________________ में पृष्ठ 263 पर डॉ. दयानन्द भार्गव के उद्धरण से अवश्य ही यह बात प्रतीत सी होती है-“श्रमण परम्परा के जिन मूल्यों को वैदिक साहित्य में स्थान मिला, उन्हें वैदिक समाज ने यथावत् ग्रहण नहीं किया बल्कि अपनी तरह से ढालकर आत्मसात् किया।” यह जो सामान्य धारणा है कि वैदिक कर्मकांड और आकारी धर्माचारों की प्रतिक्रिया के रूप में श्रमण संस्कृति पनपी, इसका तो लेखिका ने खण्डन किया है किन्तु अपनी ओर से श्रमण वाङ्मय को वैदिक वाङ्मय से प्राचीन सिद्ध करने का प्रसंगागत प्रयास किया हो, ऐसा कहीं नहीं है। यह ठीक भी है क्योंकि ऐतिहासिक कालक्रम के निर्धारण के ऐसे प्रयास कभी अन्तिमतः निर्णायक सिद्ध नहीं हो सकते। उदाहरणार्थ, अब तक भारत में अंग्रेजी माध्यम से जो इतिहास विद्यालयों में पढ़ाया जाता रहा है, उसमें यह बताया जाता है कि भारत का इतिहास सिन्धु घाटी सभ्यता से शुरू होता है, जिसके प्रमाण खुदाई में मोहनजोदड़ो आदि में मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता पर आर्यों ने आक्रमण करके उसे नष्ट किया और तब वैदिक आर्यों की संस्कृति उपजी और फैली। इस आधार पर सिन्धु घाटी (जिसे अनार्य सभ्यता का स्वरूप माना गया।) का काल पहले आता है, फिर वेद काल / इसे ज्यों की त्यों सभी विद्वान् पढ़ते रहे। वैसे भी पुरानी या कालक्रम से पहले होने के कारण कोई सभ्यता उत्कृष्ट हो जाती हो और परवर्ती होने के कारण निकृष्ट हो जाती हो, ऐसी कोई बात नहीं है। कालिदास ने कहा ही है "पुराणमित्येव न साधु सर्वम्।” अतः सिंधु घाटी काल पूर्ववर्ती और वेदकाल परवर्ती माना जाता रहा, यद्यपि ऋग्वेद को मानवीय पुस्तकालय की सर्वप्रथम पुस्तक माना जाता रहा। .. जिस प्रकार मोहनजोदड़ों आदि के उत्खनन में प्राप्त मुद्राओं और बर्तनों के आधार पर किये काल-निर्धारण के फलस्वरूप इतिहास का पौर्वापर्य उस समय निर्धारित हुआ था, उसी प्रकार पिछले दशकों में सरस्वती घाटी सभ्यता (अर्थात् सरस्वती नामक विलुप्त याने अन्तःसलिला नदी के तत्कालीन संभावित प्रवाहक्रम और भूगोल) के अनुसन्धानार्थ जो उपग्रह सर्वेक्षण (सैटेलाइट सर्वे), खोजबीन और शोध हुए हैं, साथ ही फ्रांसीसियों ने पाकिस्तान-अफगानिस्तान अंचल में बोलन दरें के पास मेहरगढ़ आदि स्थानों पर जो खुदाई की है, अवशेष प्राप्त किये हैं, जिनका काल ईसा से लगभग सात हजार वर्ष पूर्व माना गया है, उससे इतिहास का पौर्वापर्य अब तदनुसार संशोधित परिवर्तित या निर्धारित होना चाहिए, ऐसा उन विद्वानों का मत है जो किसी पूर्वग्रह से नहीं जुड़े हैं। एस. आर. राव, नवरत्न राजाराम, सुभाष काक, जेम्स शेफर, मार्क केनोयर, भगवानसिंह, जी. पी. सिद्धार्थ, के. डी. सेठना, के. डी. अभ्यंकर, पी. डी. .. (xiv)