Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ शुभा कर रही साध्वीश्री मो !! शुभाशीर्वाद !! साध्वीश्री मोक्षरत्नाश्रीजी आचारदिनकर का अनुवाद-कार्य कर रही हैं, यह जानकर प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। उनका यह कार्य वास्तव में सराहनीय है। इससे मूलग्रन्थ के विषयों की बहुत कुछ जानकारी गृहस्थों एवं मुनियों के लिए उपयोगी होगी। जिनशासन और जिनवाणी की सेवा का यह महत्वपूर्ण कार्य शीघ्र ही सम्पन्न हो एवं उपयोगी बने - ऐसी मेरी शुभकामना है। ___ गच्छहितेच्छु गच्छाधिपति कैलाशसागर !! किंचित् वक्तव्य !! जैन-संघ में आचारदिनकर-यह अनूठा ग्रंथ है। इसमें वर्णित गृहस्थों के विधि-विधान आज क्वचित् ही प्रचलन में हैं, किन्तु साधुओं के आचार के कुछ-कुछ अंश एवं अन्य विधि-विधान अवश्य ही प्रचलन में हैं। पूर्व में मुद्रित यह मूलग्रंथ अनेक स्थानों पर अशुद्धियों से भरा हुआ है, सो शुद्ध प्रमाणमूल अनुवाद करना अतिदुष्कर है, फिर भी अनुवादिका साध्वीजी ने जो परिश्रम किया है, वह श्लाघनीय है। आज तक किसी ने इस दिशा में खास प्रयत्न किया नहीं, अतः इस परिश्रम के लिए साध्वीजी को एवं डॉ. सागरमलजी को धन्यवाद देता छ प्रमाणमूल पारश्रम किया है, या नहीं, अतः देता आचारदिनकर की कोई शुद्ध प्रति किसी हस्तप्रति के भण्डार में अवश्य उपलब्ध होगी, उसकी खोज करनी चाहिए और अजैन-ग्रंथों में जहाँ संस्कारों का वर्णन है, उसकी तुलना भी की जाए तो बहुत अच्छा होगा। जैन-ग्रंथों में भी मूलग्रंथ की शुद्धि के लिए मूल पाठों को देखना चाहिए। परिश्रम के लिए पुनः धन्यवाद। माघशुक्ल अष्टमी, सं.-२०६२ पूज्यपाद गुरुदेव मुनिराज नंदिग्राम, जिला-वलसाड (गुजरात) श्री भुवनविजयान्तेवासी मुनि जंबूविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 276