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________________ ५० रत्नचूड-रास ११७.३, कसेलव ११८... राखेसि १५१.१. राजा:प्रतिइ १५४.२. कोटी लेई १७०.१. कोटीलउ १७३.४. एह वात सविसंभ लावी १७८.४. सकोई १७९.१. ईछपरीछई हउ १८२.२. बलद एक साढीउ १८४.१. आमडई १८६.२. राज फिरी १९१.१. बालक प्रीय नई १९२.२. सजाई १९४.४. एह जि १९७.२. जव २०२.२. जोउ कोरी नउं घर २१ ६.२ तुणि जोईसई विहाणइ होई २२१.४. बलदउ २२७.३. सहू अजाण. ४. वतू' २२९.४. पाषलिइ २३२.४. राय-हाथई २३६ ४. कहु बाई वढावडि काई करूं २३७-२३९. नथी २४०.२. परठी २४४.२. पडह म वाइंसु २५०.२. नही कुण पाडि २५२.३. बरसनीई, ली. ४. सह नइ २५६. नथी. २५९.२. बाहरि नीकलई हरष जेणि. ६. परिवाली नइ गयु. २६०.१. राहवीउ. ३. सही. ४. कही २६४.१.२. गयु सासरइ गहिगट करी मित्र चित्रणइ साथइ धरी २६९.४. स्त्री जागी २७०.४. जमाई नई २७३.४. द्रष्टि २७५.३. सटेक २७६.४.थंकनि २७७.१. बे हलावी. ४. टाली व्याधि २८०.४. रहियां बाहरि वाडि २८१.१. नही आरति. २. तिवारइ गई बिपहर रात्रि २८७.३. तिवारई कलमलिउ २९०. नथी २९१.२. बुद्धिवंत छई ए पणि नवा. आ पछी वधारेः रत्नचूडिकुमार ते कहिउ । एहनूं काज सविसेषुहर्क २९४.३. समांदायक २९९.१. वहण ३१०.४. न्याइ लगइ सानिद्धि करई देव ३११.६.९. ज्ञाइ तुरीय सषाइत करई ज्ञाइ भणी ए वाणि । ज्ञाइ विण रावण मूकि करि भाई गयां विण नरवाणि || ३१७.३. भेरी झल्लरि सार ३१८-३२२. नथी ३२४.२. हीडोलाई ३२८.४. आंगणइ ३३१.२ पाम्युं ध्यान अतिहि अवलोक ३३२.४. परणी छइ ईहां ३३५.१ अन्याइ भानकन ३३८.४. समक्ति भजूआतीयां ३४०.२. छेहडई ३४६. नथी ३४७.१. सिव. २. मुगति निर्मल लाभइ इणइ गणिई (अंत) ३३४।। इति रत्नचुडरास संपूर्णः ।। पूर्णिमापक्षे कछोलीवालगच्छे भ. श्री ६ विद्यासागरसूरिभि आचार्य श्री ३ लक्ष्मीतिलकसूरि. शिष्य मुनि कर्मसुंदरेण लिषतः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002641
Book TitleRatnachuda Rasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages78
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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