Book Title: Pushpa Prakaran Mala
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 9
________________ भूत तथा भाषांतर. मार्गमा आवेला नहीं होवाथी ) असांव्यवहारिक ज कहेबाव के. असांव्यवहारिक अनादि निगोद जीव राशिमा अतीत काळ (नयेला काळ)ना अनादिपणाने लीघे अनंता पुद्गल परावर्त सुधी रहीने कोइ पण प्रकार जेम पर्वतनी नदीमा रहेलो पाषाण केटलेक काळे गोळ लीसो थाय छे, तेम तेवा प्रकारनी भवितव्यताना वायी पृथ्वी आदि व्यवहारने पामीने हुं व्यवहार राशिने प्राप्त थयो. तो हे नाथ! त्यां पण-व्यवहार राशिमां पण हुंआगळ कहेवाशे ते प्रफारे भम्यो. आ कायस्थितिनो विचार प्रज्ञापना सूत्रना अढारमा पदमां सवि. स्तरपणे जीव, गति, इन्द्रिय अने कायादिक अनुयोगद्धार वडे अनुक्रमे निरुपण कों छे. तेज प्रमाणे अहीं पण तेने ज अनुसारे संक्षेपथी कहेवाय के. २. उकोसं तिरियगई, असंनिएगिंदिवणनपुंसेसु। भमिओ आवलियअसंखभागसम पुग्गलपरहा ॥३॥ . मूलार्थ-हुँ तिर्यग्गतिमां, असंमिमां, एकेन्द्रियभां, वनस्पतिमां अने नपुंसकमा उतकृष्टथी आवलिकान! असंख्याता भाग(ना समय) जेटला पुद्गल परावर्त सुधी भन्या छु३. टीकार्थ उत्कृष्टथी तिर्यग्गतिमां, संमियी उलटा एटले असंझिमां, एकेन्द्रियमां तथा सूक्ष्म, बादर निगोद अने प्रत्येक ए प्रणे. जातिनी वनस्पतिकायमां अने नपुंसकमा असंख्येय समयवाळा आवलिकानाअसंख्यातमां भाग जेटला एटले आवलिकाना असंख्येय भागे जेटला समयो आवे तेटला पुद्गल परावर्त सुधी हुं भन्यो दु. ३. . सामन्नं सुहमत्ते, ओसप्पिणिओ असंखलोगसमा। भमिओ तह पिहु मुहुमे, पुढवीजलजलगपवणवणे ॥४॥

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