Book Title: Ratnachuda Rasa
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 43
________________ रत्नचूड-रास त्रीजि पहुरि रा सूतउ वली रोहा-नी तु आंखि जि मिली पुनरपि राजा जागि बईठ राइ रोहउ सूतउ दीठ १५७ चिहुंटीइं चबकाविउ सार रोहा सूतां हुई वडी वार ना जी हूं जागउं छउं ताय चिंता अछइ मुझ-नई मन-माहि १५८ राजा बोलइ पुण तु हसी रोहा एवडी चिंता किसी खाटउं देखी दाढई नीर आवइ ते कहउ साहस-धीर १५९ राजा कहइ न जाणउं अम्हे एहनउं ऊतर आपउ तुम्हे दूधई दाढ ऊपनी जाणि खाटि नीर आवइ निरवाणि १६० चउथइ पाहरि रा सूतउ वली निद्रा कीधी रोहइ रुली रा जागिउ संचल हूउ घोर रोहा-नई देखइ अग्घोर १६१ चाबकइ सटकावइ जाम रोहउ ऊठी बइठ उ ताम राजा रीसिई बोलइ इसिउं रोहा वलि वलि सृतउ किसिउ १६२ सूतउ नथी विमासण देव कहि रे चिंता किसी छइ हेव राउलउ छल जो हूं नवि लहउं वचन एक अपूरव कहउँ १६३ वचन अम्हारउं एह ज सही धीर सुपारी रोहइ लही कहि स्वामी हूं पूछउं वात अछइ तुम्हारइ केता तात १६४ रोहा तुम्हे तु बुधिई कल्या पणि तु वली अम्ह माहि भिल्या स्वामो तुम्हारइ पांच जि तात न मानउ तउ पूछउ मात १६५ ऊठिउ राजा गयु आवासि पूछइ वचन जि माता-पासि अम्ब अम्हारइ केता बाप कूडउं कहउ तउ तुम्ह नइ पाप १६६ १५७. २. च. निद्रा मुंकी रोहा दळी. १५८. १. क. चरटीई'; ग. चमकाव्यु; घ. चमकाविउ; झ चटकाविउ. ३. ख.ग.घ. घ. सही; च. बली. ४. क.ख. थई; ग घ.च झ. माहरइ हईइ चिंता थई (घ. वली). १६०. २. च. एहनो संदेहे भाजु. ३. क. दाढ पचो ते; च उपन्नी. १६१. २. क. मूकी रोहा वली; ख. वली; ग. मुंकी रोहा दली. घ. मू की रोहा वली; ठ. भली; च. रोहा निद्रा आंख ज मिली. ३. ख. चउर; झ चोर. ४ घ. अंघोर; च. अघोरि; झ. रोहानइ वा जइ छइ धोर. १६३. ३. ग. छण; घ. राउ जाणई; च. राउलि अवगुण है'; झ. राउली धीर सोपारी लहुं. १६४. १. ग. तमारु. २. क. ° सोपारी रानी; ग. 'सोपारी रोहा नई हुई, च. सुपारी. ३. च. कहु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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