Book Title: Ratnachuda Rasa
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 44
________________ रत्नचूड-रास कहि नई पुत्र किसिउं छइ काज इणि वचनइ लीधइ हुइ लाज कहिसिउ वचन जिह्वारइ माइ धान-पाणी तउ मई लेवाइ १६७ हूं जहींई हूती रतिवंत दृष्टिइं पडिया पांचइ कंत कुंभार धोबी वृश्रिक जाइ चउथउ पांडव पांचमु राइ १६८ पाछउ आविउ पूछो वात कहि रोहा किम जाण्या तात निद्रा-माहि जु वालिङ चेत तात कही आप्या संकेत १६९ पाटू गोटीलउ चिहुंटीउ चउथउ चाबक तुम्हे दीउ पाटूयई जाणिउ कुंभार धोबी वीछी पांडव सार १७० सभा-माहि राई इम भणिउं इह-नी बुद्धिइ हीउं रुणझणिउं प्रधान-मुद्गां दीधी जाम हरखिउ राजलोक सहू गाम १७१ प्रधान मुद्रा' रोहइ लही रखे जाणउ बुधि सूझइ नही विवहारीया हुइ बुधिवंत परमेश्वरि कीधा धनवंत १७२ इम करतां काणउ आवियउ यमघंटाइ बोलावियउ रतनचूड कुमर आवियर तुम्ह-नइ लाभ किसिउं फावियउ १७३ लाभ हुणहार उ अम्ह-नइ अछइ कणय पांच सइ आप्या पछइ जाता तुम्हारी आपसिउ आंखि च्यारि जणा कीधा तिहां साखि १७४ काणइ वात जि बोली इसी तिणि वातिइं यमघंटा हसी एह वात हिब कीजइ किसी ताहरी डाबी आँखि जि खिसी १७५ १६७. १. क ए पूछिइ सिउं काज. २. क. घणी आवइ. ४. ख. अन्न. १६८. ३. ग. ताय. १६९. ३. घ. जगाव्यु. ४. क. तेतलइ'; ग.च. तमिइ कही आप्या देव संकेत; घ. तुम्हे कही. १७१. ४. रोहानइ कीधो परधान. १७२. १. क. लेइ. ३. घ. धनवंत. ४. घ. बुद्धिवंत, ठ. रधिवंत. १७३. २. ख. भलाविउ. ३. च. अव्यो छइ साह. ४. ग. लावीउ; च. यमघंटा पूछइ कुण लाह; झ. पावीउ. १७४. १.घ. लाभ धणु अम्हनइ होइसि. ३. घ. अछइ. ३. क. अम्हारी आपसइ, ग. तुह्मनइ आपीसि. ४. ग.घ. कीधा छइ. १७५. २. क. बोलई'; घ. बोलइ. ३. ख. हुइसइ इसी; घ. तुम्हे कहु छु कसी ४. ग. डाबी बीजी. १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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