Book Title: Ratnachuda Rasa Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 73
________________ ५२ झगराइ ११२.४ इंगर २६४.२ ठीक ८९.३ ठी २७६.२ डोकरी ३२६.१ ताति २३८.४ तामलती ३१६.४ तुणि १०२.२ तुणिउ २१६.२ बाहर ४१.३ दीकिरउ १०४.२, ११५.१ ट्रेठि २४०.२ धीर- सुपारी १६४.२ धुरि २५४.२ नात्र ८५.२ नाहर १३३.३ नांगली १३८.३ निमूनव १४०.४ निरत ४९.३ निवर २७६.३ नीक ८९.४ नीहारइ १५५.३ जुहइ १५५.४, २४१.३ पइलइ ७१.४ पढाइस १५०.३ परवाहि (पाठां वन- साहि) ४.४ परहु ३०९.२ पति ८८.४ पाखइ २२९.४ पाखलि ४.२ पांडव १६८.४, १७०.४ पहि २१५.१ फडही ८.४ फलपति २५३.३, २५४.१ बदरउ २२१.४ बहिनर ४४.४ Jain Education International रत्नच्चूड-रास For Private & Personal Use Only बंड १८२.१ विहरि २१९.१ बिवहुर २८१.२ बिबहुरि १५३.४ भिल्या १६५.२ मूंछ २९० २ मउड ९५.४ मडफर २०१ माडी. ३२१.१ माथा-सिर २६९.३ माम २६८.३ मुकरि ८१.२१ रमाले १११.३ रसोइ २६८.२ 'रहर' २१८.२ राखे ९०.२ णि २१५.१ रुलउ ९४.२ रुलियाइत २३०.४ रुलियाइति ६१.४ लगइ ३३३.४ लागउ २९०, १ लिही २९०.३ बढावडि] २३५.१ वरतण २१३.१ सिउ ८.१ वाटुलउं १५२.४ वासइ २४४.२ विगूचाइ २१६.२ विढकणी २३९.३ विढवाडि २३५.३ विती २२७.४ विरलउ ३२८.२ विहंचइ २८५.१ विहि १७७.४, १८०.१ वेकीइ २०४.३ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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