Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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महान् योगीन्द्राचार्य पू.पा. श्रीमद् गुरुदेवश्री ऐसे मूर्धन्य महापुरुषों में प्रमुख थे; उन्होंने निबिड अन्धकार से प्रकाश की और गतिमान किया संपूर्ण मानव-समाज को। दिशा-भ्रष्ट भ्रान्त जन-मानस को उन्होंने अपनी दिव्य प्रतिभा से सत्य के मार्ग पर प्रतिष्ठित किया। श्रीमद् गुरुवर न केवल एक उद्भट-प्रखर विद्वान् हो थे अपितु एक सशक्त, दृढ़संकल्पी शास्ता और प्रशासक भी थे। उन्होंने जिन-शासन की वास्तविकता का वस्तुनिष्ट मूल्यांकन किया था और उसे अपने चरित्र में अक्षरशः आचरित किया था। उनका उद्घोष था कि हमने जिन-मार्ग की मर्यादाओं का मंजन किया है, हम त्याग को छोड़ राग की ओर तेजी से कदम उठा रहे हैं, वीतरागी महापुरुषों के अनुयायी का जामा पहने हुए हम वीतराग-भाव की महत्ता को विस्मृत किये जा रहे हैं; अतः हमें वस्तुस्थिति को पहचानना चाहिये और सत्य की ओर संकल्पपूर्वक मुड़ना चाहिये। उनका स्पष्ट कथन था कि सत्य हमारी मुट्ठी से छट गया है और हम भ्रम में सत्याभास के पीछे दौड़ रहे हैं, ऐसा करने से क्या कभी सत्य तक हमारी पहुँच बन पायेगी ?
परमात्मा भगवन्त महावीर देव के पंचम गणधर श्रीसुधर्मा स्वामी की पट्टपरम्परा में आपने जो प्रकाशस्तम्भ स्थापित किये हैं, वे चिरस्मरणीय हैं। श्रीमद् गुरुदेव अखण्ड ब्रह्मचारी एवं वीर-वचनानुसारी जीवन-यापन करने वाले थे। मेडियाधसान की तरह सामाजिकों में आयी अधार्मिक विकृतियों को आपने अयोग्य और अकल्याणकारी घोषित किया था, और गगनभेदी स्वर में कहा था कि इन विकृतियों के लिए तत्कालीन तनावी मावुक हो उत्तरदायी हैं। आपने बिना किसी पूर्वाग्रह और संकोच के अभयपूर्वक शुद्धिकरण को अत्यन्त आवश्यक बताया। आपके "नवकलमी क़लमनामे" ने समाज को एक नवोत्थान दिया और जिनवाणी की सत्यता को पुनः प्रतिष्ठित किया।
जिनशासन-प्रभावक, सत्यमार्ग-प्रचारक पू.पा श्रीमद्गुरुदेव का जन्म सं. १८८३ में भरतपुर नगर में हुआ था और स्वर्गवास वि.सं १९६३, पौष शुक्ला ७ को राजगढ़ में। पूज्यपाद गुरुदेव श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज, जो परिषद् के संस्थापक हैं, के पावन-पुनीत नेतृत्व एवं प्रेरणा से श्रीमोहनखेड़ा तीर्थ पर वि.सं. २०१३ में दिवंगत अर्द्धशताब्दी-उत्सव भव्य-मनोज्ञ रूप में संपन्न किया गया। इस शुभ अवसर पर पूज्यपाद श्रीमद् गुरुदेवजी का स्मारक-ग्रन्थ भी समाज के तत्त्वावधान में प्रकाशित किया गया, जो गुरुदेव की अमर कीर्ति का शाश्वत स्मारक आज भी बना हुआ है।
अपने परम गुरुदेव के अनन्य उपकार और शासन-प्रभावना को अमर कृति को विश्व में प्रकाशित करने वाले गुरुप्रवर श्रीमद् यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की चिरस्मरणीय शासन-सेवा साहित्य-समृद्धि एवं सत्य-सिद्धान्तों के उद्घोषण-स्थापन की उदात्त-मंगलकारी सेवा को संघ-समाज कैसे विस्मृत कर सकता है ? आत्मोपकारी गुरुदेवश्री की दीक्षा सं. १९५४ में खाचरौद के प्रांगण में उन समर्थ कर-कमलों से संपन्न हुई, जिनकी महिमा सर्वत्र व्याप्त है तथा जिनको पावन-पुनीत स्मृति में प्रस्तुत ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है। श्रीमद् यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. के दीक्षाग्रहण को ६० वर्ष की सुदीर्घावधि हो चुकी थी; अतः वर्तमानाचार्य श्रीमद् विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म. की प्रेरणा से “हीरक जयन्त्युत्सव” खाचरौद नगर में संपन्न किया गया और एक विशाल ग्रन्थ "श्रीमद् यतीन्द्र सुरि अभिनन्दन ग्रन्थ" उन्हें समर्पित किया गया, जो विविध भाषाओं और खण्डों में विद्यमान है।
व्या.वा. गुरुदेव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. के करकमलों से सं. २०१६, कार्तिक शुक्ला १५ को श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर “श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् की स्थापना समाज के लिए एक महती आवश्यकता की पूर्ति के रूप में हुई, आज जिसका कार्यक्षेत्र अखिल भारतीय रूप में समाज के सम्मुख समुपस्थित है।
परम योगिराज गुरुदेवश्री का पुनीत नाम उक्त संस्था के साथ जुड़ना एक परम आशीर्वाद रूप बना है। उन्हींके उस प्रेरक-पुण्यशाली नाम से प्रत्येक परिषद्-कार्यकर्ता में जागृति, स्फूर्ति, और अदम्य उत्साह विद्यमान
राजेन्द्र-ज्योति
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