Book Title: Pushpa Prakaran Mala
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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श्री कार्यस्थिति प्रकरण.
( ५ )
मूलार्थ तेमां सूक्ष्मपणाने विषे सामान्ययी ( ओघयी ) असंख्य लोकाकाश प्रदेश प्रमाण जेटली अवसर्पिणना काळ सुधी हुं भन्यो . अने तेज प्रकारे ( तेटलोज काळ ) सूक्ष्म पृथ्वीकाय, अपूकाय, अनिकाय, वायुकाय अने वनस्पतिकायने विषे प्रत्येक प्रत्येकमां पण भम्या हुं. ४.
टीकार्थ - तथा सूक्ष्मपणाने विषे एटले सूक्ष्म नाम कर्मना उदयवाळा जीवोमां ओघथी एटले पृथ्वी कायादिक विशेष विना ज (पांचे जातिमां भेळो ) असंख्य लोक प्रमाण अवसर्पिणी सुधी हूं भम्यो. तेमां असंख्येय लोक एटले अलोकाकाशने विषे लोकना प्रमाण जेवडा असंख्याता आकाशना खंडो कल्पवा, तेना जे प्रदेशो एटले जेना भाग न थइ शके एवा जेटला भागो थाय तेटला प्रमाणवाळी अवसर्पिणीओ सुधी हुं भम्यो छ अने ओधे जेटलो काळ कह्यो तेटलो ज एटले असंख्येय लोकाकाश प्रदेश प्रमाणवाळी अवसर्पिणीओ सुधी सूक्ष्म पृथ्वीकाय, अपूकाय, ते काय, वासुकाय अने वनस्पतिकायने विषे प्रत्येके प्रत्येके पण हुँ भम्यो छु. असंख्यातना असंख्य भेद ( प्रकार ) होवाथी ओघमi ( ओघने आश्रीने ) कहेला अवसर्पिणीना असंख्यातपणानी अपेक्षाए प्रत्येक प्रत्येक सूक्ष्म पृथ्वी आदिमां कहेलुं अवसर्पिणीनुं असंख्यातपणुं घणुं नानुं जाणवुं. आ कार्यस्थितिनुं स्वरुप सांव्यवहारिक जीवने आश्रीने कहेलुं छे. केमके असांव्यवहारिक राशिमां रहेला सूक्ष्म निगोदना जीवो अनादिकाळना छे, एम प्रथम कही गया छीए. वळी सूक्ष्म वनस्पति कायना जीवो पण अहीं सांव्यवहारिक ज जाणवा. ४.
ओहेण बायरत्ते, तह बायरवणस्सईसु ता उ पुणो । अंगुलअसंखभागे, दासड्डु परय निगोए ॥५॥

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