Book Title: Ratnachuda Rasa Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 17
________________ रत्नचूड-रास क्रम, निरूपण अने अभिव्यक्तिनु घणु ज साम्य छे. वळी ज्ञानसागर (स'. १५३०नी आसपास विद्यमान) पण रत्नसिंहसूरिना शिष्य हता. तेथी आटलु बधु साम्य जोता, अने र. रा.ना कर्ता पण कोई रत्नसिंहसूरिशिष्य छे ए जोतां गुजराती अने संस्कृत रचनाना कर्ता एक ज हशे के केम एवी शंका के संभावना सहेजे उपस्थित थाय. परंतु जेन बंने कृतिओनी बच्चे साम्यनुं प्रमाण घणु मोटु छे, तेम जे तफावत छे ते पण सूचक छे नटपुत्र रोहानी दृष्टांतकथामां ज्ञानसागरनी कृतिमा (१) राजानु पोताना ४९९ मंत्रीनी उपर नीमवा माटे एक महामंत्रीनी शोधमा होवु, (२) रोहा माटेनी कसोटीओमा एकद्रव्यमय. स्तंभहीन, उत्तग प्रासाद बनावी आपवानो पहेलो आदेश; (३) रत्नचूडने माळी मळयाना प्रसंगनो अभाव; (४) पावडी भेट आपनारने यमघंटाए कहेलु सोमशर्माना पितानु दृष्टांत, जे शेखवल्लीना जाणीता कथा प्रकारचेंज एक निदर्शन छे; (५) सागरवादी वणिकोने यमघंटाए कहेलु चार मूरखनु नहीं, पण सोढीनु दृष्टांत; (६) अनेक स्थळे नानी नानी विगतोमा फरक : आ बधा भेदो उपर्युक्त बन्ने कृतिओ एकबीजा उपर आधार राखती नहीं, पण कोईक समान पूर्ववर्ती रचनानो उपयोग करती होवान पुरवार करे छे. . 'रत्नचूडरासनी अहीं उपयोगमां लीधेली बधी प्रतोना पाठ अनुसार माळी यमघटाने मळे छे, त्यारे तेने यमघटा कोई दृष्टांतकथा कहेती नथी. आ एक देखीतो अपवाद छे. यमघंटानी सलाह लेवा आवेला बधा रत्नचडने छेतरवाना इरादावाळा ठगोने यमघंटा पोतानी बातना समर्थनमां एकएक बुद्धिचतुराईनी कथा कहे छे, एटले माळीनी साथेनी बातमां पण ते आवी दृष्टांतकथा केम नथी कहेती तेनो कशो स्वाभाविक खुलासो नथी रचनाशैली आवी दृष्टांतकथानी अपेक्षा ऊभी करे छे अने ते कारणे ते स्थळे एवी ज कथा खूटती होवानो वहेम पडे छे.३ हवे अमदावादना डेलाना हस्तप्रतभंडारमांनी १२३८६ क्रमांकवाळी 'रत्नचडरास'नी स. १६३७मां लखायेली प्रतमां अन्य प्रतोथी अहीं जुदो पाठ छे, अने माळीने पण यमघंटा ससलानी चतुराईवाळी सिंह अने ससलानी कथा कहे छे. परंतु बीजी कोई प्रतषां आ पाठ मळतो नथी, अने डेलाना भंडारवाळी प्रतमां मळतो पाठ अन्यथा पण ठेकठेकाणे घालमेलबाको छे (लहियाए के कोई बीजा जणे रचना उपर पोतानो हाथ अजमावीने ठेकठेकाणे मूळ कृतिमा फेरफार करेला छे. ) ए जोतां आ कथा एक प्रक्षेप ज जणाय छे. वळो घणी खरी तोमां आपेला रचनासंवत १९०९ ए विरोधमां आ प्रतमा संवत १५०१ आपेलो छे ए पण सूचक छे सं. १७१४ मां कनकनिधाने ३५ ढाळमां रचेलो 'रत्नचड-व्यवहारि-रास'५ के जे आपणा 'रत्नचडरास'ने आधारे रचायेलो छे, तेमां यमघंटाए माळीने आपेली सलाहमां आ सिंह ने ससलानी कथा आवे छे ते जोतां एवं फलित थाय छे के कनकनिधाने डेलाना भंडारवाळी प्रत जे परंपरानी छे ते परंपरानी कोईक प्रतनो आधार लीधो हशे. जे यशोदेवगणिकृत 'रत्नचडकथा 'नो उल्लेख छे ते भूल छे. ते नेमिचंद्रवाळी ज कृति के. जुओ, 'शान्तिनाथ जैन भंडारनी ताडपत्रीय हस्तप्रतोनी सूची' भोग २ (गा. ओ. सि. क्रमांक १४९, पृ ३७०-३७३). ३. उपर्युक्त ज्ञानसागरना 'रत्नचड कथानक'मां रत्नचूडने मळनारा ठगोमां माळी नथी ए हकीकत नधिपात्र छे. - ४. आ 'पंचतंत्र', 'कथासरित्सागर', 'हितोपदेश', 'शुकसप्तति' वगेरेमा जाणीती कथा छे. ५. संपादक भीमसिह माणेक, १९०७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78