Book Title: Ratnachuda Rasa Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 39
________________ रत्नचूड-रास वस्तु कुमर पभणइ, कुमर पभणइ, निसुणि तू तात कवण कबण ते हाथीउ, कवणि कवणि मोकलिउ किणि परि वलतउं तातिई इम भणिउं, निसुणि वच्छ तूं ए वटंतर आइस राउलु इम अछइ, चारउ पाउ नित्त मउ पणि म जणाविसिउ अणकहि म रहिसिउ वत्त १२१ चउपई चलतउं रोहउ बोलइ हसी एह वात विमासण किसी हूं जाणउं ए एतली वात तुम्हे न जाणउ माहरा तात १२२ कहि रे रोहा वात जि किसी तुम्हे जाउ परिसरि उल्हसी जई नइ कहउ हूं भंजिसि वाद करावउ रोहा-नइ साद १२३ रोहउ तेडिउ तीणइ ठामि तिहां बोलाविउ सघलइ गामि पच्छेडउ पहिरणि ओढणइ खोलइ बइठउ बापह तणइ १२४ एक एक नइ करइ छइ सान मुहडइ हजी गंधाइ थान आ भांजेसिइ झगडउ सार जाणपणा-सिरि पडिसिइ छार १२५ हूं आविउ छउं झगडउ भांजिवा बुद्धिवंत छउ तुम्हे नव-नवा गाम-गरास भोगवउ तुम्हे तुम्हे भांजउ कइ भांजउं अम्हे १२६ गाम-लोक बोलइ सुविचार ग्रास तुम्हारउ करिसिउं सार वेगिई ए ऊकेलउ सही जंकहिसिउ तं करिसिउं रही १२७ रोहउ बोलइ तीणइ वारि तेडउ वणिग लिखइ जे सार नीर न पीइ चारि नवि चरइ ससइ न वासइ हीडइ फिरइ १२८ जणे तेडउ मोकलिसिउ जेउ तेहनइ हूं कही आपउं भेउ गज मूउ राजा जव कहइ एह वात तउ सामी लहइ १२९ १२१. ५. ख. वरतंत. ग. वत्तं तरि; झ. वृत्तांत जिण परि. ठ. वृत्तांतर. ६. घ. नित २ चारी पाईओ. ७. ग चारज्यो पाइज्यो; घ. नीर बहुलू भत्त. १२२. ३. ख. सघली. . १२३. २. ख. परसइ'; ग. परस; घ. परधुलु; च. पुरमां. ४. ख. कराव्यउ रोहाना; घ. देवरावु. १२५. १. क.ग. कहइ. २. ख. अजी. १२६. १. ग.घ झ. अम्हे आव्या . ३. क.घ. छउ तुम्हे . १२८. १. क. परोहित भणइ. १२९. १. ख. भाइ तेड्यउ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78