Book Title: Ratnachuda Rasa Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 21
________________ २० रत्नचूड-रास.. तपासमां ते गुनो पाटवी कुंवरे कर्यान प्रगट थतां तेनी उपर रथ चलाववानी शिक्षानो अमल करतां राजा अचकातो नथी जिओ 'उपदेशप्रासाद'. भाग २, जैन धर्म प्रसारक सभा द्वारा प्रकाशित, १९१९, पत्र ६५९]. १७२०मां महम्मदशाहे पण न्यायनी सांकळनी प्रथा अपनावेली. ईरानना कोईक बादशाहे न्यायधंटनी व्यवस्था प्रथम शरू करी होवानो निर्देश छे. कोई आहवान स्वीकारवानी तैयारी दर्शाववा द्वार से मूकेली भेरी के नगारा पर दांडी पीटवानी प्रथा अनेक प्राचीन कथाओमा जाणीती छे. र.रा.मां न्यायघंटनी प्रथानो निर्देश कोई पूर्ववतो' कथामांथी ( जेना मूळमा ईरानी बादशाहोने लगती ऐतिहासिक हकीकत होय) लेवायो होवानी अटकळ आपणे सहेजे करी शकीए. र.रा.ने अंते (कही ३३४-३३७)कथाने एक रूपक तरीके (परंपरागत परिभाषामां, दृष्टांत तरीके) घटावेली छे : रत्नच एटले संसारी जीव, कूटकटाह द्वीप एटले संसार वगेरे. आ रीते कथाने दृष्टांत लेखे गणीने तेनो 'उपनय' आपवानी (तेने 'अंतरंग बुद्धिथी जोवानी) परंपरानु अनुसरण 'ज्ञाताधर्मकथा', 'वसुदेवहिडी', 'भागवतपुराण' वगेरेमा आवती केटलीक कथाओमां आपणे जोईए छीए. सुफी प्रभाववाळा अवधी प्रेमाख्यानक काव्योमा ( जेम के जायसीकृत 'पद्मावत'मा) पण अंते कथाने रूपक तरीके घटाववानी प्रथा छे. ५. रचनाकाळ : कर्तृत्व विविध प्रतोमां रचनासंवत १५०१, १५०९, १५२ अने १५०४ एम जुदोजुदो आपेलो छे. आमाथी १५०९ ए वधु श्रद्धेय प्रोमां मळे छे. एटले ई.स. १४५०-५३ने आपणे मान्य राखी शकीए. रासना कर्ता तरीके बृहत् तपागच्छना रत्नसूरिना शिष्यनो उल्लेख ३४६मी कडीमां छे. क, ख, ठ ए प्रतोमा तथा ला. द. विद्यामंदिरना संग्रहमांनी स. १५५९ अने स. १६०७नी जूनी प्रतोमां आ कडी नथो. वळी ग प्रतमा ‘रयणमूरिंद'ने बदले 'जिनरयणसूरिंद' छे. आथी कर्तृत्वनी असतानां संदिग्धता उमेराय छे. परंतु रत्नसूरिना ज शिष्य ज्ञानसागरे संस्कृतमा 'रत्नवडकथानक' स. १५३०ना अरसामा रचेलं हे ए जोता र.रा. पण स्तनसरिना ज कोई शिष्ये रच्यू होवानी पूरती संभावना छ, अने तेथी केटलोक प्रोमां आ कडी कर्ताए ज रचीने उमेरी होवानु आपणे मानी शकीए. ऋणस्वीकार :: आभारदर्शन आ सशोधनकार्यमां नीचेनी संस्थाओ अने व्यक्तिओनी विविध प्रकारे जे कांई सहाय मने मकी छे ते बदल हमारी ऊंडी आभारनी लागणी व्यक कछु. भारतीय विद्याभवन (मंबई) अगरचंद नाहठानो संग्रह, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामदिर :अमदावाद), डेलाना पाश्रयना मंडारना व्यवस्थापको तथा अन्य हस्तप्रत भंडारोने। तेमनी हस्तप्रतोनो उपयोग करवा देवा माटे: मारा सहकार्य करो श्री जेसिंगमाई, श्री बाबुभाई तथा डॉ. कनुभाई शेठनो हस्तप्रतो, कथासंदी वगेरे प्राप्त करवामां सहायभूत थवा माटे; नगीनदास शाहनो तथा गुजरात राज्यना भाषा नियामकश्री. नो आ ग्रंथ ने प्रकाशन माटे स्वीकारवा माटे हु आभारी छु. श्री स्वामीनारायण मुद्रण मंदिर बती श्री भावसारे राखेली संभाकने लीधे पुस्तक छापवानु कान सरळ बन्यु. अमदावाद, फेब्रुआरी १९७८. हरिवल्लभ भायाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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