तेमना पर मारो एकएक हाथ राखेलो. ते वेळा ऊबंदर दीवानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002641
Book TitleRatnachuda Rasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages78
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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