Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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( छत्रीस )
संवत पठारास इकहोत्तर भादया सुदी दशमी गुरुवार रे । एप्रबध पुरी करो प्रणामी जिन गुरु पाय रे । गुर्जर देश में सोमतो ईडर गढ़ ने पास रे । नीलोखी नुग्राम है तिहा श्रावक नो सुमवासरे । चन्द्रमा जिनधाम है ते भव्य पूजे जिन पाय रे । तिहा रहिने रचना करी, यशकीति सुरी राय रे ।
३२ धर्मशर्माम्युदय टीका (३४६१)
धर्मशर्माभ्युदय संस्कृत भाषा के श्रेष्ठ महाकाव्यों में से है। यह महाकवि हरिचन्द की रचना है पौर प्राचीन काल में इसके पठन पाठन का अच्छा प्रचार था। इसी महाकाव्य पर भवारक यशःकोति की एक विस्तृत टीका अजमेर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध हुई है जिसका संदेहध्वान्त दीपिका नाम दिया गया है। टीका विद्वत्तापूर्ण है तथा उसमें काव्य के कठिन शब्दों का अच्छा खुलासा किया गया है।
३३ नागकुमार चरित (३४८०)
" नषमल बिलाला कृत नागकुमार चरित हिन्दी की अच्छी कृति है जिसकी पाण्डुलिपियां राजस्थान के विाि भण्डालों में काम होता है। प्रत लिन स्वयं नथमल विलावा द्वारा लिपिबद्ध है । इसका लेखन काल संवत् १९३९ है।
प्रथम जेठ पूनम सुदी सहस्त्र रात्रा पर वार । 'नथ सुलिख पूरन कियो हीरापुरी मझार । नयमल ने निजकर श्रकी नथ लिस्यो धर प्रीत । भुल चूक याम लखो तो सुध कोजो मीत ।
३४ वारा प्रारा महा चौपई बंध (३६६०)
ट्रारक सकलकीर्ति की परम्परा में होने वाले सद्रारक रामकीर्ति के प्रशिष्य एवं पचनन्दि के शिष्य 5. रूपजी की उक्त कृति एक ऐतिहासिक कृति है जिसमें २४ तीर्थकरों का शरीर, प्रायू वर्ग प्रादि का वर्णन है। इसमें तीन उल्लास है । यह कवि की मूल पाण्डुलिपि है जिसे उसे महिसाना नगर के श्रादि जिन चैत्यालय में बन्दोबद्ध किया था। इस चौपई की एक प्रति उदयपूर के संभवनाथ मन्दिर में उपलब्ध होती है।
३५ मोज चरित्र (३७२१।
हिन्दी भाषा में भोज चरित्र भवानीदास ब्यास की रचना है। यह एक ऐतिहासिक कृति है जिसमें राजा मोष का जीवन निबद्ध हैं। कवि ने इसका निम्न प्रकार उस्लेख किया है
गढ़ जोधारण सतोल धाम याई विलाई । पीर पाठ कल्यास मुजस गण गीत गवाडे।।