Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 02
Author(s): Purushottamlal Menariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 8
________________ सञ्चालकीय वक्तव्य - - राजस्थानमें और अन्यत्र ज्ञान-भण्डारोंमें सैंकड़ों ही राजस्थानी कथाएं प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंमें लिखित प्राप्त होती हैं, जिनमें हमारो पुराकालीन रीति-नीति, आचार-व्यवहार एवं मनोभावादिसे सम्बद्ध सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, भाषावैज्ञानिक और साहित्यिक परम्पराअोंके सुस्पष्ट दर्शन होते हैं, अतएव इन कथाओंका हमारे साहित्य में विशेष महत्त्व है। अनेक राजस्थानी कथाएं संस्कृत और अपभ्रशादि कथाओंके अनुवादोंके रूपमें प्राप्त होती हैं तथा अनेक कथाएं मौलिक कल्पना और ऐतिहासिक घटनाओं एवं चरित्रों पर आधारित हैं। अनेक कथाओंका उद्देश्य धर्म-प्रचार और शिक्षा है तो कई कथाएं मनोरन्जन मात्रके लिए लिखी गई हैं। शैलीकी दृष्टिसे भी राजस्थानी कथाओंमें विभिन्नताओंके दर्शन होते हैं, जिनका विशेष अध्ययन हमारे विद्वानोंके लिये अपेक्षित है। ___ राजस्थानी कथा-साहित्यके विशेष महत्त्वको दृष्टिगत रखते हुये हमने प्रतिष्ठानकी प्रमुख प्रकाशन-श्रेणी राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालामें राजस्थानी साहित्य-संग्रह भाग १के अन्तर्गत श्रीयुत प्रो. नरोत्तमदास स्वामी एम. ए. द्वारा सम्पादित तीन वस्तुवर्णनात्मक राजस्थानी कथाओंका प्रकाशन किया था। "राजस्थानी साहित्य-संग्रह, भाग २"के अन्तर्गत तीन विशेष राजस्थानी कथानों-१ देवजी बगड़ावतारी वात, २ प्रतापसिंह म्होकमसिंघरी वात और ३ वीरमदे सोनीगरारी वातका प्रकोशन किया जा रहा है जिनका सम्पादन हमारे शोध-सहायक श्री पुरुषोत्तमलाल मेनारिया एम. ए., साहित्यरत्नने परिश्रमपूर्वक किया है। पाठ-सम्पादनमें यथासाध्य वार्तामोंकी प्राप्त विविध प्रतियोंका उपयोग किया गया है तथा पाठान्तर्गत टिप्पणियोंमें आवश्यक ऐतिहासिक और भाषावैज्ञानिक ज्ञातव्य प्रस्तुत किये गये हैं, जिनसे सम्पादकके सम्बद्ध विषयोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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