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प्रारम्भिक जीवन पुत्र नागसुन्दरम का जन्म हुआ और दो साल बाद पुत्री अलामेलु का। यह वडा सुखी और समृद्ध मध्यवर्गीय परिवार था । __ जब वेंकटरमण बारह साल का हुआ, सुन्दरम ऐय्यर की मृत्यु हो गयी और परिवार विघटित हो गया । बच्चे अपने चाचा सुब्बियर के पास चले गये । पास ही मदुरा मे उनका अपना मकान' था । वेंकटरमण को पहले वहाँ स्काट्स मिडिल स्कूल और बाद में अमरीकन मिशन हाई स्कूल मे भेजा गया। उस समय वेंकटरमण में ऐसा कोई लक्षण दिखायी नही देता था जिससे यह प्रकट हो कि वह आगे चलकर विद्वान वनेगा। उसे खेल-कूद और सैर-सपाटे का बहा शौक था। फुटबॉल, कुश्ती तथा तैरने मे उसका मन वहुत रमता था। जहां तक स्कूल का सम्वन्ध है, उसकी स्मरण-शक्ति बहुत तेज थी। जिस पाठ को वह एक बार सुन लेता था, उसे वह कण्ठस्थ हो जाता था और इस प्रकार वह अपनी शिथिलता की पूर्ति कर लेता था।
बचपन के दिनो मे उसका एकमात्र असामान्य लक्षण उसकी असाधारण प्रगाढ़ निद्रा थी। श्रीभगवान् के एक भक्त देवराज मुदालियर ने अपनी डायरी में उसके सम्बन्ध मे एक सस्मरण लिखा है। श्रीभगवान् ने बहुत वप बाद आश्रम मे बातचीत के दौरान, अपने भक्तो को वह घटना सुनायी जिसमें उन्होंने अपने एक सम्बन्धी को सभा-भवन मे प्रवेश करते हुए देखकर कहा था
__ "आपको देखकर मुझे उस घटना का स्मरण हो आता है जो दिन्दीगुल में मेरे बचपन मे घटित हुई थी। आपके चाचा पेरिअप्पा शेपाय्यर, उस समय वहीं रह रहे थे। घर मे कोई समारोह हो रहा था। हर कोई इसमे सम्मिलित हुआ। रात को सब लोग मन्दिर गये। घर में अकेला मैं रह गया । मैं सामने के कमरे मे बैठा पढ़ रहा था परन्तु कुछ देर बाद मैंने सामने के दरवाजे मे ताला लगा दिया, खिडकियां वन्द कर दी और सो गया। जव सब लोग मन्दिर से वापस आये, तव उन्होने दरवाजे और खिडकियो पर जोर से थपथपाया और खूब चिल्लाये परन्तु मेरी नींद नहीं खुली। अन्त मे उन्होने सामने के घर वालो से ताली लेकर दरवाजा खोला और मुझे मार-मारकर जगाने की कोशिश की। सभी लहको ने मुझे जी भरकर मारा और तुम्हारे चाचा ने भी मारा परन्तु मेरी नींद नही खुली। मुझे इस सम्बन्ध मे तब तक कुछ भी पता नहीं चला जव तक कि दूसरे दिन सबेरे उन्होंने सारी कहानी मुझे न
इसी मकान में श्रीभगवान को साक्षात्कार हुआ था। अब इसे माश्रम ने अपने अधिकार में ले लिया है और श्रीभगवान् का एक चित्र यहाँ रख दिया गया है । यह स्थान भक्तों के लिए तीर्थ-स्थल है।