Book Title: Pushpa Prakaran Mala
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ mwwwwwwwwwwwwwwwmamm श्री कास्थिति प्रकरण. (३). तेवी गतिमां भ्रमण करवा रूप आशंकानो नाश करनारः एवा. हे भगवान ! १. ___ अहीं स्तुति करनार आचार्य माहाराजे जीवोनी कायस्थितिनो विचार करवा आरंभ कर्यों छे, ते कायस्थिति सामान्य अने विशेष करीने बे प्रकारनी छे. तेमा सामान्यथी कायस्थिति संसारी जीवनुं जीवq एटले प्राणोने धारण करवा ते. ते जीवन संसारी जीवने सर्वदा होय छे.केमके आयुषकर्मना अनुभव रुप द्रव्यमाणो अने ज्ञानादिक भावमाणो तेमने निरंतर रहेला होय छे. अने मुक्त-सिद्धना जीवोने ज्ञानादिक भावप्राणोनुं धारण करवु अवस्थितपणे छे. माटे (सामान्यथी) संसारी अवस्थामां सर्वत्र सर्वकाळे जीवन रहेलं ज छे. हवे विशेषथी कायस्थितिने स्तोत्र कर्ता पोते न कहे छ:-- अश्ववहारियमज्झे, भभिउण अणंतपुग्गलपरहे। कहवि ववहाररासिं, संपत्तो नहि तत्थविय ॥२॥ ___मूलार्थ हे नाथ ! हुं अव्यवहारिक राशिमां अनंत पुद्गल परावर्त सुधी भ्रमण करीने कोइ पण प्रकारे व्यवहार राशिने प्राप्त थयो. तो त्यां पण चिरकाळ भ्रमण कयु. २. टीकार्थ-अहीं सांव्यवहारिक अने असांव्यवहारिक एम बे प्रकारना जीवो छे. तेमां जेओ अनादि निगोदनी अवस्थामांथी उद्धरीने ( बहार नीकळीने ) पृथ्वीकायादिक भवाने विषे रहेळा छ तेश्रो दुनियामां लोकोना दृष्टिमार्गमा आवता होवाथी पृथ्वी आदि व्यवहारने पाम्या, माटे तेओ सांव्यवहारिक कहेवाय छे. जो के तेओ फरीथी पण निगोदावस्थामा जाय छे, तोपण तेभो व्यववहारने माटे (बवहार राशियां) आवेला हावाथी सांव्यवहारिक ज कहेवाय छे. अने जेओ अनादि काळथी निगोदावस्थामां ज रहेला छे, तेओ व्यवहार मार्गथी रहित होवाथी (कोइ वार पण व्यवहार

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 306